आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता मौजूद-जिनेन्द्रमुनि मसा

By :  prem kumar
Update: 2024-11-09 09:20 GMT

 गोगुन्दा BHNश्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में उमरणा महावीर गोशाला स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने आज प्रवचन माला में कहा कि बीज का पूर्ण आंतरिक विकास विशाल वृक्ष है।जिसका अस्तित्व छोटे से बीज में मौजूद है।उसी प्रकार हमारी आत्मा का पूर्ण विकास ही परमात्मा के रूप में परिवर्तित होता है।हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता मौजूद है ।हर आत्मा को परमात्मा बनने का पूर्ण अधिकार है।आत्मा ही परमात्मा है।दोनों में फर्क सिर्फ इतना ही है कि परमात्मा अष्ट कर्मो से मुक्त है और हमारी आत्मा पर आठ कर्मो का संचय है।कर्मो से मुक्त होने के लिए स्वयं को सम्यक पुरुषार्थ करना होगा।कर्मो से इस प्रकार मुक्त हो कि विश्व में एक ही परमात्मा है,दूसरा कोई नही बन सकता।राग द्वेष से परे जन्म मरण से मुक्त शाश्वत सुखो को पाये।परमात्मा मोक्ष में विराजमान है।उनके द्वारा अपनाये गये रत्नत्रय को अपनाने पर ही हमारी आत्मा का उत्थान होगा।मुनि ने कहा कि बहुत से लोग अज्ञानवश हाथ पर हाथ धरकर बैठे है।जो हीन भावना से ग्रसित है।हम क्या कर सकते है।सबकुछ तो भगवान के अधीन है।जैन संत ने दुःख के साथ कहा कि भारतीय संस्कृति महान है और भारत विश्व गुरु की दहलीज पर है।फिर भी आज के वर्तमान दौर में इतना डूबा हुआ है कि सब जगह दहशत का माहौल पैदा कर देता है।मुनि ने कहा भगवान की इच्छा के बिना कुछ संभव नही है ।तो फिर कर्मवाद का सिद्धांत फैल हो जाएगा।कर्म सर्वोपरि है।समाज मे आज भी समाज सुधारक और शिक्षण शास्त्री पर विश्वास न करके तांत्रिको पर विश्वास करने लगे है।तांत्रिक और ज्योतिषियों के कहना तो मानते है लेकिन साधु संतों को सुनने मात्र तक ही सिमित रखते है।उनके शब्दो पर विश्वास करने की बजाय अविश्वास पैदा करते है ।इसलिए आज यह दिन देखने को मिल रहे हैं। गुरुदेव ने कहा कि विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है।फिर भी भारत के लोग अंधश्रद्धा की बेड़ियों से जकड़े हुए है।इससे बाहर आना ही अंधश्रद्धा को चुनौती देना है।मुनि ने कहा आज बुद्धिजीवी भी अंधश्रद्धा को मानने लग गये है तो सामान्य लोगो का होगा?प्रवीण मुनि ने कहा कि आज के इस विज्ञानवाद के युग मे बहुत से व्यक्तियों की यह आस्था बन चुकी है कि हमारे पास जितने विलासिता के व सुखोपभोग के साधन प्रसाधन अधिक होंगे,उतना ही समाज में हमारा प्रभाव एवं दबदबा रहेगा और मान प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।रितेश मुनि ने कहा कि जिन्हें हम जानते है और जो हमे जानते है वे ही हमारे अपने है,यह संकुचित दृष्टिकोण है।यहां तो वसुधैव कटुम्बकम का नाद होता रहा है।प्रभातमुनि ने कहा महापुरुषों का जीवन महान होता है।जब वे संसार मे आते है तो अपने साथ खुशियों का अंबार लेकर आते है।

Similar News