उन्नाव हादसे के बाद भी राजस्थान से दौड़ती ट्यूरिस्ट परमिट बसों पर नहीं कसा गया शिकंजा, शायद हादसे का इंतजार

Update: 2024-07-11 09:35 GMT

भीलवाड़ा । उत्तर प्रदेश के उन्नाव बस हादसे का शिकार हुई और 18 लोगों ने जान गवां दी। राजस्थान में भी इस तरह की कई बसें बेलगाम दौड़ रही है। बस के ड्राईवर नशे में होते है लेकिन रात में कोई चैकिंग कहीं नहीं होती। हाइवे पर दौडऩे वाली इन ट्यूरिस्ट परमिट वाली बसों के आकार भी बदले हुए है। कई बसें तो डबल डेकर टाइप में बना दी गई है। इससे अनबैलेंस होकर दुर्घटनाग्रस्त होने का भी अंदेशा बना रहता है। लेकिन इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद राजस्थान के जिम्मेदार विभाग ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया और वह मूकदर्शक बना हुआ है। शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार है ।

बिहार की तरह ही राजस्थान में भी हर छोटे बड़े कस्बे और शहर से दर्जनों बसें रोजना दूसरे राज्यों में भारी तादाद में लोगों को ले जाती है। जानकार बताते है कि सिर्फ वही बस खटारा नहीं थी, जो उन्नाव में हादसे का शिकार हुई। सिर्फ वही इकलौती बस नहीं थी, जो नियमों को तोड़कर रोज राज्य और दूसरे प्रदेशों का सफर कर रही। भीलवाड़ा हलचल की पड़ताल में पता चला कि भीलवाड़ा, चित्तौड़, अजमेर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर ही नहीं बल्कि राजस्थान के अधिकांश जिलों और कस्बों से कई लंबी दूरी की बसें टूरिस्ट परमिट पर चल रही हैं। मगर, सवारियों को आम परमिट की तरह ले जाया जा रहा। इतना ही नहीं कई बसों के ढांचे में भी परिवर्तन कर उसके आकार को बढ़ा दिया गया है।

सूत्रों की माने तो नियमित रूप से दिल्ली, मुंबई, जयपुर, आगरा, कानपुर, अहमदाबाद, सूरत के साथ ही अन्य राज्यों और शहरों के लिए संचालित होने वाली बसों को कोई आम परमिट नहीं है। इन बसों में मानक का ख्याल बिलकुल नहीं रखा जाता है। लंबी दूरी की इन बसों में से ज्यादातर में पुरानी बसों में ही मनमाना बदलाव कर डबल डेकर बनाकर चलाई जाती हैं। बस में बदलाव के लिए एमवीआई से मंजूरी भी नहीं ली जाती। बिना मंजूरी मनमाने बदलाव के बाद भी अवैध बसों का फिटनेस एमवीआई कार्यालय से पास हो जाता है और इस आधार पर इन्हें टूरिस्ट परमिट मिल जाता है। टूरिस्ट परमिट पर ही ये लोग परिचालन करते है। इन बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को ठूंसकर बैठाया जाता है। एक बस में 70 से 80 यात्रियों को ढोया जाता है। मनमाना बदलाव कर डबल डेकर बनाई गई बसों को लोहे के चादर और प्लाइवुड से पैक कर दिया जाता है। इनमें न इमरजेंसी गेट बनाया जाता और न स्पीड गवर्नर लगा होता है।

यह भी कारनामा

वीडियो कोच बसों में जहां स्लीपर तो होते ही है लेकिन स्लीपर के ऊपर छत पर लगेज ढोया जाता है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ऐसी बसों में एक पूरा तहखाना भी होता है। आम बसों में वैसे तो एक डिग्गी होती है लेकिन इन बसों में पूरी की पूरी जगहों में एक बड़ा तहखाना दो तीन टुकड़ों में बनाया जाता है जिसमें माल ढोया जाता है। यानि एक बस 52 सीटर में डबल डेकर करके 70-80 सवारियों के अलावा छत पर तहखाने में तो लगेग भरा ही जाता है। यही नहीं कई बार तो गैलेरी भी लगेज से अटी पड़ी होती है। मध्यप्रदेश से राजस्थान की ओर आने वाली अधिकांश बसों में विभिन्न अनाज व दालों और मसालों के कट्टे गैलेरी में ही ढोये जाते है। ऐसे में नियमों के विपरीत तीन से चार गुणा वजन बढ जाता है और वही दुर्घटना का कारण बनता है।

ऐसे में जिले से प्रत्येक दिन दिल्ली समेत देश के अन्य शहरों के लिए नियमों को ताक पर रखकर टूरिस्ट परमिट पर दर्जनों बसों में यात्रियों को ढ़ोया जा रहा है। इन बसों के संचालन के लिए जिला मुख्यालय ही नहीं, बल्कि कस्बों के मुख्यालयों पर भी टिकिट काउंटर भी खुल हुए हैं। यहां से प्रत्येक दिन विभिन्न राज्यों में जाने के लिए बसों की टिकट कटती है। काउंटर खोलने, टिकट काटने से लेकर सवारी बैठाने तक में रोज नियमों की खुलेआम अनदेखी हो रही है।

टूरिस्ट परमिट होने के कारण स्टैंड से परिचालन नहीं होता

जानकारों की माने तो दिल्ली जाने वाली अधिकांश बसों का परिचालन चौक-चौराहों और फॉर लेन के किनारे से हो रहा है। टूरिस्ट परमिट होने के कारण स्टैंड से इनका परिचालन नहीं होता है। स्टैंड से स्थाई परमिट वाली बसें ही खुलती हैं।

राजस्थान से जाने वाली बसों की जांच नहीं हो रही है

उन्नाव हादसके बाद राजस्थान से अलग अलग जिलों से ल्ली कई दर्जन बस जाती है। इसी के में दिल्ली जा रही डबल डेकर बस आगरा एक्सप्रेसवे पर उन्नाव जिले में दुर्घटना की शिकार हो गयी और इस दर्दनाक हादसे में बस में सवार 18 यात्रियों की मौत हो गयी। हादसे के बाद बस के सुरक्षा मानकों पर सवाल उठने लगा है। लोग भी हादसा होने के बाद सीख नहीं ले रहें हैं। उन्नाव में हुए हादसे के बाद यह सुगबुगाहट भी सुनने को मिली है कि राजस्थान से जाने वाली कई बसों के परमिट भी हादसे वाले बस की तरह हो सकते है। यह बस राजस्थान के जोधपुर के एक ट्रावेल्स द्वारा संचालित की जा रही थी जबकि परमिट किसी किसान के नाम है। जिसे तो यह भी पता नहीं है कि उसके नाम बस भी है। उसे जब पूछताछ हुई तो पता लगा कि वह कभी जोधपुर में उस ट्रावेल्स कम्पनी के यहां नौकरी करता था। 

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