साधु जीवन तो संपूर्ण त्याग प्रधान है : साध्वी जयदर्शिता

Update: 2025-08-06 10:40 GMT

 उदयपुर । तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में   जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता , जिनरसा  , जिनदर्शिता  व जिनमुद्रा  महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की।

आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में बुधवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता ने प्रवचन में बताया कि साधु जीवन तो संपूर्ण त्याग प्रधान है। पाप प्रवृत्तियों का संपूर्ण त्याग होता है। गृहस्थ जीवन में पाप के बिना चलता नहीं है, परंतु पाप का भय तो उसे सतत रहना ही चाहिए। पाप की प्रवृत्ति कम से कम करने की कोशिश करना और पाप प्रवृत्ति करते समय भी हृदय में पाप का डंक रखते हुए सावधानी रखना उमी का नाम यतना है। जगत् के जीव मात्र के कल्याण की पवित्र भावना यह तीर्थकर की माता है अर्थात् जिस प्रकार माता पुत्र रत्न को जन्म देती है, उसी प्रकार जब अंतरात्मा में जगत के जीव मात्र के कल्याण की भावना पैदा होती है, तब आत्मा तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित करती है, और उस कर्म के उदय से आत्मा तीर्थकर बनती है। इससे यह सिद्ध हुआ कि सेवि जीव करूं शासनरसी" की पवित्र भावना आत्मा को तीर्थंकर बनाती है। साधु की माता पाँच समिति और तीन गुप्ति स्वरुप अष्ट प्रवचन माता है तो श्रावक की माता चलना जमणा है। यतना अर्थात् सावधानी। गृहस्थ को अपने जीवन निर्वाह के लिए जो पाप प्रवृत्ति करनी पड़ती है उनमें जितना शक्य हो हिंसा की प्रवृत्ति से बचने की कोशिश करना। जहाँ जयणा होगी, वहाँ मन के परिणाम कर्कश सर्वात कठोर नहीं होंगे।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

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