आरएसएस प्रमुख ने की दिवंगत मोरोपंत पिंगले की सराहना, कहा- विनम्रता और दूरदर्शिता के थे प्रतीक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को संघ के विचारक दिवंगत मोरोपंत पिंगले को पूर्ण नि:स्वार्थ का प्रतीक बताया। भागवत नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पिंगले की देश निर्माण के प्रति मौन प्रतिबद्धता और वैचारिक सीमाओं को पार कर लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता की सराहना की।
किताब 'मोरोपंत पिंगले: हिंदू पुनरुत्थान के स्थापत्यकार' का विमोचन करने के बाद भागवत ने आरएस के वरिष्ठ नेता की विनम्रता, दूरदर्शिता और जटिल विचारों को सरल भाषा में समझाने की उनकी अनूठी क्षमता को याद किया। भागवत ने कहा, मोरोपंत पूर्ण नि:स्वार्थता के प्रतीक थे। उन्होंने कई कार्य किए और वह यह सोचकर किए कि यह कार्य देश निर्माण में कैसे सहायक होंगे।
भागवत ने आपातकाल (1975) के बाद राजनीतिक बदलाव के दौरान पिंगले की भविष्यवाणियों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, जब चुनाव की चर्चा हुई, मोरोपंत ने कहा था कि अगर सभी विपक्षी दल एक साथ आएं तो करीब 276 सीटों पर जीत जाएंगे और जब परिणाम आए, तो 276 सीटों पर ही जीत हुई। आरएसएस प्रमुख ने कहा, परिणाम घोषित होने के दौरान मोरोपंत सतारा जिले के सज्जनगढ़ किले पर थे, जहां वह चर्चाओं से दूर थे।
उन्होंने बताया कि पिंगले ने अपने अंतिम दिन नागपुर में बिताए। उन्होंने कभी अपनी उपलब्धियों का जिक्र नहीं किया। वह मुस्कुराते और विषय को बदल देते थे। वह किसी भी सम्मान समारोह में जाने से बचते थे। वह किसी भी तारीफ को टालने के लिए हंसी-मंजाक करते थे। भागवत ने पिंगले के गंगासागर से सोमनाथ तक की रथयात्रा में योगदान का जिक्र किया। उन्होंने कहा, उनका काम एक अखबार में ‘फौजी अनुशासन’ जैसा बताया गया था।
भागवत ने कहा, जहां भी वह बोलते थे, लोग तनावमुक्त महसूस करते थे। आरएसएस स्वयंसेवकों की ओर से पूछे गए कठिन सवालों के जवाब वह सरलता से देते थे और कहते थे, आरएसएस शाखा में आओ, खेलो; यह अपने आप हिंदू राष्ट्र में योगदान देगा। आरएसएस प्रमुख ने पिंगले के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। भागवत ने कहा, वह सरस्वती नदी के पुनरुद्धार के लिए वैज्ञानिकों के साथ यात्रा करते थे। उन्होंने कई लोगों को आरएसएस और रचनात्मक कार्य से जोड़ा। कई लोग स्वयंसेवक नहीं थे, लेकिन वे केवल उनके कारण जुड़े।