आसींद (सुरेन्द्र संचेती) संवत्सरी महा पर्व आत्मा की आलोचना करने का पर्व है। वर्ष भर में जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा याचना करने का पर्व है। क्रोध एक विष है, पागलपन है यह जब आता है तो वर्षों के संबंध तोड़ देता है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने संवत्सरी महापर्व पर महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
मुनि ने कहा कि राग द्वेष की गांठ नहीं रखे जिनसे विवाद है या किसी कारण से नहीं बोलते है तो उनसे सही मायने में क्षमा याचना करे। प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने कहा कि यह पर्व दूरियों को मिटाने का दिवस है। हम प्रतिक्रमण के समय सभी जीवो से मिच्छामि दुक्कड़म करते है। जिनसे कोई राग द्वेष हो तो उनसे क्षमा याचना कर मन की गांठों को समाप्त करना ही सही मायने में पर्व मनाना होगा।
साध्वी डॉ चारित्र लता ने अंतर्गढ़ सूत्र का वाचन कर व्याख्या की। इस सूत्र के माध्यम से आठ दिनों में 90 महान आत्माओं के जीवन के बारे में सुना। जिन शासन मोक्ष के लिए बहुत बड़ा सपोर्टर है। जिनशासन पर श्रद्धा होनी चाहिए जिसकी श्रद्धा होती है उसके हर कार्य सफल होते है।
साध्वी ऋजु लता ने कहा कि यह शाश्वत पर्व है। यह पर्व सदियों से चला आ रहा है। प्रभु महावीर का शासन 21 हजार वर्ष का है जिसमें से 2551 वर्ष निकल चुके है। उसके पश्चात पांचवा आरा समाप्त होकर छठा आरा लगेगा जो सबसे दुखद आरा होगा। इसलिए अभी जितनी धर्म की आराधना करनी हो कर लेनी चाहिए। आगामी 30-31अगस्त को दो दिवसीय महिलाओं के लिए जिनवाणी चेतना शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें विभिन्न स्थानों से श्राविकाएं भाग लेगी।