सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का असर: कोचिंग सेंटरों पर बनेगा नियम, मानसिक स्वास्थ्य नीति होगी लागू
भीलवाड़ा हलचल । सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में छात्रों की आत्महत्या और कोचिंग सेंटरों की अनियमितताओं को गंभीरता से लेते हुए बड़ा आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि दो महीने के भीतर कोचिंग सेंटरों के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं, जिनमें अनिवार्य रूप से पंजीकरण, छात्रों की सुरक्षा, शिकायत निवारण तंत्र और निगरानी व्यवस्था शामिल हो। इसके साथ ही हर जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय निगरानी समिति गठित करने को कहा गया है, जो इन नियमों का पालन सुनिश्चित करेगी।
भीलवाड़ा में कोचिंग सेंटरों की हकीकत
भीलवाड़ा शहर में दर्जनों कोचिंग संस्थान संचालित हो रहे हैं, जहां अभिभावकों की जेबें तो भारी फीस के नाम पर खाली की जा रही हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अधिकतर कोचिंग सेंटरों में न तो लाइब्रेरी है, न ही वेंटिलेशन या बैठने की पर्याप्त व्यवस्था। वहीं मानसिक तनाव और प्रतिस्पर्धा के दबाव के चलते कई छात्र अवसाद में जा रहे हैं, लेकिन उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संस्थानों द्वारा कोई प्रयास नहीं किए जाते।
मानसिक स्वास्थ्य पर समान नीति जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने सभी शिक्षण संस्थानों को आत्महत्या रोकने के लिए एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनाने और उसे लागू करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट का मानना है कि छात्रों पर पढ़ाई का दबाव, असफलता का डर और घर से दूर होने की स्थिति उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देती है, जिससे आत्मघाती कदम उठाने की घटनाएं सामने आती हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट भी सख्त
राजस्थान हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि जब तक कोचिंग कानून नहीं बनता, तब तक केंद्र सरकार की गाइडलाइन और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए। न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और चन्द्रप्रकाश श्रीमाली की खंडपीठ ने कोचिंग संस्थानों से आत्महत्या रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी तीन सप्ताह में मांगी है।
केंद्र सरकार को 90 दिन में रिपोर्ट
कोर्ट ने केंद्र सरकार को 90 दिन में हलफनामा पेश कर यह बताने को कहा है कि उसने राज्यों के साथ समन्वय, निगरानी तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर क्या प्रगति की है।
भीलवाड़ा में चल रहे कोचिंग संस्थानों की अनियमितताएं और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की निगरानी में आ चुकी हैं। अभिभावकों को उम्मीद है कि इस आदेश के बाद न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी, बल्कि उनके बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्थिति को भी प्राथमिकता दी जाएगी।
