दर्द दूर करने के लिए पथरीले रास्ते से पहुंच रहे टीमरीया गांव, लकड़ी से हो रहा है उपचार
भीलवाड़ा (राजकुमार माली)। जंगल से गुजरता क"ाा पक्का और पथरीले रास्ते पर हर मंगलवार को कई लग्जरी और साधारण कारें मध्यप्रदेश के सिंगोली कस्बे से कुछ दूर आदिवासी टिमरिया गांव पहुंचती है। इनका कारों में सवार लोग अपना दुख दर्द दूर करने के लिए एक क"ो मकान तक पहुंचते है। जहां मेला सा लगता है। यहां एक व्यक्ति ऐसे लोगों की पीड़ा दूर करने के लिए न कोई दवा देता है और न ही कोई ईलाज बताता है सिर्फ दो बांस की लकडिय़ां दुख दर्द को पकड़वाता है। यदि लकडिय़ां मुड़ जाती है तो बालाजी उनका दुख दर्द दूर कर देते है और नहीं मुड़ती है तो फिर ईलाज कोई और ही होता है।
सिंगोली (एमपी) से कुछ दूर ग्राम पंचायत परलाई तक तो पक्की सड़क है लेकिन बाद में पथरीले रास्ते और जंगली इलाके से होकर टिमरीया गांव में मोहन भील के घर के बाहर लग्जरी कारें पहुंचती है। जहां सुबह सूरज उगने के साथ ही लोगों की कतारें लगने लग जाती है। यहां कई ऐसे लोग आते है जो अस्पताल का ईलाज करा चुके होते है लेकिन उनका दर्द दूर नहीं होता है। भीलवाड़ा हलचल की टीम भी वहां पहुंची। डरावने रास्ते से जैसे तैसे गांव पहुंचे । वहां भीलवाड़ा के साथ ही राजसमंद, उदयपुर और मध्यप्रदेश के लोगों का जमावड़ा नजर आया। भीलवाड़ा का एक दिव्यांग व्यक्ति कन्हैयालाल भी वहां मौजूद था । उसने कहा कि वह दो मंगलवार से यहां आ रहा है और उसका दर्द कुछ कम हुआ है। उनका कहना है कि यहां हर मंगलवार को सौ से डेढ सौ गाडिय़ों में सैंकड़ों लोग आते है जिनका ईलाज भी हो रहा है।
पुलिस लाईन निवासी मंजू देवी ने कहा कि वह भी अपनी नसों का ईलाज कराने के लिए यहां आई है और उनके साथ कई और लोग भी आये है।
बिना पैसे होता है ईलाज, बालाजी का है ईष्ट
टीमरिया गांव के मोहनलाल अपने छोटे से घर में ही बालाजी के ईष्ट के जरिए लोगों को दुख दर्द दूर करते है। वे इस काम के लिए एक रूपया भी नहीं मांगते है। लोग अपनी ई'छा से पांच दस रुपए भगवान के नाम पर रख जाते है वह बात अलग है। मोहनलाल ने बताया कि नस, डूटी और गोला का वह पिछले तेरह सालों से ईलाज कर रहे है। पिछले कुछ समय से वहां उपचार कराने वाले लोगों की संख्या में बढोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि वह बजरंग बली के ईष्ट के नाम पर लोगों का दुख दर्द दूर करते है। उन्होंने बताया कि उनके पास आने वाले लोगों के हाथ में लोंग और दो बांस की लकडिय़ां पकड़ाते है अगर यह लकडिय़ां मुड़ जाती है लोगों की नसों का रोग दूर हो जाता है और नहीं मुड़ती है तो ईलाज अस्पताल का ही कराना होता है। वे इस दौरान कुछ मंत्र भी बुदबुदाते है। वहां सिर्फ दो मंगलवार ही जाना होता है। दूसरे मंगलवार को ताम्बे की अंगूठी मंगवाई जाती है जिसे मंत्रो"ाारित कर कुछ समय बाद दुख दर्दियों को दे देते है। उनका कहना होता है कि मंगलवार से मंगलवार तक कोई वजन नहीं उठाना होता है।
लोगों के हो रहे है दुख दर्द दूर, बताया वाहन चालक ने
भीलवाड़ा के एक वाहन चालक अमरचंद ने बताया कि वह पिछले मंगलवार से अलग अलग लोगों को यहां लेकर आ रहा है। उनके दुख दर्द दूर हो रहे है। उसने बताया कि घुटनों का दर्द व अन्य नसों का दर्द दूर हो रहा है।
दुर्घटना में घायल होने के बाद हाथ की नस की तकलीफ के चलते वहां पहुंचे भीलवाड़ा के पीडि़त ने बताया कि इस स्थान की महिमा सुनने के बाद यहां आया और उसके आराम भी हुआ है।