मुक्ति रूपी कन्या से विवाह की क्रिया है उपधान तप : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि रविवार 28 सितंबर को प्रात:9.15 बजे जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज संघ की चातुर्मासिक विदाई समारोह का आयोजन होगा। साथ ही मुख्य लाभार्थी परिवार का बहुमान होगा। वहीं 29 सितंबर को प्रात: 5.45 बजे चैत्य परिपाटी सह गुरु भगवंतों का विहार महावीर विद्यालय-चित्रकूट नगर के लिए होगा तथा 2 अक्टूबर से सामूहिक उपधान तप प्रारंभ होगा।
शनिवार को मालदास स्ट्रीट आराधना भवन में मरुधर रत्न आचार्य रत्नसेनसूरी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार वर-वधु के विवाह की क्रिया मात्र मनुष्य जन्म में ही होती है, क्योकि देवता और पशु के जीवन में पति-पत्नी जैसा व्यवहार होने पर भी उनके बीच में विवाह की क्रिया नहीं होती। विवाह क्रिया का प्रतीक है वरमाला। उसी प्रकार हमारी आत्मा का मुक्ति रूपी कन्या के साथ विवाह भी मात्र मनुष्य जन्म के माध्यम से ही हो सकता है। मुक्ति रूपी कन्या से विवाह की क्रिया का प्रतीक है "मोक्ष माला"। इस मोक्षमाला की प्राप्ति का साधन उपधान तप की महा मंगलकारी आराधना है। उपधान तप की मंगल आराधना पौषध व्रत के द्वारा की जाती है।. पौषध व्रत में श्रावक की दिनचर्या, वेशभूषा और आचार मर्यादा साधु जीवन के समान ही है। जैसे व्यापारी चाहे सोने-चांदी का हो, या चूने-पत्थर और रेती का हो, दोनों का लक्ष्य एक ही है-पैसा कमाना। वैसे ही जीवन चाहे साधु का हो या श्रावक का हो दोनो का लक्ष्य भी एक ही है-"मोक्ष की प्राप्ति"। साधु जीवन में जीवन भर कठोर व्रत-नियमों का पालन किया जाता है परंतु श्रावक के जीवन में इतने कठोर व्रत -नियम का पालन नहीं है। इसलिए उपधान तप के माध्यम से कुछ दिनों तक साधु जीवन के आचारों का पालन अवश्य कर सकता है।