महाकाल में दिखा एक और शिवलिंग, सुबह 3 बजे से शुरू हुई भस्म आरती

Update: 2025-07-27 02:13 GMT
महाकाल में दिखा एक और शिवलिंग, सुबह 3 बजे से शुरू हुई भस्म आरती
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श्रावण मास में प्रतिदिन आयोजित होने वाली बाबा महाकाल की भस्म आरती रविवार तड़के 3 बजे संपन्न हुई। आज की आरती की विशेषता यह रही कि शिवलिंग पर चढ़े भस्म और भांग के श्रृंगार के बीच भक्तों को बाबा महाकाल के शिवलिंग में एक अन्य शिवलिंग की झलक दिखाई दी। साथ ही मस्तक पर चांदी से बने कमल पुष्प और रुद्राक्ष की माला का श्रृंगार किया गया। इस अद्वितीय स्वरूप के दर्शन पाकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे और "जय श्री महाकाल" के जयकारों से मंदिर परिसर गुंजायमान हो गया।

महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पं. महेश शर्मा ने बताया कि श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर यह भस्म आरती संपन्न हुई। आरती की शुरुआत भगवान वीरभद्र के पूजन-अर्चन से हुई। इसके पश्चात चांदी के द्वार खोले गए और गर्भगृह में स्थित सभी देव प्रतिमाओं का विधिपूर्वक पूजन किया गया।

बाबा महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर, पंचामृत और फलों के रस से किया गया। प्रथम घंटाल बजाकर 'हरि ओम' उच्चार के साथ जल अर्पित किया गया। इसके बाद विशेष श्रृंगार, कपूर आरती, नवीन मुकुट, मोगरे व गुलाब की माला बाबा को धारण कराई गई। महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा शिवलिंग को कपड़े से ढककर भस्म अर्पित की गई। आज के श्रृंगार की विशेष बात यह रही कि बाबा महाकाल को भांग से सजाकर उनके मस्तक पर कमल का फूल और एक अन्य शिवलिंग की आकृति बनाई गई। इसके साथ ही रुद्राक्ष की माला पहनाई गई। बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। पौराणिक मान्यता है कि भस्म अर्पित करने के पश्चात भगवान महाकाल निराकार से साकार स्वरूप में प्रकट होते हैं।

 पूरे 45 दिन तक चलता है श्रावण उत्सव

बहुत कम लोग इस तथ्य को जानते हैं कि देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां श्रावण मास का उत्सव 30 नहीं बल्कि पूरे 45 दिन तक मनाया जाता है। इस बार यह उत्सव 18 अगस्त तक चलेगा।

श्रावण उत्सव के दौरान हर सोमवार को भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है। साथ ही अखिल भारतीय श्रावण महोत्सव, श्री महाकालेश्वर सांस्कृतिक संध्या और देशभर के ख्यातनाम कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ इस दौरान होती हैं। ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि आजादी से पूर्व महाकाल मंदिर में सवारी श्रावण शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होती थी और भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तक चलती थी—कुल 30 दिन। आजादी के बाद सवारी की शुरुआत श्रावण कृष्ण पक्ष से की जाने लगी, लेकिन समापन पूर्ववत भाद्रपद अमावस्या पर ही होता रहा। इसी कारण अब यह आयोजन कुल 45 दिनों तक चलता है, जिसे ‘श्रावण-भाद्रपद मास’ भी कहा जाता है। महाकाल मंदिर की पूजन परंपरा में मराठी पूजा पद्धति का भी प्रभाव है, जिसमें श्रावण मास की गणना शुक्ल पक्ष से की जाती है। यही कारण है कि उज्जैन में यह अनूठी परंपरा आज भी जीवित है।

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