*आत्मा का स्वरूप आकाश की भांति है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
गोगुन्दा जब आत्मा के प्रति विश्वास गहरा हो जाता है।तभी मानव आस्तिकता के आंगन में पांव धरकर अमरता की और अग्रसर होता है।आत्मा के निर्माण के लिए जीवन निर्माण आवश्यक है।हर मानव अपने जीवन मे आत्मा का निर्माण चाहता है।परंतु पुरुषार्थ इसके अनुरूप नही करता है।आध्यात्मिक पुरुषार्थ अपने सुख के लिए करता है।आत्मा तो इस देहरूपी भव्य महल का ऐसा दिव्यप्रकाश है।जो इस देहरूपी महल के भीतर बहार दोनों और प्रकाशित होता है।अध्यात्म का संसार तो अद्भुत एवं निराला है कि इसके प्रवेश करने पर आत्मा का निश्चित ही उत्कर्ष होता है।दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा मिल जाता है।जिस तरह सोना अग्नि में तपकर कुंदन बन जाता है।तपाने पर उसका मैल छूट जाता है।उसी प्रकार अध्यात्म का सहारा पाकर आत्मा निखर उठती है।आसक्ति दुःखो की जड़ है ,जो आसक्ति से अलग हो गया,वह सांसारिक दुःखो से अलग चला जाता है।उपरोक्त विचार उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने प्रवचन माला में व्यक्त किये।जैन मुनि ने कहा जब से भारत मे विश्वास की शक्ति बढ़ी है तब से उसकी आध्यात्मिक शक्ति का हास् होने लगा है।देश मे हिंसा का वातावरण बन गया है।जाति, भाषा,लिंग व सम्प्रदाय का विष फैल गया है।सत्य धर्म के प्रति आस्था में हुई कमी ने मानव जीवन को झकझोर कर रख दिया है।मुनि ने कहा कि आज बालको के हाथों में अच्छी पुस्तकें नही है,बल्कि हिंसात्मक शस्त्रों की नकल पर बने खिलौने है।नकली पिस्तौल से खेलने वाले बालक बड़े होकर असली पिस्तौल उठा ले इसमें किसका दोष?बालक का ह्दय कोमल होता है।बच्चो में अनुकरण की भावना होती है।वे जो देखते है,वही करते है और वही करने की चेष्ठा करते रहते है।हमे आने वाली पीढ़ी को यथार्त से परिचित कराये।अध्यात्म के सर्वोच्च शिखर पर खड़ा कर जीवन को सुंदर बनाये।मुनि ने कहा जो सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है।वही भ्रमित होकर जीवन के लक्ष्य से भटक जाता है।यदि हम निज आत्मा स्वरूप को जान ले तो हमारे सारे मनोरथ सहज में ही सिद्ध हो सकते है।जैन धर्म का तो प्रमुख लक्ष्य ही आत्म स्वरूप की भांति है।मुनि ने कहा गुरु नानक के पाव मन्दिर की और थे,पुजारी ने आकर कहा-बाबा तुम कैसे संत हो?तुमारे पैर मन्दिर की ओर है।नानक जी ने पैर मन्दिर की मूर्ति के विपरीत कर दिए।पुजारी जिधर नानक के पैर करता मूर्ति उधर ही जाती।मुनि ने कहा परमात्मा सर्वत्र और सर्वव्यापक है।प्रत्येक आत्मा में उसी का रूप है।प्रभातमुनि ने कहा आज के समय ने नकली का बोलबाला है।असली नही मिलता है।मिलावट कर लोगो के जीवन से खिलवाड़ कर रहे है।हर चीज में मिलावट की जाती है।आज का मनुष्य जीवन पर स्वास्थ्य संबंधी उलझने बढ़ती जा रही है।हमे प्रकाश की और अग्रसर होना है।अंधकार से दूर रहना है।मुनि ने कहा अंधविश्वास घोर अंधकार है।जो आत्मा का साक्षात्कार नही होने देता है।विलपावर को समाप्त कर देता है।आज व्याख्यान में बाबूलाल कस्तूरी ,रमेश दोषी अशोक मादरेचा इंदरमल बम्बोरी नंदलाल सोलंकी सोहनलाल मांडोत शांतिलाल भोगर गलिवाला सहित श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे। उमरणा महावीर जैन गोशाला स्थित संतो का चातुर्मास में प्रतिदिन श्रावको का आवागमन हो रहा है।