झांतला माता में शारदीय नवरात्रा पर मेले में उमड़ रही भक्तोंं की भीड़

Update: 2024-10-08 07:23 GMT

भीलवाड़ा (सम्पत माली) । मेवाड़ के शक्तिपीठों में चित्तौड़गढ़ की झांतला माता का एक ऐसा स्थान है, जहां न केवल प्रदेश से, बल्कि दूर-दराज के अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में लकवा रोगी पहुंचकर रोग मुक्त हो जाते हैं। यहां की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से लकवा रोगी ठीक हो जाते हैं। वर्षों पुराने माता के मंदिर में इस तरह के चमत्कार की गाथा दूर-दूर तक फैली हुई है। जिसके चलते यहां वर्ष भर लकवा रोगियों की भीड़ देखने को मिलती है। कई बार तो अपनी मनोकामना पूरी होने और रोग मुक्त होने के बाद श्रद्धालु यहां मुर्गें का उतारा कर मन्दिर परिसर में छोड़ देते हैं।

चित्तौड़गढ़ जिले के गांव झांतला माता जी की पांडोली में स्थित है, जो चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। पांडोली गांव के तालाब की पाल पर बना यह मंदिर लोक आस्था का केंद्र है। यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व एक विशाल वट वृक्ष था, जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी। झांतला माता मंदिर में गुजरात, मुंबई, मध्य प्रदेश सहित राजस्थान के भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, अजमेर, राजसमंद सहित अन्य जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इसलिए इसे वटयक्षीणी देवी का मंदिर भी कहते हैं।

नवरात्रि में पांच प्रकार की होती है आरती

कालांतर में इस स्थान पर विक्रम संवत 1215 के लगभग एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया, जो आज भी स्थित है। अपने वर्तमान स्वरूप में इस मंदिर के गर्भ गृह में पांच देवियों की प्रतिमा स्थित है। इस मंदिर में चैत्र नवरात्रि व अश्विन मास की नवरात्रि के समय यहां विशेष प्रकार के मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के वक्त यहां विशेष रूप से पांच प्रकार की आरती होती है। यहां माताजी की सेवा गुर्जर समाज के एक ही परिवार के द्वारा लगभग 125 वर्ष से की जा रही है।

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