गौतम स्वामी का नाम भी महामंत्र स्वरूप है : जैनाचार्य रत्नसेन

उदयपुर, हलचल । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में श्री श्वेताम्बर मूर्तिपुजक जैन संघ मालदास स्ट्रीट प्रांगण में चातुर्मास के प्रारंभ के पूर्व मंगलाचरण के रूप में भाववाही स्तुतिओं के माध्यम से गौतम स्वामी वंदना-संवेदना का भक्तिसंगीत का कार्यक्रम हुआ। श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में गौतम स्वामी के जीवन की अनुपम बाते बताते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि चौबीस तीर्थंकरों के कुल मिलाकर 1452 गणधर हुए है। इन सभी गणधरों में सर्वाधिक पुण्यशाली और महिमावंत यदि कोई हो तो वे है श्री गौतम स्वामीजी। उनका नाम भी मंत्र स्वरूप है। उनके नाम के तीनों अक्षर मनोवांछित पूर्ण करने में समर्थ है। गो अक्षर कामधेनु गौ, त" अक्षर कल्पतरू और म अक्षर चिन्तामणि के प्रतिक है। 50 वर्ष की उम्र में भगवान महावीर के वे प्रथम शिष्य बने थे।, प्रभु महावीर के श्रीमुख से 14 अक्षर प्रमाण त्रिपदी को प्राप्त करके बीज बुद्धि के धणी गौतम स्वामी ने अल्प समय में समस्त श्रुतज्ञान के ज्ञाता बने थे।.

भगवान श्री महावीर स्वामी के प्रति विनय और समर्पण भाव के कारण उनको अनंत लब्धियाँ प्राप्त हुई थी। जिसे भी वे दीक्षा देते थे, उसे केवलज्ञान प्राप्त हो जाता था। उनके 50,000 केवलज्ञानी शिष्य थे। भगवान श्री महावीर के संपर्क से पहले वे अपने ज्ञान के अभिमान के शिखर पर थे। परंतु प्रभु महावीर से अपनी शंका के समाधान को पाकर प्रभु महावीर के प्रति समर्पण के शिखर पर पहुँच गए। अपने मन में पैदा हुई सभी शंकाओं को एक बालक की तरह प्रभु महावीर को पूछते थे। उनके द्वारा पूछे गए 36,000 प्रश्नों के उत्तर आज भी भगवती सूत्र "के माध्यम से प्राप्त होते है।. 7 जुलाई से प्रतिदिन प्रात: 9.30 बजे प्रेरणादायी प्रवचन होंगे। 9 जुलाई से श्री संघ में 45 दिनों का आगम तप प्रारंभ होगा।
इस अवसर पर अध्यक्ष शैलेंद्र हिरण, राजकुमार बाबेल, रमेश जावरिया, प्रवीण हुम्मड, अभिषेक हुम्मड, भोपाल सिंह सिंघवी, नरेंद्र सिंघवी, जसवंतसिंह सुराणा आदि की उपस्थिति रही।