कार इंश्योरेंस क्लेम जल्दी पास कराने के आसान टिप्स

भारत में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत कार इंश्योरेंस जरूरी है। ज्यादातर लोग इंश्योरेंस करा कर निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन क्लेम के समय छोटी गलतियां बड़ी परेशानी बन जाती हैं। कभी रकम कम मिलती है तो कभी पूरा दावा खारिज हो जाता है।
क्लेम रिजेक्शन की आम वजहें होती हैं, गलत जानकारी देना, एक्सपायर पॉलिसी पर क्लेम करना या नियमों का पालन न करना। लेकिन सही प्रक्रिया अपनाकर आप क्लेम आसानी से और बिना झंझट के पा सकते हैं।
चलिए जानते हैं, कार इंश्योरेंस क्लेम करते समय कौन-सी आम गलतियों से बचना चाहिए और किन स्मार्ट टिप्स को अपनाकर आप अपना कार इंश्योरेंस क्लेम आसानी से पास करवा सकते हैं।
कार इंश्योरेंस क्लेम में होने वाली आम गलतियां
आपको जानकार हैरानी होगी की इन साधारण बातों से भी आपको कार इंश्योरेंस क्लेम में मुश्किलें हो सकती हैं। जैसे-
1. अक्सर दुर्घटना होने पर किसी भी लीगल मामले से बचने के लिए लोग पुलिस को बताते नहीं जिससे कई बार क्लेम के दौरान मुश्किल होती है। इससे ये सिद्ध होता है की गाड़ी को नुकसान दुर्घटना से हुआ है।
2. कई लोग हादसे के बाद जल्दबाज़ी में गाड़ी की मरम्मत करवा लेते हैं और बाद में इंश्योरेंस कंपनी को बताते हैं। ऐसा करने से सर्वेयर को सही से जांच करने का मौका नहीं मिलता और क्लेम अटक सकता है।
3. अगर गाड़ी चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस या गाड़ी की RC नहीं है तो इंश्योरेंस क्लेम करने में तकलीफ हो सकती है।
4. अगर आपके पास दुर्घटना के सबूत नहीं है तब भी मुश्किलें हो सकती है। एक्सीडेंट होते ही आपको कुछ तस्वीरें या विडिओ लेना ज़रूरी है जैसे गाड़ी की हालत, दुर्घटना की जगह, कोई चोट या नुकसान।
5. दुर्घटना की पूरी जानकारी न देने से भी क्लेम रद्द हो सकता है। साथ की लोग पॉलिसी खरीदते वक़्त भी बातें छुपाते है, इससे भी आपका क्लेम फंस सकता है।
6. कई लोग डर के मारे भागना सही समझते है या गाड़ी को जगह से हटा देते हैं। ऐसा करने से क्लेम से मिलने वाला पैसा कम हो सकता है या क्लेम रद्द होने की संभावना होती है।
क्लेम करने का सही तरीका
अब जो आप इन गलतियों को समझ चुके हैं, बिल्कुल आसान शब्दों में समझिए करना क्या है।
1. हड़बड़ाहट में अक्सर बनते काम बिगड़ जाते हैं इसलिए शांत रहें। अपनी और अपने साथ वालों की सुरक्षा निश्चित करके आप पहले मेडिकल हेल्प के बारे में सोचें।
2. घटना की जानकारी 24 घंटे के अंदर इंश्योरेंस कंपनी को दें। मुमकिन हो तो घटना की जगह से ही कॉल करें। सामने वाले की गाड़ी की डिटेल्स भी नोट करके रखें।
3. FIR नुकसान का प्रूफ हैं। दुर्घटना और चोरी के मामले में भी इंश्योरेंस कंपनी और पुलिस को जल्द से जल्द से सूचित करें।
4. नुकसान की तस्वीरें सबूत के तौर पर इकट्ठा करें।
5. इंश्योरेंस कंपनी आपके नुकसान का जायज़ा लेने के लिए एक सर्वेयर भेजेगी।
6. पॉलिसी, ड्राइविंग लाइसेन्स, RC, फ़ोटोज़, FIR की कॉपी जैसे सभी ज़रूरी दस्तावेज़ कंपनी को क्लेम के लिए सबमिट करें।
अब क्लेम के दौरान आपने कुछ शब्द सुने होंगे जैसे डेप्रिसिएशन या IDV। इनकी वजह से भी आपके क्लेम पर फ़र्क पड़ता हैं। आइए समझते हैं।
इंश्योरेंस में डेप्रिसिएशन और IDV
डेप्रिसिएशन का सीधा मतलब हैं किसी भी खरीदी हुई चीज़ की समय के साथ कीमत का कम होना। ये आपके सभी सामानों पर लागू होता हैं जैसे मोबाईल, गाड़ी, सोफ़ा, टेबल, मशीन। समय के साथ सामान घिसने लगते हैं जिससे उनकी मार्केट वैल्यू घटती जाती है।
IDV (इन्शुर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू) का मतलब है आपकी गाड़ी की मार्केट में कीमत। एक नई गाड़ी की कीमत ज़्यादा होती है इसलिए उसकी IDV भी ज़्यादा होगी। एक साल बाद गाड़ी में डेप्रिसिएशन की वजह से उसकी कीमत कम होने लगेगी तो उसी मुताबिक उसकी IDV भी कम होगी। मतलब अगर आपकी गाड़ी चोरी हो जाती है या इस कदर खराब हो जाती है की उसे सुधारा नहीं जा सकता हो, तो जितनी IDV तय है उतनी रकम इंश्योरेंस कंपनी आपकी देगी।
क्यों ज़रूरी है IDV को समझना?
IDV का असर आपके क्लेम और आपकी जेब पर पड़ता है। मतलब-
● सही मुआवज़ा मिलना- आपकी गाड़ी की IDV तय करती है आपको नुकसान होने पर कितनी रकम मिलेगी। गाड़ी के चोरी होने या पूरी तरह से खराब होने पर (टोटल लॉस) इंश्योरेंस कंपनी आपको ज़्यादा से ज़्यादा IDV जितना ही पैसा देगी।
● प्रीमियम- जब आपकी गाड़ी की IDV ज़्यादा होती है तो आपको प्रीमियम भी ज़्यादा भरना होता है। ऐसे में नुकसान होने पर आपको कवरेज भी ज़्यादा मिलता है। अगर आप प्रीमियम बचाने के लिए कम IDV का चुनाव करते हैं तो नुकसान होने पर आपको रकम भी कम ही मिलेगी।
● क्लेम सेटलमेंट- भले ही आपका नुकसान ज़्यादा हुआ हो अगर आपका IDV कम है तो आपको उम्मीद से कम ही रकम मिलेगी। इसलिए सही IDV का चुनाव करें।
क्लेम सेटलमेंट के प्रकार
क्लेम सेटलमेंट 2 तरह से होता है।
1. कैशलेस क्लेम सेटलमेंट- इसमें गाड़ी की मरम्मत का बिल सीधा इंश्योरेंस कंपनी को भेजा जाता है। आपको कोई पैसा देने की ज़रूरत नहीं।
2. रीइम्बर्समेंट क्लेम सेटलमेंट- इसमने आप खुद गाड़ी की मरम्मत का बिल भरते हैं और फिर बिल इंश्योरेंस कंपनी में जमा करते हैं। कंपनी आपके अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करती है।
क्लेम सेटलमेंट में कवरेज
1. थर्ड पार्टी लाइबिलिटी- दुर्घटना में आपकी गाड़ी से किसी का नुकसान हो जाता है तो इंश्योरेंस कंपनी उनके नुकसान की भरपाई करती है, आपकी नहीं।
2. ओन डैमेज कवर- ये कवर होने से आपकी गाड़ी को हुआ नुकसान भी कवर किया जाता है।
3. जीरो डेप्रिसिएशन- ये कवर होने से क्लेम के दौरान डेप्रिसिएशन काटा नहीं जाता।
4. कॉम्प्रिहेंसिव कवर- इसमें थर्ड-पार्टी लाइबिलिटी, OD, चोरी, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे सभी नुकसान कवर होते हैं।
छोटी -छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो आपका क्लेम सेटलमेंट आसान हो जाता है। इसके साथ इन बातों को भी समझें, जैसे-
● पॉलिसी खरीदते समय सही जानकारी दें।
● सही IDV का चुनाव करें।
● डॉक्युमेंट्स हमेशा अपडेटेड रखें।
● पॉलिसी में ज़ीरो डेप्रिसिएशन कवर शामिल करें।
● दुर्घटना होते ही इंश्योरेंस कंपनी को बताएं और फॉलो-अप लेते रहें।
निष्कर्ष
कई बार खर्चें उम्मीद से ज़्यादा निकल आते हैं। इससे बजट बिगड़ जाता है। सही कार इंश्योरेंस लें और क्लेम प्रोसेस को समझें ताकि ज़रूरत पड़ने पर आपका दावा छोटी सी गलती से खारिज न हो जाए।
