अफीम की फसल को बचाने के लिए लगाई जाली

Update: 2024-12-28 09:00 GMT

आकोला (रमेश चंद्र डाड) आवश्यकता आविष्कार की जननी है यह कहावत प्रचलित है और यही किया है सराणा गांव के प्रगतिशील अफीम उत्पादक कृषक ने । कड़े परिश्रम से तैयार की जाने वाली अफीम की फसल कई बार प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट हो जाती है। अफीम उत्पादक कृषकों को भारी नुकसान देखना पड़ता ।

सराणा गांव के अफीम उत्पादक कृषक मथुरा लाल कुमावत ने अपनी अफीम की फसल को आंधी तूफान से बचाने के लिए एक नई तरकीब निकाली। अफीम की फसल के पौधों को बचाने के लिए खेत में खड़ी फसल को लोहे के सरियों और स्टील की जाली से ढक दिया। ढाई फीट ऊंचे लोहे के सरिए खड़े कर उन पर तीन तीन फीट की चौड़ी स्टील की जाली को बांध दिया। फिर डेढ़ फीट की जगह छोड़ कर तीन तीन फीट चौड़ी जाली लगाई। जाली की बनावट ऐसी रखी कि अफीम का पौधा बड़ा हो कर उसमें से बाहर निकल जाए।

कृषक लादू लाल कुमावत ने बताया कि आंधी तूफान तेज हवा के झोंको से पौधे जमीन पर नहीं गिरेंगे। जब अफीम की फसल पर डोड़े आने पर उनको चीरे भी आसानी से लगाए जा सकेंगे। कृषक अफीम की फसल के ड़ोड़ों को दोनों ओर से खड़े हो कर चीरे लगा सकते है। लोहे की जाली से पौधे हिलेंगे नहीं और जमीन पर गिरने से भी बचेंगे।

10 आरी ( आधा बीघा) खेत में 30 हजार रुपए की राशि का खर्चा आया। लोहे की जाली अफीम की फसल का उत्पादन लेने और ड़ोड़ों के सूखने के बाद हटा लेंगे।

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