भारत को मिलने वाले प्रीडेटर ड्रोन क्यों होंगे बेहद घातक? डिलीवरी को लेकर सामने आई ये बड़ी जानकारी

By :  vijay
Update: 2024-10-20 18:34 GMT

रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में अमेरिका के साथ MQ-9B हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस ड्रोन के लिए करार किया है। 32,000 करोड़ रुपये के इस समझौते के तहत 31 ड्रोन खरीदे जाने हैं, इनमें से 15 MQ-9B ड्रोन भारतीय नौसेना के लिए और 8 वायु सेना और 8 थल सेना को दिए जाएंगे। ये ड्रोन देश की समुद्री और जमीनी सीमा की सुरक्षा और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। सूत्रों के मुताबिक भारत को मिलने वाले प्रीडेटर ड्रोन में एक खास गन लगी होगी, जो इसकी मारक क्षमता को और घातक बनाएगी। वहीं, इनकी डिलीवरी को लेकर जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक इन ड्रोन की डिलीवरी लगभग चार साल में शुरू होगी, जो छह साल में पूरी होगी। यानी कि भारतीय सेनाओं को ये ड्रोन 2030 तक ही मिल पाएंगे।


डिलीवरी जनवरी 2029 से सितंबर 2030 तक

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक भले ही सरकार ने एमक्यू-9बी ड्रोन की खरीद का फैसला चीन के साथ चल रहे तनाव को देखते हुए लिया है, लेकिन इनकी डिलीवरी के लिए सेनाओं को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। सेनाओं को जनरल एटॉमिक्स के MQ-9B आर्मर हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम (RPAS) 2029 और 2030 तक ही मिल सकेंगे। सूत्रों का कहना है कि जब भी भारतीय सेनाओं में ये ड्रोन आएंगे तो इससे भारत की निगरानी, टोही और हमला करने की क्षमताओं में जबरदस्त इजाफा होगा। लगभग 3.5 बिलियन डॉलर मूल्य के इस सौदे पर अमेरिकी सरकार फॉरेम मिलिट्री सेल्स (FMS) प्रोग्राम के तहत दस्तखत किए गए थे। इसमें दो साल का कॉन्ट्रैक्टेड लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (CLS) भी शामिल है। ऑर्डर किए गए 31 ड्रोन में भारतीय नौसेना के लिए 15 सी-गार्डियन और भारतीय सेना और वायु सेना (आठ-आठ) के लिए 16 स्काई गार्डियन ड्रोन शामिल हैं।

सूत्रों ने बताया कि 31 में से MQ-9B ड्रोन की पहली यूनिट की डिलीवरी 51 महीनों में होगी, जबकि आखिरी यूनिट कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत और शुरुआती भुगतान के 72 महीनों बाद मिलने की उम्मीद है। इस हिसाब से डिलीवरी विंडो जनवरी 2029 से सितंबर 2030 तक होगी। डिलीवरी 21 महीनों में की जाएगी, ताकि भारत को 31 ड्रोनों का बेड़ा धीरे-धीरे मिलता रहे।


भारत को मिलने वाले ड्रोन में लगी होगी ये खास मशीन गन

रक्षा सूत्रों ने इस बात का भी खुलासा किया कि भारत 31 प्रीडेटर ड्रोन हासिल करने वाले पहला देश बनेगा, जिसमें दो डीएपी-6 गन पॉड्स लगे होंगे। इनमें से हर पॉड में घातक एम134डी-एच रोटरी मशीन गन लगी होगी। यह अपग्रेड हासिल करने वाला भारत पहला देश है। इस अपग्रेड से प्रीडेटर ड्रोन की मारक क्षमता में और इजाफा होगा और युद्ध के दौरान ये और घातक बन जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक एम134 मिनिगन अमेरिकी 7.62×51 मिमी नाटो छह बैरल रोटरी मशीन गन है, जिसकी फायर क्षमता जबरदस्त है। यह गन मिनट 2,000 से 6,000 राउंड तक गोलियां दाग सकती है। इसे कंपनी तेज फायर के लिए डिजाइन किया है। एम134 मिनिगन लगने के बाद भारत को मिलने वाले प्रीडेटर ड्रोन किसी भी युद्ध की परिस्थितियों में गेम-चेंजर साबित होंगे।

हाई-इंटेसिटी ऑपरेशंस में कारगर हैं प्रीडेटर ड्रोन

सूत्रों के मुताबिक ऐसा पहली बार होगा जब किसी देश को प्रीडेटर ड्रोन पर एडवांस गन पॉड्स को लगाया जाएगा। वहीं प्रति पॉड 3,000 राउंड फायर करने की क्षमता के बाद प्रीडेटर ड्रोन हाई-इंटेसिटी ऑपरेशंस में भी अपनी उपयोगिता साबित करेंगे। इन ऑपरेशंस में क्लोज एयर सपोर्ट, आतंकवाद विरोधी अभियानों और दुश्मन के ठिकानों को तबाह करना शामिल होता है। जिसके बाद रिमोट से ही दुश्मन पर हमला किया जा सकेगा। सूत्रों ने बताया कि डीएपी-6 गन पॉड्स का इस्तेमाल कई तरह के मिशन में किया जा सकता है, जिसमें एंटी-पर्सनल इंगेजमेंट्स से लेकर हल्के बख्तरबंद वाहनों और अन्य टेक्टिकल टारगेट को आसानी से उड़ाया जा सकेगा।

यहां तैनात होंगे एमक्यू-9बी ड्रोन

भारत इन ड्रोनों को चेन्नई में आईएनएस राजाजी, गुजरात के पोरबंदर में तैनात करेगा, जहां इनका संचालन भारतीय नौसेना करेगी। वायुसेना और थल सेना इन्हें गोरखपुर और सरसावा एयरफोर्स बेस से कंट्रोल करेंगे। क्योंकि यहां सबसे लंबा रनवे है। वहीं, गोरखपुर और सरसावा बेस से एलएसी, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर निगरानी रखना आसान हो जाएगा। इनमें से 15 ड्रोन समुद्री इलाकों की निगरानी करेंगे। जबकि बाकी ड्रोन चीन और पाकिस्तान की सीमाओं की निगरानी के लिए तैनात किए जाएंगे।

कंपनी भारत में लगाएगी एमआरओ फैसिलिटी

इन ड्रोनों के रखरखाव के लिए कंपनी देश में ही ग्लोबल एमआरओ (मैंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल) फैसिलिटी बनाएगी। इसके लिए 34 फीसदी कंपोनेंट्स भारतीय कंपनियों से ही खरीदे जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक इन एमआरओ परफॉरमेंस बेस्ड लॉजिस्टिक्स पर आधारित होगा, जिसके तक आठ साल या 1.5 लाख उड़ान घंटों तक इनका रखरखाव डिपो-स्तरीय एमआरओ पर किया जाएगा।

भारतीय नौसेना में हैं लीज पर लिए ड्रोन

बता दें कि भारतीय नौसेना के पास पहले से ही दो एमक्यू-9बी सी गार्जियन ड्रोन हैं, जो 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर में निगरानी के लिए अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स से एक साल की लीज पर लिए थे। हालांकि, बाद में इस लीज का समय बढ़ा दिया गया था। उनमें से एक ड्रोन 18 सितंबर को चेन्नई के पास बंगाल की खाड़ी में क्रेश हो गया था। नौसेना ने कहा था कि ये घटना तकनीकी खराबी के कारण हुई। ये ड्रोन चेन्नई के पास अरक्कोणम में नौसेना के हवाई अड्डे आईएनएस राजाली से उड़ान भर रहा था। सूत्रों ने बताया था कि क्रैश होने के बाद अमेरिकी कंपनी ने इसके बदले नया ड्रोन भेजने की बात कही थी। अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स के साथ हुए इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत अमेरिकी ड्रोन पायलट भारतीय नौसेना के एक बेस से ड्रोन उड़ाते हैं।

एमक्यू-9बी ड्रोन में हैं ये खासियतें

एमक्यू-9बी स्काई-गार्जियन ड्रोन हेलफायर मिसाइलों, जीबीयू-39बी प्रेसिजन-गाइडेड ग्लाइड बम, नेविगेशन सिस्टम, सेंसर सूट और मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम से लैस होंगे।

ये ड्रोन 50 हजार फीट की ऊंचाई पर लगभग 40 घंटे तक 442 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकते हैं।

प्रीडेटर ड्रोन आसमान में काफी ऊंचाई पर कई घंटों तक निगरानी कर सकता है। साथ ही, इसे ट्रैक करना भी काफी मुश्किल समझा जाता है।

ये ड्रोन चार हेलफायर मिसाइलें और लगभग 2155 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकते हैं।

इन ड्रोन में लेजर गाइडेड मिसाइलें, एंटी टैंक मिसाइलें और एंटी शिप मिसाइलें लगी होती हैं। ये ड्रोन रिमोट से कंट्रोल किए जाते हैं।

एमक्यू-9बी के कुल दो वर्जन हैं- सी-गार्डियन और स्काई गार्डियन। ये ड्रोन जमीन, आसमान और समुंद्र से लॉन्च किए जा सकते हैं।

वहीं इन ड्रोन की रेंज 1850 किलोमीटर तक है यानी कि पाकिस्तान के कई शहर इसकी जद में होंगे।

वहीं भारत को मिलने वाले ये ड्रोन चीन के काय होंग-4 और विंग लूंग-II से कहीं ज्यादा बेहतर हैं।

चीन अपने ड्रोन को पाकिस्तान को भी सप्लाई कर रहा है। पाकिस्तान ने चीन से 16 और हथियरबंद सीएच-ड्रोन मांगे हैं। उसके पास पहले से ही सेना में सात और नौसेना में 3 सीएच-4 ड्रोन हैं।

एमक्यू-9बी ड्रोन एमक्यू-9 "रीपर" का ही एडवांस वर्जन है, जिसका इस्तेमाल हेलफायर मिसाइल के जरिए जुलाई 2022 में काबुल में अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी को खत्म करने में किया गया था।

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