उपराष्ट्रपति धनखड़ का न्यायपालिका पर हमला:: "राष्ट्रपति को आदेश देना लोकतंत्र के खिलाफ

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधेयकों की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों को समयसीमा तय करने वाले हालिया फैसले के बादन्यायपालिका पर कड़ी टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को आदेश दें. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 का ज़िक्र करते हुए चेताया कि यह अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ एक "परमाणु मिसाइल" बन गया है.
राज्यसभा प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के घर से भारी नकदी मिलने के मामले पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि घटना के एक हफ्ते तक कोई जानकारी सामने नहीं आई, जिससे पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं. उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि अभी तक जज के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई, जबकि देश में किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी पर कार्रवाई हो सकती है. लेकिन न्यायपालिका के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता क्यों हो, यह संविधान में नहीं लिखा.
धनखड़ ने पूछा कि आखिर इस मामले की जांच कार्यपालिका के बजाय तीन न्यायाधीशों की समिति क्यों कर रही है? उन्होंने कहा कि इस समिति को कोई कानूनी मंजूरी नहीं है और इसकी सिफारिशें भी सीमित प्रभाव वाली होंगी. उन्होंने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे?
सुप्रीम कोर्ट के तमिलनाडु केस में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोकने के फैसले को अवैध बताते हुए अदालत ने राष्ट्रपति की भूमिका को भी न्यायिक समीक्षा योग्य बताया था. इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को अदालत से निर्देश देना बेहद चिंताजनक है. उन्होंने यह भी कहा कि अदालतें कानून बना रही हैं, कार्यपालिका का काम कर रही हैं और खुद को जवाबदेही से परे मान रही हैं.