कांग्रेस को 'देशद्रोही' क्यों दिखने लगे केजरीवाल, AAP से झगड़े के पीछे ये है असली कहानी
लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे से गलबहियां कर रही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच तलवार खिंच चुकी है। कांग्रेस नेता अजय माकन अरविंद केजरीवाल को 'एंटी नेशनल' करार दे चुके हैं तो आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह और आतिशी मारलेना ने कांग्रेस पर भाजपा के पैसे पर चुनाव लड़ने का आरोप लगा दिया है। आम आदमी पार्टी ने यहां तक कहा है कि कांग्रेस के उम्मीदवार भी भाजपा ही तय कर रही है। पार्टी ने कांग्रेस को इंडिया गठबंधन से निकालने के लिए मुहिम चलाने का संकेत दिया है। बड़ा प्रश्न यही है कि लोकसभा चुनाव में एक साथ मिलकर लड़ने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच रिश्ते अचानक इस स्तर तक खराब क्यों हुए? इस झगड़े के पीछे की असली कहानी क्या है?
दरअसल, इसके पीछे वोटों का गणित साफ दिखाई देता है। भाजपा ने 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में अपना मत प्रतिशत 46.40%, 56.86% और 54.35% बनाए रखा है। 2019 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा। वह दूसरे नंबर पर रही, लेकिन तब भी भाजपा के वोट शेयर में कोई कमी नहीं आई। इसी तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने के बाद भी भाजपा के मत प्रतिशत में कोई खास कमी नहीं आई।
इसी तरह विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने 2013, 2015 और 2020 के चुनावों में क्रमशः अपना वोट 33 प्रतिशत, 32.3 प्रतिशत और 38.51 प्रतिशत पर बनाए रखा। जबकि इस बीच 2013 और 2015 में केजरीवाल अपने लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर थे। पिछले विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस बहुत कमजोर हो गई, तब भी कांग्रेस के खोए मतदाताओं में से कुछ वोटर उसने हासिल करने में सफलता हासिल कर ली।
dकहां से मजबूत होगी कांग्रेस
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोटरों को अपने साथ लेकर ही अपना आधार मजबूत किया है। भाजपा के ऊपर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ आने या शीला दीक्षित या अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता से बहुत कम ही असर हुआ है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि भाजपा के पास एक ऐसा वोटर वर्ग है जो फिलहाल उसके साथ मजबूती से बना हुआ है।
ऐसे में यदि कांग्रेस को मजबूत होना है तो मोटे तौर पर उसे अपने उसी मतदाता वर्ग को अपने साथ लाना होगा जो उसका पारंपरिक वोट बैंक हुआ करता था। और आज की तारीख में यह मतदाता वर्ग अरविंद केजरीवाल के पास ही है। माना जा रहा है कि जिस तरह कांग्रेस अरविंद केजरीवाल पर आक्रामक हुई है, उसके पीछे वोटों का यही गणित काम कर रहा है।
कांग्रेस के लिए जिस तरह दिल्ली में करो या मरो की स्थिति बनी हुई है, उसके पास केजरीवाल पर हमला करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। यही कारण है कि कांग्रेस ने लगातार केजरीवाल पर हमले तेज कर दिए। पार्टी ने न केवल उन्हें एंटी नेशनल कह दिया, बल्कि उस पर पंजाब से पैसे लाकर दिल्ली में चुनाव लड़ने तक का आरोप लगा दिया।
अजय माकन को क्यों किया आगे
ऐसा भी नहीं है कि इस पूरी लड़ाई में केवल नूरा-कुश्ती हो रही है। 2013 में जब अरविंद केजरीवाल को पहली बार सरकार बनाने का अवसर आया था, तब भी पार्टी के कई नेता केजरीवाल को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के कई नेता केजरीवाल के साथ जाकर चुनाव लड़ने की बजाय अकेले दम पर चुनाव में उतरने और संगठन को मजबूत करने के पक्ष में थे। ऐसे नेताओं में सबसे ज्यादा मुखर अरविंद केजरीवाल के सबसे बड़े विरोधी अजय माकन ही थे। माना जा रहा है कि उनकी इस विचारधारा को देखकर ही पार्टी ने उन्हें इस तरह सामने किया।
दलित वोटों के लिए सबसे ज्यादा लड़ाई
दिल्ली में जिस तरह सियासत चल रही है, उसमें यह माना जाने लगा है कि दिल्ली का 12 प्रतिशत मुसलमान पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में एकजुट है। मुसलमान केवल उन्हीं सीटों पर आम आदमी पार्टी के साथ जाएगा जहां कांग्रेस अपने दम पर भाजपा को हराने की स्थिति में नहीं होगी। मुसलमान दिल्ली की आठ सीटों पर अकेले दम पर चुनावी जीत-हार तय करने में सक्षम है। ऐसे में यदि कांग्रेस को आठ सीटों से आगे बढ़ना है तो उसे दलित, पिछड़े और झुग्गी-झोपड़ियों के उन्हीं मतदाताओं को अपने साथ लाना होगा जिसने कांग्रेस का हाथ छोड़कर झाड़ू था्म लिया था।
लेकिन केजरीवाल की महिला सम्मान योजना की घोषणा होते ही जिस तरह इसका लाभ लेने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी है, उसे देखते हुए कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। यही कारण है कि कांग्रेस ने केजरीवाल पर हमला करने के लिए अपने सारे घोड़े खोल दिए। कांग्रेस और आप की लड़ाई इसी वोटर वर्ग के लिए है।
क्यों बिगड़ी बात
दरअसल, जिस तरह केजरीवाल ने महिलाओं के लिए 2100 रुपये देने की घोषणा की है, और जिस तरह लोग लाइन लगाकर महिला सम्मान योजना का लाभ लेने के लिए लाइनों में लगकर खड़े हुए हैं, माना यही जा रहा है कि यह योजना केजरीवाल को सत्ता में वापस लाने का रास्ता तैयार कर सकती है। इसी तरह की योजनाएं कांग्रेस के लिए हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सफल साबित हुई है तो भाजपा को इसी योजना ने मध्य प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता दिलाने में सहायता दिलाई है।
यदि केजरीवाल इस योजना को सही तरीके से प्रचार करने में सफल रहते हैं तो यह उन पर लगे शराब घोटाले और शीश महल विवाद पर भारी पड़ेगा। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस ने केजरीवाल पर जमकर हमला करना शुरू कर दिया है। अब अंतिम तौर पर यह मतदाता वर्ग किसके साथ जाएगा, यह देखने वाली बात होगी क्योंकि इस बार दिल्ली की सत्ता पर कौन बैठेगा, वह मोटे तौर पर यही मतदाता वर्ग तय करेगा।