अनीति के धन में कलयुग का वास : पुष्कर दास महाराज

By :  vijay
Update: 2025-05-19 18:10 GMT
अनीति के धन में कलयुग का वास : पुष्कर दास महाराज
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 उदयपुर  । गौतम ऋषि भवन, सेक्टर 4 में श्री पुष्कर दास जी महाराज के द्वारा चल रही संगीतमय भागवत कथा के दूसरे दिन कहा आगे कहा कि भागवत अठारह हजार श्लोक का ग्रंथ हे व्यास जी ने इस ग्रंथ को अपने बेटे शुकदेव जी को सौंपा । शुकदेव जी राजा परीक्षित का उद्धार करने के लिए शुकताल में आए और 7 दिन भागवत की कथा सुनाई और कहा राजा आपका संसार में जहा जहा मन अटका है वहा से मन को निकालो और एकाग्र करो तभी कथा समझ आएगी और जीवन का कल्याण होगा। कथा में आगे सोनक जी सूत जी से कहते हे आपका ज्ञान करोड़ों सूर्य के प्रकाश के समान है। आनंद का पल ही ईश्वर का रूप हे द्य सदगुरु तो अच्छा मिल जाता है लेकिन विवेक की जरूरत है। विवेक मिलता है सिर्फ सत्संग में। भागवत में कलयुग का स्थान चार जगह बताया है स्वर्ण (सोना) में,जुआ में,शराब में,बाजारू स्त्री में । शास्त्रों में सप्त सरोवर,संगीत के 7 स्वर, इसलिए भागवत की कथा 7 दिवसीय रखी जाती हे द्य राजा परीक्षित के पास भी 7 दिन की अवधि थी। परीक्षित को कथा में रस इसलिए लगा क्यूं कि राजा की मौत निकट थी। वे दिन जिसकी मौत निकट हो उसका मन कथा में ओर भजन में लगेगा । राजा ने शुकदेव जी से प्रार्थना की आप मेरी मुक्ति करो मेरे पास 7 दिन का समय बचा है द्य राजा ने अनीति के धन का मुकुट पहना इसलिए उसकी बुद्धि बिगड़ी और ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाला और ऋषि के बेटे को जब पता चला तो उसने राजा को श्राप दिया। आगे मनु शतरूपा प्रसंग का वर्णन किया। उत्तानपाद की दो रानी होती है सुरुचि और सुनीति, सत्संग में बैठे वही सुनीति है। सांसारिक सुख सुविधा में जो होता है उसे सुरुचि कहते है। जो सुनीति (ज्ञान) के आधीन होता है उसे शाश्वत सुख (ध्रुव) मिलता है । सुनीति ने अपने बेटे ध्रुव को अच्छे संस्कार दिए तभी बालक 5 वर्ष की उम्र में भक्ति करने को चलता है। ध्रुव को रास्ते में नारद जी मिलते हे ओर कहते हे बेटा तेरी उम्र तो अभी खेलने की हे तू अभी से भक्ति की ओर क्यूं चला परन्तु बालक कहता हे भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती। बालक की इस बात से नारद जी प्रसन्न होते हे ओर कहते तुझे प्रभु अवश्य मिलेंगे । नारद जी बालक को मंत्र दीक्षा देते हे ओम नमो भगवते वासुदेवाय और इसी मंत्र को ध्रुव जी जाप करते हे भगवान विष्णु बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें जंगल में दर्शन देते है। अंत में भगवान विष्णु ओर बालक ध्रुव की सुंदर झांकी का मंचन किया गया।

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