गोरा लड़का होने पर मिलते थे मोटे दाम, बच्चे पैदा कर बेचने वाली महिलाएं भी नेटवर्क में शामिल

Update: 2025-02-26 03:27 GMT

लखनऊ नवजात एवं मासूमों बच्चों की तस्करी कर बेचने वाला गिरोह बच्चे के लिंग व रंग-रूप के हिसाब से कीमत तय करता था। बच्चा छोरा यानी लड़का है, रंग गोरा है तो कीमत ज्यादा लगाई जाती थी। बच्चा सांवला है या लड़की है तो कम रुपयों में सौदा कर दिया जाता था। खरीदार भी स्वस्थ व सुंदर बच्चों की मांग ज्यादा करते थे। एसीपी अलीगंज बृज नारायण सिंह का कहना है कि गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पूछताछ के आधार पर गिरोह में शामिल अन्य लोगों के बारे में पता लगाया जा रहा है।

 

पूछताछ में सामने आया है कि गिरोह में कई ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं, जो बच्चे पैदा कर उन्हें बेच देती हैं। प्रारंभिक छानबीन में झारखंड की ऐसी कुछ महिलाओं के बारे में पुलिस को जानकारी मिली है। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली की एक महिला के बारे में पुलिस जानकारी कर रही है। इस महिला के पकड़े जाने के बाद पूरे अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश होगा। पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल खंगाल रही है। इसके जरिए गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश की जा रही है।

 

मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर खरीदते थे नवजात

गिरोह का सरगना विनोद अस्पतालों में ज्यादातर महिला कर्मचारियों की नौकरी लगवाता था। इसके एवज में वह उनसे गर्भवती महिलाओं का ब्योरा मांगता था। बाद में महिला कर्मचारियों के जरिए गर्भवती पर मनोवैज्ञानिक दबाव डलवाता था। खास कर लड़की पैदा होने पर उनके पालन पोषण में आने वाली परेशानियों का जिक्र किया जाता था। अगर गर्भवती की पहले से कोई बेटी होती तो भविष्य की जिम्मेदारियों के बारे में बताकर उन्हें बच्ची बेचने के तैयार किया जाता। इसके एवज में उन्हें रुपये भी दिए जाते थे। गिरोह ज्यादातर गरीब परिवार की महिलाओं को टारगेट करता था।

आईवीएफ के लिए जाने वाले दंपती भी निशाने पर

गिरोह बच्चों को बेचने के लिए आईवीएफ के लिए जाने वाले दंपती पर नजर रखता था। आईवीएफ सेंटर में काम करने वाली गिरोह की सदस्य दंपती से संपर्क बढ़ाती थीं। जिस दंपती को आईवीएफ से बच्चा नहीं होता था, उनसे संवेदना व्यक्त किया जाता। बातचीत में नवजात उपलब्ध कराने का वादा करते थे। नि:संतान दंपती बच्चे की लालसा में उनके झांसे में आ जाते और नवजात खरीद लेते थे।

बड़ी फाइल यानी लड़का, छोटी फाइल लड़की

पुलिस ने बताया कि गिरोह के सदस्य आपस में कोड वर्ड में बात करते थे। आरोपी लड़के को बड़ी फाइल और लड़की को छोटी फाइल से संबोधित करते थे। लड़कों की मांग ज्यादा होने के कारण उसके ज्यादा रुपये की मांग करते थे। लड़की को कम रुपयों में भी बेच देते थे।

गोरा होने की गारंटी, नहीं तो बच्चा वापस

बच्चे का रंग सांवला होने पर एक सप्ताह में गोरा होने की गारंटी भी देते थे। एक सप्ताह में बच्चे का रंग साफ न होने पर उसे वापस लेने की गांरटी भी दी जाती थी। गिरोह इच्छुक दंपती को बच्चों की फोटो भेजता था। दंपती जो फोटाे पसंद करते थे, उन्हें वह नवजात बेच दिया जाता था। ये लोग सभी धर्म के नवजात उपलब्ध कराने का दावा भी करते थे।

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