सम्मानजनक समझौते के बिना उपचुनाव में नहीं उतरेगी कांग्रेस, अखिलेश की गलतफहमी दूर करने पर भी है निशाना

By :  vijay
Update: 2024-10-21 12:45 GMT

यूपी में नौ सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव से कांग्रेस ने फिलहाल किनारा कर लिया है। समाजवादी पार्टी ने गठबंधन के तहत कांग्रेस को गाजियाबाद और खैर की दो विधानसभा सीटें दी है, जबकि कांग्रेस अपने लिए पांच सीटों पर दावेदारी कर रही है। कांग्रेस गाजियाबाद और खैर की बजाय अपने लिए सीसामऊ, फूलपुर और मझवां सीटों पर दावेदारी कर रही है। इन सीटों पर समाजवादी पार्टी से बात न बनते देख कांग्रेस ने दबाव बढ़ा दिया है। पार्टी ने कहा है कि यदि उसे सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो वह चुनाव से दूर रहेगी।

 कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, सबसे बड़ी पेंच गाजियाबाद और खैर विधानसभा सीटों को लेकर है। ये दोनों सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस लंबे समय से जीत दर्ज नहीं कर पाई है। यदि उपचुनाव में वह इन सीटों पर उतरती है तो भी उसके लिए जीत की संभावनाएं बहुत कम रहेंगी। जबकि यदि फूलपुर और मझवां सीटों पर वह उतरती है तो न केवल उसको जीत मिल सकती है, बल्कि इन क्षेत्रों में उसकी कमजोर होती पकड़ को भी मजबूती मिल सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने इन सीटों को लेकर अपना दबाव बढ़ा दिया है। वहीं, इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुके अखिलेश यादव के लिए पीछे हटना मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि दोनों दलों में पेंच फंस गया है।

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, यूपी अध्यक्ष अजय राय ने प्रदेश में पार्टी की स्थिति को देखते हुए अपनी ओर से मजबूत दावेदारी करने के अपने निर्णय से पार्टी आलाकमान को अवगत करा दिया है। अब सपा और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस पर अंतिम निर्णय लेगा। लेकिन ज्यादा संभावना इसी बात की है कि यदि सपा कांग्रेस को उसके मन मुताबिक सीटें नहीं देती है तो कांग्रेस उपचुनाव में नहीं उतरेगी। कांग्रेस नेताओं के अनुसार, सपा को सीटों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार करना पड़ेगा।


अखिलेश की गलतफहमी दूर करना भी लक्ष्य

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को किन कारणों से सफलता मिली थी, इसको लेकर अखिलेश यादव के मन में कुछ गलतफहमी है। उन्हें लगता है कि उन्होंने जो पीडीए समीकरण बनाया था, वह उनके पक्ष में गया है। जबकि कांग्रेस नेताओं के अनुसार, राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण को लेकर जो माहौल बनाया था, उसके कारण पिछड़े, दलित और मुसलमान कांग्रेस-सपा गठबंधन के साथ आए और उसे जीत मिली।

कांग्रेस नेताओं के अनुसार, लेकिन अखिलेश यादव इस कारण को स्वीकार नहीं करना चाहते। वे जीत का पूरा श्रेय अपने हिस्से में ले जाना चाहते हैं और कांग्रेस को उसकी उचित हिस्सेदारी नहीं देना चाहते। कांग्रेस नेताओं की चिंता है कि यदि इस उपचुनाव में ही वह दबाव में रह जाती है तो 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी सपा उसे इसी तरह बहुत कम सीटों पर निपटाने की कोशिश कर सकता है। इसलिए वह समय रहते अपनी ताकत को आजमाना चाहती है और सपा से सम्मानजनक समझौता चाहती है जिससे आने वाले समय में भी उसकी स्थिति मजबूत रहे।

महाराष्ट्र में भी अखिलेश को कमजोर करना लक्ष्य

दरअसल, सपा अध्यक्ष यूपी के अलावा कुछ अन्य राज्यों में अपना पैर पसारकर अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना चाहते हैं। इसी कोशिश में वे हरियाणा भी गए थे, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। अब वे महाराष्ट्र में भी इसी जुगत में लगे हैं। लेकिन सपा के मैदान में आने से लगभग एक दर्जन सीटों पर मुसलमान वोटों में बंटवारा हो सकता है। इसका नुकसान इंडिया गठबंधन के दलों को होगा। माना जा रहा है कि यूपी में दबाव बढ़ाकर कांग्रेस नेतृत्व सपा को महाराष्ट्र में एक-दो सीटों पर समेटने का दांव भी आजमा रहा है, जो कम से कम एक दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।

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