आचार्य गणाचार्य ने 44 वर्ष के संयम काल में 350 से अधिक दिखायी मोक्ष मार्ग की राह

By :  vijay
Update: 2025-07-04 14:30 GMT
आचार्य गणाचार्य ने 44 वर्ष के संयम काल में 350 से अधिक दिखायी मोक्ष मार्ग की राह
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भीलवाड़ा - सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजित मुनि अनुपम सागर व मुनि निर्मोह सागर के सानिध्य में संयम भवन में गणाचार्य विराग सागर  महाराज के प्रथम समाधि दिवस पर अनेक कार्यक्रम हुये।

महावीर दिगम्बर जैन सेवा समिति के अध्यक्ष राकेश पाटनी ने बताया कि धर्मसभा के प्रारंभ में सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन महावीर सेवा समिति एवं सकल दिगम्बर जैन समाज, मंगलाचरण ज्ञानवान महिला मण्डल एवं त्रिशला मण्डल, जिनवाणी भेट ज्ञानमति महिला मण्डल से कार्यक्रम की शुरूआत हुई।

गणाचार्य विराग सागर जी की प्रथम समाधि दिवस पर विनयांजलि के अवसर पर राकेश पाटनी, निर्मल सरावगी, अशोक छाबड़ा, प्रकाश गंगवाल, विमला लुहारी, नन्दलाल झांझरी, पं. आशुतोष, पं. पद्मचन्द काला ने अपने-अपने विचार प्रकट किये। जिनशासन के सूर्य राष्ट्रसंत, भारत गौरव, गणाचार्य बुन्देलखण्ड के प्रथमाचार्य, प्रतिक्रमण प्रवर्तक, उपसर्ग विजेता, महासंघगणनायक, गणाचार्य विराग सागर जी महाराज 4 जुलाई 2024 को समाधिस्थ होते ही एक युग का अंत हो गया।

मुनि अनुपम सागर एवं मुनि निर्मोह सागर द्वारा अपने उद्बोधन में गणाचार्य विराग सागर   महाराज के पद्चिन्हों का अनुशरण करने की प्रेरणा दी।

आचार्य सन्मति सागर द्वारा 02 फरवरी 1980 को गणाचार्य विराग सागर जी को खुल्लक दीक्षा प्रदान की गई थी। आचार्य विमलसागर जी द्वारा मुनि दीक्षा 9 दिसम्बर 1983 एवं आचार्य पद 8 नवम्बर 1992 में प्राप्त किया। गणाचार्य विराग सागर जी के 44 वर्ष के संयमकाल में 350 से भी ज्यादा दीक्षा प्रदाता विशाल संघ के जननायक परम पूज्य गणाचार्य  विराग सागर जी की महासमाधि 04 जुलाई 2024 को जालना (महाराष्ट्र) में हुई।

आचार्य  एक सृजनशील, गणेषक तथा चिन्तक थे। अपने गहरे चिंतन की छाप प्रकट करने वाले उनके साहित्य में उल्लेखित है - शुद्धोपयोग, आगम चकखू, साहू, सम्यक दर्शन, सल्लेखना से समाधि, तीर्थंकर ऐसे बने, कर्म विज्ञान भाग 1 व 2, चैतन्य चिंतन, साधना, आराधना आदि।

मीडिया प्रभारी भागचन्द पाटनी ने बताया कि आज मुनिसंघ विहार कर केसर कुंज में पहुंचे। जहां 05 जुलाई को नये जिनालय की नींव का मोहरत एवं मुनिश्री के प्रवचन प्रातः 08.30 बजे केसर कुंज में होगें।

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