“हम कहते ये आंसू हीं हमारी दीपावली है।
✨ इसके पीछे क्या भाव है
उनका यह कथन केवल भावनात्मक वाक्य नहीं, बल्कि गहरी संवेदना और अनुभव का प्रतिबिंब है। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
1. **अतीत का संघर्ष व अनुभव**
महाराज ने बताया कि पहले दिवाली का समय उनके लिए ऐसा भी था — “भूखी … रोटी मांगने जाते तो मना हो जाता कि आ दिवाली है – रोटी नहीं मिलेगी”।
यानी, उन्हें और उनके आसपास के लोगों को दिवाली के अवसर पर भी कष्ट, अभाव और असुरक्षा का सामना करना पड़ा। ऐसे में दीपावली के “रोशनी-उत्सव” के बीच उनकी स्थितियाँ इस वाक्य में समाहित हो जाती हैं।
2. **आंसू = चमक की दूसरी भाषा**
जब दीपावली को सामान्यतः दीप-प्रकाश, खुशियों, समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, तो महाराज कहते हैं — अगर वह समृद्धि नहीं थी, अगर आनंद नहीं था — तो उस स्थिति में जो “आंसू” हैं, वह भी दीप-ज्योति का रूप ले लेते हैं।
उनका कथन यह बता रहा है कि रोशनी तभी सच्ची है जब भीतर से एक तरह का प्रकाश हो — और यदि वह प्रकाश दुख-वेदना के रास्ते से आया हो, तो आंसू भी उस प्रकाश के रूप हो सकते हैं।
3. **समवेदना और आत्म-अवधारणा**
यह वाक्य हमें यह सोचने का निमंत्रण देता है कि दिवाली सिर्फ बाहरी सजावट, पटाखे, मिठाइयाँ नहीं है — यह उन लोगों के लिए भी मौका है जिन्होंने कठिनाई, अभाव या दुःख का अनुभव किया है। ऐसा समय जब “हमने आंसूओं के साथ दीपावली मनाई” — इसका मतलब है - दूसरों की व्यथा को समझना, अपनी रहम-गुण जगाना, और वास्तविक “उत्सव” की भावना को महसूस करना।
4. **उत्सव का आध्यात्मिक रंग**
महाराज का कथन हमें याद दिलाता है कि यदि हमारी आत्मा में उजाला नहीं है, यदि हम दूसरों के दर्द को नहीं देखते, तो दीपावली सिर्फ दिखावा बन सकती है। आंसू का आध्यात्मिक अर्थ यही है — जब हम अंदर तक टूटे होते हैं, तब भी उम्मीद की किरण जलती है। यह एक भीतर-का उत्सव है, जिसमें “आंसू” उन दीपों का काम करते हैं।
✅ संक्षिप्त में
तो, जब प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं “ये आंसू हीं हमारी दीपावली है”, तो उनका यह कहना है कि —
* अगर हमारी जीवन-स्थिति में खुशियाँ नहीं थीं, फिर भी हमने उम्मीद और संवेदना के “दीप” जलाए।
* यह हमें याद दिलाता है कि उत्सव सिर्फ बाहर दिखने वाला नहीं होता — अंदर का भाव बहुत मायने रखता है।
* इसमें एक प्रकार की **सामाजिक चेतना**, **मानवता का अहसास** और **आत्मिक जागरूकता** झलकी है।
