पीएम मोदी और संघ को प्रिय हैं देवेंद्र फडणवीस, बस रास्ते में दो चुनौतियां

By :  vijay
Update: 2024-11-26 12:59 GMT

महाराष्ट्र में एक मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री बनेंगे। संघ के नागपुर के सूत्र की माने तो देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने में संदेह नहीं है, लेकिन फैसला भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लेना है। भाजपा के एक नेता हैं। नासिक से हैं। वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस दोनों जमीनी नेता हैं। सूत्र का कहना है कि महाराष्ट्र में बिहार जैसे फार्मूले की कोई बात नहीं है। यहां तो हम बहुमत के बिल्कुल करीब हैं। मुख्यमंत्री भाजपा से ही होगा। हालांकि मुख्यमंत्री या विधायक दल का नेता चुनने का प्रारुप तो शीर्ष नेतृत्व तय करेगा |


क्यों मजबूत है फडणवीस का दावा ?

देवेंद्र फडणवीस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुलारे हैं। नागपुर से आते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी प्रिय हैं। 2014 में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय में भी प्रधानमंत्री का अहम योगदान था। देवेंद्र फडणवीस की टीम के नेता कहते हैं कि महाराष्ट्र में उनकी टक्कर का फिलहाल कोई नहीं है। देवेन्द्र (देवा भाऊ) को कुछ औद्योगिक घराने भी युवा, उत्साही और अच्छा मानते हैं। पिछले पांच साल में फडणवीस ने कई बड़ी भूमिकाएं निभाई हैं। उन्हें दो बार एनसीपी(अजीत) के नेता अजीत पवार को भाजपा के साथ लाने का श्रेय जाता है।

अजीत पवार हालांकि बहुत भरोसे के नेता नहीं हैं, लेकिन राजनीति के मौसम का अच्छा ज्ञान रखते हैं। वह खुलकर फडणवीस के साथ हैं। शिवसेना को तोड़ने और एकनाथ शिंदे को जोड़ने, शिंदे सरकार को महाराष्ट्र में अस्तित्व में लाने में भी फडणवीस के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। यह भी उनकी प्रोफाइल में जुड़ता है कि न चाहते हुए भी शीर्ष भाजपा नेतृत्व के निर्णय को मानते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लिया था।

विधानसभा चुनाव 2024 में फडणवीस ने काफी अहम भूमिका निभाई है, इसलिए दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक संघ और भाजपा के बहुत बड़ी संख्या में नेता उन्हें पुरस्कृत किए जाने के पक्ष में हैं। जिन लोगों को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष का संभावित उम्मीदवार समझा जा रहा है, उसमें एक फडणवीस भी हैं। लेकिन फडणवीस की इच्छा अभी महाराष्ट्र में बने रहने और मुख्यमंत्री पद पाने की है।

फडणवीस जब नतीजे के बाद बोल रहे थे तो वह बार-बार केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का नाम ले रहे थे। यह नाम लेने में राजनीतिक पंडितों को कुछ ध्वनि सुनाई दे रही थी। फडणवीस के कहने के अंदाज में उनके भीतर मुख्यमंत्री बनने की कसक झलक रही थी।

फडणवीस की राह में हैं बस दो कांटे

राजनीति में महत्वाकांक्षा न हो तो नेता का करियर उदास रहता है। यही महत्वाकांक्षा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को समय का रुख भांपकर भाजपा के साथ आई थी। पवार ने खुलकर फडणवीस का पक्ष लिया है। शिंदे ने यहां रणनीतिक चुप्पी साधी है। जब से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं, कई ऐसे अवसर आए जब वह बहुत हार्ड बार्गेनर के रूप में नजर आए। अपने और पार्टी के हितों को बचाने में सफल रहे। उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की तुलना में कहीं ज्यादा सफल रहे। महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि शिंदे को बाद में फडणवीस खटकते रहे। अजीत पवार को सरकार से जोड़ने, एनसीपी में दोबारा बगावत कराने को भी फडणवीस की शिंदे को संतुलित रखने की कोशिश से जोड़कर देखा गया। इस समीकरण को शांतिपूर्व और बिना किसी हलचल के सुलझा लेना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक चुनौती की तरह है। समझा जा रहा है कि यह मसला जल्द हल हो जाएगा।

देवेन्द्र फडणवीस की राह में दूसरा कांटा उनके पार्टी के भीतर के विरोधी हैं। पहले कार्यकाल में फडणवीस के राजनीतिक व्यवहार से उनके विरोधियों की संख्या काफी बढ़ गई थी। गुटीय राजनीति के आरोप भी लगे थे। केन्द्र में भी एक-दो प्रभावी नेता हैं, जिनसे फडणवीस के समीकरण गड़बड़ा गए थे। यह फडणवीस को भी पता है कि इनमें से एक नेता की प्रधानमंत्री सुनते हैं। भरोसा करते हैं। यही वजह भी है कि जब शिंदे सरकार के कामकाज को लेकर सरकार बनने के कुछ महीने बाद फडणवीस दिल्ली आए थे तो प्रधानमंत्री ने अपने तरीके से उन्हें समझाकर महाराष्ट्र भेज दिया था। फडणवीस के विरोधी इसी को हवा दे रहे हैं कि दोबारा सीएम बने तो महाराष्ट्र में गुटबाजी बढ़ेगी। पार्टी में कई खेमे फिर बनने लगेंगे। नुकसान होगा। महाराष्ट्र में वैसे भी अन्य पिछड़ा वर्ग बहुत आबादी वाला राज्य है। देवेन्द्र फडणवीस ओबीसी नहीं, बल्कि एक ब्राह्मण चेहरा भी हैं। समझा जा रहा है कि इन दो पेंच को सही तरीके से सुलझाकर शीर्ष नेतृत्व महाराष्ट्र में सरकार के प्रारुप को अंतिम रूप देने का प्रयास करेगा।


क्या किसी तीसरे के हाथ भी लग सकती है बाजी?

इसकी संभावना बहुत कम है। राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े और देवेन्द्र फडणवीस के रिश्ते सबको पता है। अशोक बावनकुले, चंद्रकांत पाटील का समीकरण भी पता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा के अन्य चेहरे के पास भी महाराष्ट्र में अवसर है। इसलिए राजनीति में कुछ भी संभव है। लेकिन ऐसा हुआ तो देवेन्द्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे दोनों को फिर दिल्ली का रुख करने के लिए कहा जा सकता है। शिंदे को अपनी पसंद का उपमुख्यमंत्री चेहरा देने का विकल्प रखा जा सकता है। हालांकि एकनाथ शिंदे का महाराष्ट्र में टिकना बड़ी मजबूरी है। उनके पास उद्धव ठाकरे और शिवसेना(उद्धव) के मुकाबले अपनी पार्टी और अपना कद दोनों बनाए तथा बचाए रखने की चुनौती है। क्योंकि उद्धव सेना के सामने एकनाथ शिंदे से अपनी जमीन छीनने का दबाव काफी बढ़ गया है। उद्धव सेना कमजोर हुई है, लेकिन उसमें दम है। लोकसभा चुनाव में उसे मिली सफलता इसका उदाहरण है।

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