जीवन की उज्जवलता अविवेक को त्यागने से ही सम्भव- जिनेन्द्र मुनि

Update: 2024-09-07 12:33 GMT

गोगुन्दा। विवेक में ही धर्म स्थित है। जहाँ विवेक है वहां धर्म हैऔर जहां अविवेक है वहां अधर्म है।विवेक में अद्भुत दिव्यता और निर्मलता है।जिसके पास विवेक की दृष्टि है,वह स्वयं तो समस्याओ से बचता ही है,दुसरो को भी बचाता है।विवेक जीवन के प्रत्येक अभिशाप को वरदान के रूप में परिवर्तित करता है। जितेंद्र मुनि ने कहा की अविवेकी व्यक्ति के पास में कितना ही ज्ञान क्यो न हो,वह उस ज्ञान को क्रियात्मक रूप नही देगा।असावधानी विविध समस्याओं का कारण है।

सभा में प्रवीण मुनि ने कहा कि आज जिनेश्वर भगवंतों का सानिध्य हमे प्राप्त नही है,किंतु हम सभी का यह सौभाग्य है कि आज उनकी कल्याणी वाणी विधमान है।जीव को समुचित रूप से जीने के लिए जो निर्देश जिनवाणी के द्वारा हमे प्राप्त होते है,उन्हें यदि निष्ठापूर्वक स्वीकार करके चलता है तो उसके जीवन का विकास सुनिश्चित है।

रितेश मुनि ने कहा कि जब प्रज्ञा का जागरण होता है तो जीवन की शैली ही बदल जाती है।उसके सम्पूर्ण व्यवहार में परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। प्रज्ञा जागृत होते ही दशरथ ने मात्र एक स्वेत केश को देखकर अपने आपको संयमी जीवन जीने के लिए प्रस्तुत किया। प्रभातमुनि ने कहा कि नारी क्या है? यह विचारणीय नही है, बल्कि विचारणीय यह है कि नारी क्या नही है। नारी प्रत्येक क्षेत्र में हमारे सामने आती है सद्गुणों की चर्चा करें तो वहां भी नारी पुरुष से आगे निकल जाती है। कतिपय विद्वानों ने तो यहां तक कहा है कि आदि से विश्व नारी की गोद मे क्रीड़ा करता आया है।नारी के बिना पुरुष अपूर्ण है और पुरुष के बिना नारी। संवत्सरी महापर्व पर उपवास,प्रतिक्रमण दान आदि की महिमा है। इस पर जीवदया प्रेमियों ने जीवदान में राशि भेंट की गई। 

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