मोदी जी के प्रयासों से कुम्हारों को बढ़ी उम्मीद, इस दिवाली मिट्टी के दीयों से रोशन होंगे घर-आँगन

Update: 2024-10-11 07:09 GMT

भीलवाड़ा (प्रहलाद तेली) दीपावली को अब कुछ ही दिन रह गए हैं। इसी के साथ ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। गाँवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।

शास्त्रीनगर निवासी नन्नू कुम्हार ने बताया कि पीएम मोदी के प्रयासों से लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और दिवाली के मौके पर दीयों की बिक्री भी जमकर हुई थी। ऐसा लग रहा है कि ‘वोकल फॉर लोकल’ की अपील का असर इस बार भी लोगों के बीच दिख रहा है और लोग चायनीज झालरों के बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इससे कुम्हारों में बेहद खुशी है।

आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। कुम्हारों का कहना है पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5, 11 या 21 दीये खरीदते थे। मगर पिछली दिवाली में लोगों ने 10 से 12 दर्जन दीये खरीदे थे। इस बार की दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे।

बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए चाक पर तैयार हो रहे हैं और कुम्हारों ने अभी से दीयों को बनाना शुरू कर दिया है । चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मगर पिछले तीन वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गाँव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं।

धार्मिक महत्व के अनुसार मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। मिट्टी के दीपक जलाने से शांति मिलती है, बरक्कत होती है और उस घर में सौभाग्यता बनी रहती है। दीपावली के दिन दीपक जलाने से घर में लक्ष्मी का निवास होता है, उस घर में धनवंतरी का निवास होता है तो खुशियां भी बनी रहती हैं।

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