बागोर में महोत्सव के अंतर्गत गौरवगान व संरक्षण कार्यशाला आयोजित

By :  vijay
Update: 2024-10-18 12:30 GMT

 भीलवाड़ा  जलधारा विकास संस्थान द्वारा साहित्य संस्थान, जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ( डीम्ड यूनिवर्सिटी) के तत्वाधान में माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय एवं शिक्षा विभाग की सहभागिता से श्री नाकोड़ा इंफ्रा इंफ्रा स्टील प्राइवेट लिमिटेड के प्रयोजन व आरसीएम समूह के सहयोग से भीलवाड़ा पुरा प्राचीन वैभव महोत्सव के तृतीय दिवस बागोर में महोत्सव आयोजित हुआ । महासतिया टीले पर स्थित बागोर की प्राचीन उत्खनन साइट को विशेषज्ञों, शोध विद्यार्थियों व छात्रों ने अवलोकन, कर अन्वेषण किया । जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चन्द्र नवहाल ने बताया कि महोत्सव के एक दिन पूर्व डा.जीवन सिंह खरकवाल , निदेशक, साहित्य संस्थान, उदयपुर के नेतृत्व में डा. नारायण पालीवाल, डा. चिन्तन ठाकर, शोध विद्यार्थी सुपर्णा डे , संगीता सैनी , पायल सेन , राहुल मीणा , मोनिस पालीवाल, जितेन्द्र तबीयार, दीप्ति पानेरी, उर्मिल व्यास , इतिहास संकलन समिति, उदयपुर के महासचिव चैन शंकर दशोरा की टीम ने महासतिया स्थित टीले पर सभ्यता स्थल पर अन्वेषण किया ।

आज पुरातत्ववेत्ता ओम प्रकाश कुक्की एवं भूवैज्ञानिक डॉक्टर के के शर्मा, महेश नवहाल अध्यक्ष जलधारा विकास संस्थान, उत्खनन के दौरान कार्य करने वाले रामपाल माली, समाजसेवी सत्यनारायण जाट, इतिहास शिक्षक पारसनाथ योगी एवं विद्यालय के चयनित छात्रों ने साइट का अवलोकन निरीक्षण एवं साइट को भली भांति घूम-घूम कर देखा । साइट के मुख्य चारों ओर बने हुए पिट, वहां यत्र वत्र बिखरे पुरा पाषाण काल के पुरा अवशेषों को भी देखा।

जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चन्द्र नवहाल ने यहां कहा कि बागोर साइट के उत्खनन के समय मिले साक्ष्य भारत में किसी भी साइट पर मिले साक्ष्य में सर्वाधिक है। बागोर मानव जनबसाव की प्राचीनतम सभ्यता रही है । बागोर में महासतिया का टीला और उसके आसपास का क्षेत्र नदी घाटी सभ्यता का गवाक्ष है । मानव जीवन के सबसे प्रथम कृषि एवं पशुपालन के प्रमाण यहीं मिले हैं। यह काल पाषाण काल और ताम्र कल के मध्यकाल का था जिसकी अवधि 5600 साल तक जाती है । इस काल में मानव ने पाषाण के साथ-साथ तांबे को अपने जीवन में अपनाना आरंभ किया था। 1967 से 1970 के बीच में दक्कन कॉलेज पुणे द्वारा वी एन मिश्रा के नेतृत्व में यहां उत्खनन किया गया था। उस समय यह सारे प्रमाण मिले थे । यहां की उत्खनन की रिपोर्ट को अत्यंत सम्मान के साथ पढा जाता है । विशेषज्ञों ने कहा कि ग्राम वासियों को चाहिए कि इस क्षेत्र के चारों ओर तारबंदी करके इस साइट को सुरक्षित कर देवें।

इसके पश्चात विद्यालय में कार्यशाला हुयी ।कार्यशाला को बूंदी के पुरा अन्वेषक ओमप्रकाश कुकी ने संबोधित किया । उन्होंने कहा कि बागोर में आना साइट को देखना और साइट से संबंधित साक्ष्यो के साथ अनुभुति करना बहुत गौरव का विषय है । इस साइट पर पाषाण काल से ताम्र काल का जीवन देखा है । इसने विश्व को मानव जनजीवन की जानकारी दी है। इसके रखरखाव वह सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मानव जनजीवन यही से मानव बना आरंभ हुआ था क्योंकि उसने खेती और पशुपालन सिखाया।

इस कार्यशाला को डॉक्टर के के शर्मा भूवैज्ञानिक ने भी संबोधित किया।   के के शर्मा ने कहा कि यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण एवं धरोहर के रूप में बहुमूल्य है । इस स्थल की रक्षा होनी चाहिए। उन्होंने छात्रों से यह भी अनुरोध किया कि विगत 5 वर्षों का यह सभ्यता स्थल आगे 5000 साल तक लोगों तक पहुंचे इसलिए हम इस हमें इसका संरक्षण करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा की विश्व में जितना अपनी धरोहर की रक्षा का भाव जगह है उसकी तुलना में हमारे यहां बहुत कम है । सभा में आरके जैन, सत्यनारायण जाट ग्रामवासी एवं अन्य कई महानुभाव उपस्थित थे। कार्यशाला पश्चात बागोर उत्खनन से सम्बन्धी पत्रक वितरित किया गया । 

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