धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दशा माता व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा किया जाता है, जो अपने परिवार की सुख-समृद्धि और अनिष्ट ग्रहों की दशा को दूर करने के लिए इसे विधिपूर्वक करती हैं। इस दिन महिलाएं पीपल वृक्ष की पूजा कर कच्चे सूत के धागे में गांठ लगाकर अर्पित करती हैं। इस धागे को विधिपूर्वक पूजने के बाद इसे माला की तरह गले में धारण किया जाता है। व्रत कथा सुनने के बाद ही इसे खोला जाता है और पूरे दिन बिना नमक का भोजन ग्रहण किया जाता है।
दशा माता का स्वरूप और व्रत का महत्व
दशा माता को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। यह व्रत ग्रहों की प्रतिकूल दशा को दूर करने और परिवार की उन्नति के लिए किया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत और पूजन कर परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को एक बार करने के बाद जीवनभर इसे करना चाहिए। इस दिन गले में सूत के धागे की डोरी धारण करने का विशेष महत्व होता है। यह धागा बाधाओं को दूर करने और बिगड़े कार्यों को बनाने में सहायक माना जाता है।
दशा माता की पूजा विधि
दशा माता की पूजा के लिए सबसे पहले प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और संकल्प लें। पूजा स्थल पर तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर उसमें दूध, शहद और गंगाजल मिलाकर स्थापित करें। इसके बाद किसी पत्ते पर 11 तारों का सूत धागा रखें और पूजा के लिए तैयार करें। फिर पीपल वृक्ष की तीन परिक्रमा करें और सूत का धागा वृक्ष पर लपेटते हुए प्रार्थना करें। इसके पश्चात दशा माता की कथा का श्रवण करें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें। अंत में पूजा समाप्त कर सूत के धागे को गले में धारण करें और अपने संकल्प को पूर्ण श्रद्धा से निभाएं।
दशा माता कथा
राजा नल महारानी दमयंती के साथ सुख पूर्वक रहते थे। रानी दमयंती भगवान विष्णु और मां महालक्ष्मी को चंदन लगाकर मौली बांधकर उनसे राज्य की रक्षा और सुख समृद्धि की प्रार्थना किया करती थी। जो चंदन लगी मौली बचती थी वह उसे अपने गले में धारण कर लेती थी। एक दिन राजा ने क्रोध में आकर रानी के गले से वह धागा तोड़कर फैक दिया। उसके टूटने से राजा का सौभाग्य भी टूट गया और राजा का राजपाट सब खत्म हो गया,राजा निर्धन हो गया । एक दिन राजा को स्वप्न में एक वृद्ध स्त्री दिखाई थी जिसने उन्हें पीपल पूजन कर पीला धागा अर्पित करने की सलाह दी। राजा ने रानी सहित अश्वत्थ पूजन किया एवं चंदन लगी मौली अर्पित करके व्रत किया। इस पूजन के प्रताप से उनको अपना राज्य फिर से प्राप्त हो गया।