भीलवाड़ा में भी फैल रहा है जीबीएस रोग, अब तक 6 की मौत, रोज आ रहे है मरीज

Update: 2025-07-15 20:50 GMT
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भीलवाड़ा (राजकुमार माली)। भीलवाड़ा जिले में डायरिया और सांस की समस्या से पीडि़त मरीजों में गंभीर बीमारी गुलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) ने दस्तक दे दी है। इसके चलते रोजाना मरीज तो आ रही है लेकिन अब तक आधा दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में इस बीमारी को लेकर हड़कम्प मचा है। यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर न्यूरोलाजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से नर्वस सिस्टम पर हमला करती है। इससे मरीजों को हाथ-पैरों में कमजोरी, झनझनाहट और कई बार लकवा तक का सामना करना पड़ रहा है। महात्मा गांधी अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग में औसतन दो मरीज प्रतिदिन आ रहे हैं जिनमें परीक्षण के बाद जीबीएस की पुष्टि हुई है।

न्यूरोलॉजी विभाग के प्रभारी डॉ.चन्‍द्रजीत राणावत ने हलचल से बातचीत करते हुए बताया कि यह बीमारी अक्सर डायरिया या सांस के संक्रमण से ठीक होने के कुछ दिन बाद उभरती है। दूषित खानपान और वायरल संक्रमण इसके प्रमुख कारण हैं। बीते कुछ सप्ताहों में भर्ती होने वाले मरीजों में से 15 प्रतिशत से अधिक को जीबीएस की पुष्टि हुई है। इन मरीजों में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं। गंभीर मामलों में मरीजों को आइसीयू में भर्ती तक करना पड़ रहा है, कुछ को वेंटीलेटर सपोर्ट तक की जरूरत पड़ी है।

उन्होंने बताया कि अब तक गंभीर आधा दर्जन मरीजों की मौत हो चुकी है। उनका कहना था कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें कई बार मरीज आपात स्थिति में अस्पताल आता है। उससे आईसीयू में भी रखना पड़ता है लेकिन हालत इतनी गंभीर होती है कि वह बच नहीं पाता है। भीलवाड़ा में ऐसी तीन से चार मरीजों की मौत हो चुकी है और यहां से रेफर किए गए दो मरीजों की भी मौत की खबर है।

बीमारी पर बड़ा खर्चा

न्यूरोफिजिशियन डॉ.राणावत ने बताया कि जीबीएस से मरीज को पूरी तरह ठीक होने में छह माह से लेकर दो साल तक का समय लगता है। इतना ही नहीं निजी अस्पतालों में इस बीमारी का खर्चा 20 से 25 लाख रुपये तक आता है। इस बीमारी में इस्तेमाल किए जाने वाले इंजेक्शन ही दो से तीन लाख रुपये में आते हैं, जबकि महात्मा गांधी अस्पताल मेंं इस बीमारी का इलाज मुफ्त में होता है। यही वजह है कि अस्पताल में इन दिनों काफी संख्या में मरीज उपचार के लिए पहुंच रहे हैं।

डायरिया के बाद इस बीमारी से पीडि़त होकर लोग उपचार के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं। बीमारी से रिकवर होने में कम से कम 14 दिन और पूरी तरह ठीक होने में छह माह से दो साल तक लगते हैं।

यह बीमारी काफी गंभीर बताई गई है और भीलवाड़ा ही नहीं अन्य स्थानों पर भी इसके रोगी काफी संख्या में अस्पतालों में पहुंच रहे है।

दूषित खानपान और वायरल संक्रमण प्रमुख कारण

यह बीमारी अक्सर डायरिया या सांस के संक्रमण से ठीक होने के कुछ दिन बाद उभरती है। दूषित खानपान और वायरल संक्रमण इसके प्रमुख कारण हैं। बीते कुछ सप्ताहों में भर्ती होने वाले मरीजों में से 15 प्रतिशत से अधिक को जीबीएस की पुष्टि हुई है। इन मरीजों में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं। गंभीर मामलों में मरीजों को आइसीयू में भर्ती तक करना पड़ रहा है, कुछ को वेंटीलेटर सपोर्ट तक की जरूरत पड़ी है।

बीमारी का खर्चा 20 से 25 लाख रुपये तक

जीबीएस से मरीज को पूरी तरह ठीक होने में छह माह से लेकर दो साल तक का समय लगता है। इतना ही नहीं निजी अस्पतालों में इस बीमारी का खर्चा 20 से 25 लाख रुपये तक आता है। इस बीमारी में इस्तेमाल किए जाने वाले इंजेक्शन ही दो से तीन लाख रुपये में आते हैं, जबकि जेएएच के न्यूरोलाजी विभाग में इस बीमारी का इलाज मुफ्त में होता है। यही वजह है कि अस्पताल में इन दिनों काफी संख्या में मरीज उपचार के लिए पहुंच रहे हैं।

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