प्रभु की पूजा : विघ्नों का नाश, अभ्युदय और अंतिम फल मोक्ष प्रदाता : साध्वी जयदर्शिता

Update: 2025-08-13 10:31 GMT
प्रभु की पूजा : विघ्नों का नाश, अभ्युदय और अंतिम फल मोक्ष प्रदाता : साध्वी जयदर्शिता
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उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। नाहर ने बताया कि बाहर से दर्शनार्थियों के आने का क्रम निरन्तर बना हुआ है, वहीं त्याग-तपस्याओं की लड़ी जारी है। नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ में एकासना उपवास के सभी तपस्वियों का सामूहिक पारणा करवाया गया।

आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में बुधवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने प्रवचन में बताया कि अंग पूजा यानि कि परमात्मा की प्रतिमा पर जो पूजा की जाती है उसे अंग पूजा कहते है जैसे कि जलपूजा, चन्दनपूजा पुष्प पूजा, वासक्षेप पूजा, आगी विलेपन पूजा, आभूषण पूजा इत्यादि का समावेश अंग पूजा में होता है। यह पूजा विघ्ननाशक कहलाती है। अनेक विज्ञों की नायक और महाफलक प्रदाता है। अग्रपूजा यानि कि परमात्मा के सम्मुख की जाने वाली पूजा को अग्रपूजा कहते है-जैसे कि धूप पूजा, दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेय पूजा और फल पूजा यह पूजा अभ्युदयकारिणी पूजा कहलाती है। पूजक के जीवन में आने वाले विघ्नों को विनष्ट कर मोक्षमार्ग की साधना में सहायक हो ऐसा भौतिक अभ्युदय इस पूजा द्वारा प्राप्त होता है। भावपूजा यानि कि परमात्मा के सम्मुख की जाने वाली स्तुतिस्तवन स्तोत्र, चैत्यवंदन, गीत-गान-नृत्य आदि भाव पूजा में सम्मिलित है। इस पूजा को निवृत्तिकारिणी पूजा कहलाती है यह इजा मोक्षपद की प्राप्ति कराती है। यह तीनों पूजाएँ सम्मय दृष्टि आत्मा को एक छत्र पुण्य का प्रभुत्व दिलाने वाली है। इतना ही नहीं अपितु सद्धर्म की प्राप्ति कराने वाली, मिध्यादृष्टि आत्माओं के जीवन में भी किश्तों का नाश करने वाली ये तीनों पूजाएं हैं। पूजा यानि समर्पण जिस व्यक्ति को परमात्मा के प्रति प्रेम हो वह प्रभु की अष्ट प्रकारी पूजा किए बिना रह ही नहीं सकता। "जगत के व्यवहार में भी देखा जाता है- प्रेमी कदापि समर्पण के बिना रह नही सफल ।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

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