आसींद |आत्मा को सजाने संवारने और आत्मा को शुद्ध करने का पर्व है पर्युषण महापर्व। हमारे चारों और जो कषाय फैले हुए है उन्हें समाप्त करने है। हमारी आत्मा को पवित्र और निर्मल बनानी है। धर्म के साथ कभी भी सौदेबाजी नहीं करे। जिसके मन में सरलता होती है उसी के पास धर्म टिकता है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने पर्युषण महापर्व के प्रथम दिवस पर धर्म सभा में व्यक्त किए।
प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने कहा कि यह पर्वों का राजा है इस पर्व की आराधना देवलोक के देव भी आकर करते है। यह अलौकिक पर्व है यह आत्मा को जगाने का पर्व है इसमें अधिक से अधिक तप और त्याग करने की भावना रखे।
साध्वी डॉ चारित्र लता ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन कर उसकी विस्तृत व्याख्या की। साध्वी ऋजु लता ने कहा कि जैन धर्म में दो चीज महत्वपूर्ण है पहली नवकार महामंत्र जो व्यक्ति के मोक्ष तक साथ रहता है। दूसरा पर्युषण महापर्व जो मोक्ष तक जाने का रास्ता बताता है। जीवन में सभी से अच्छा प्रेम रखे जब तक मन में प्रेम नहीं होगा धर्म की भावना जागृत नहीं होगी। जैन धर्म अहिंसा धर्म का पालन करने का संदेश देता है। हिंसा से सदेव बचने का प्रयास करे सभी को जीने का अधिकार है हमें जीओ और जीने दो के सिद्धांत का पालन करना है। इसके साथ दया ,करुणा, विवेकशील, और मेत्री भाव रखे यही जन्म मरण से मुक्ति दिला सकता है।