कई मंगलकारी योग में मनाई जाएगी भीलवाड़ा में कजरी तीज,महिलाये जुटी तैयारी में

Update: 2025-08-10 05:10 GMT
कई मंगलकारी योग में मनाई जाएगी भीलवाड़ा में  कजरी तीज,महिलाये जुटी तैयारी में
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भीलवाड़ा जिले में  कजरी तीज  पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को यानी 12 अगस्त को मनाया जाएगा इस लेकर महिलाये तैयारी में जुट गई हे  इस दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाएगी। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाएगा। कजरी तीज का व्रत विवाहित महिलाएं और अविवाहित लड़कियां करती हैं।

ज्योतिषियों की मानें तो कजरी तीज के शुभ मौके पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा एवं भक्ति करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी। आइए, कजरी तीज का शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं-


 

कजरी तीज शुभ मुहूर्त  

वैदिक पंचांग के अनुसार, 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 33 मिनट पर शुरू भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत होगी। वहीं, 12 अगस्त को सुबह 08 बजकर 40 मिनट पर भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि का समापन होगा। इस प्रकार 12 अगस्त को कजरी तीज मनाई जाएगी।

 कजरी तीज शुभ योग 

कजरी तीज पर सुकर्मा योग  का संयोग शाम 06 बजकर 54 मिनट तक है। ज्योतिष सुकर्मा योग को शुभ मानते हैं। इस योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। इसके साथ ही भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का भी संयोग है। सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रात भर है। इसके साथ ही शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। इन योग में शिव-शक्ति की पूजा करने से साधक को मनचाहा फल मिलेगा।

पंचांग

सूर्योदय - सुबह 05 बजकर 49 मिनट पर

सूर्यास्त - शाम 07 बजकर 03 मिनट पर

चंद्रोदय- सुबह 08 बजकर 59 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 15 मिनट से 04 बजकर 57 मिनट तक

विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 44 मिनट से 03 बजकर 39 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त - शाम 07 बजकर 17 मिनट से 07 बजकर 38 मिनट तक

निशिता मुहूर्त - रात्रि 12 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भादो मास की इस तिथि के दिन पहली बार इस व्रत को मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया था। यही कारण है कि इस तीज व्रत को कुंवारी लड़कियां भी रखती हैं। इसकी पूजा के दौरान कजरी तीज की व्रत कथा भी सुनी जाती है। मान्यता है कि व्रत कथा को पढ़ने और सुनने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होता है, वहीं कुंवारी लड़कियों को भी अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है। आइए जानते हैं, कजरी तीज की असली व्रत कथा क्या है और जिस पौराणिक कहानी को पढ़े और सुने बिना इस तीज की पूजा अधूरी मानी जाती है?

कजरी तीज की पौराणिक व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है… एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे। उसकी हालत इतनी दयनीय थी कि जैसे-तैसे वह केवल दो वक्त का भोजन ही कर पाता था। ऐसे में जब भाद्रपद महीने में तृतीया तिथि की कजली तीज आई, तो ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखने का संकल्प लिया और उसने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा, “सुनो जी! आज मेरा तीज माता का व्रत है। आप कहीं से चने का सत्तू लेकर आओ।”

 



 


इस पर ब्राह्मण बोला, “ओ भाग्यवान! देने के लिए दाम नहीं है, मैं सत्तू कहां से लाऊं?” तो ब्राह्मणी ने कहा, “ये मैं नहीं जानती, चाहे चोरी करो या चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सत्तू लेकर आओ।” यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर बिना पैसे के वह सत्तू कहां से लेकर आए।

 

रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान पर पहुंचा। उसने देखा कि साहूकार के साथ-साथ उसके सभी नौकर भी सो रहे थे, तो वह चुपके से दुकान में घुस गया। सत्तू बनाने के लिए उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सबको सवा किलो के बराबर तोल कर ले लिया। जब ब्राह्मण ये सब कर रहा था तो खटपट की आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।

ऐसे में साहूकार की भी नींद खुल गई। उसने ब्राह्मण को देखा और उसको पकड़ लिया। साहूकार की गिरफ्त में आए ब्राह्मण ने बहुत विनम्रता ने कहा, “हे साहूकार! मैं चोर नहीं हूं। मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है। मैं केवल सवा किलो सत्तू लेने आया था, लेकिन सत्तू न मिलने पर सत्तू बनाने की सवा किलो सामग्री लेकर जा रहा था। आप मेरी तलाशी लेकर देख लीजिए।” इस पर साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सत्तू के सामान के अलावा कुछ नहीं मिला।

ब्राह्मण ने कहा, “हे साहूकार! चांद निकल आया है। ब्राह्मणी मेरा इंतजार कर रही होगी।”

साहुकार की आंखें भर आईं। नम आंखों से साहूकार ने कहा, “आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा।” इसके बाद उसने ब्राह्मण को सत्तू, आभूषण-गहने, रूपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। इसके बाद ब्राह्मण दंपति पर कजली माता की कृपा हुई। उसके दिन फिर गए, अच्छे दिन आ गए।

इस कथा जो भी पढ़ता है और सुनता है, उसका कल्याण होता है। इस कथा को पढ़ने-सुनने वाले के साथ-साथ सब लोगों के वैसे ही दिन फिरे, जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे थे। कजली माता की कृपा सब पर हो!

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