जस्टिस नागरत्ना बोलीं- न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र रूप से उपयोग करना जज का कर्तव्य
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायधीश न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना न्यायधीश का केवल विशेषाधिकार ही नहीं, बल्कि यह उसका कर्तव्य भी है। इसलिए जरूरी है कि न्यायाधीश बिना किसी बाहरी प्रभाव के मामलों में अपनी खुद की समझ और अंतरात्मा के आधार पर फैसले लें। न्यायमूर्ति नागरतन्ना ने यह बात शनिवार को न्यायमूर्ति एस. नटराजन शताब्दी स्मृति व्याख्यान में कहीं।
उन्होंने कहा, न्यायिक स्वतंत्रता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि न्यायाधीशों के अलग-अलग या असहमत विचारों को एक दूसरे की स्वतंत्रता के रूप में देखा जाना चाहिए। यह न्यायपालिका की आजादी का सबसे सजग रूप है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी बताया कि उन्होंने और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने संविधान पीठ संबंधी मामलों में अलग विचार रखे थे। उनके व्याख्यान का विषय 'भारतीय संविधान में शक्ति के संतुलन और नियंत्रण का दृष्टिकोण' था।
d'न्यायाधीश को खुद के कानूनी दृष्टिकोण से लेने चाहिए फैसले'
इस दौरान उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही न्यायिक समीक्षा की शक्ति को प्रभावी रूप से उपयोग कर सकती है। न्यायिक स्वतंत्रता का मतलब न्यायाधीश द्वारा अपने स्वयं के कानूनी दृष्टिकोण के अनुसार मामले पर फैसला लेना होता है, भले ही वह दूसरों के विचारों या इच्छाओं से अलग हो।
न्यायमूर्ति एस. नटराजन के फैसलों की सराहना की
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एस. नटराजन की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने अपने फैसलों में गहरी कानूनी समझ और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया। खासतौर पर उनका फैसला 'बेगम सबाना उर्फ सायरा बानो बनाम ए.एम अब्दुल गफूर' (1987) मामले में देखा जा सकात है, जिसमें उन्होंने मुसलमान पति के बहुपत्नी विवाह को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत शर्तों के विपरीत माना। कार्यक्रम में पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति पी. सत्यशिवम, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी.एस. रमन और कानून समुदाय के सदस्य मौजूद थे।