सोचिए,: अगर आपके पास शादी न करने का ऑप्शन होता तो? जवाब इस फिल्म में मिलेगा
Movie Review
कौशलजी वर्सेज कौशल
कलाकार
आशुतोष राणा , शीबा चड्ढा , पवैल गुलाटी , ईशा तलवार , ब्रजेंद्र काला , ग्रुशा कपूर और आशीष चौधरी आदि
लेखक
सिद्धार्थ गोयल और सीमा देसाई
निर्देशक
सीमा देसाई
निर्माता
ज्योति देशपांडे , आशीष शुक्ला , पराग देसाई और आशीष वाघ
रिलीज
21 फरवरी 2025
रेटिंग
3/5
यह शायद अपने देश भारत में ही होता होगा कि लड़के और लड़की के जवान होते ही बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने देने के लिए जरूरी सहूलियतें मुहैया कराने के मां-बाप के लिए पहली प्राथमिकता इनकी शादी हो जाती है। कभी पिता दबाव बनाता है। कभी मां किसिम किसिम की बीमारियों का स्वांग रचकर बेटे को हां कहने पर मजबूर कर देती हैं। बेटा कुर्बानी देता है, अपने सपनों की, अपने ख्वाबों की। और, दूर कहीं बरसों जिस आंगन में सावन के झूले झूलती एक बिटिया ने सपनों के राजकुमार की कल्पना की होती है, उसकी मर्जी के बिना उसे बांध दिया जाता है एक अनजाने ‘बालक’ के साथ, जिसे खुद नहीं पता कि आगे करना क्या है? फिर दोनों के बच्चे होते हैं, बच्चे बड़े होकर फुर्र हो जाते हैं और रह जाते हैं लड़ते, झगड़ते, किलसते और एक दूसरे को कोसते मां-बाप। प्रेम दोनों में होता नहीं है क्योंकि वह तो शादी के पहले तलाशा जाता है, बाद में नहीं।
निर्देशक सीमा देसाई की फिल्म ‘कौशलजी वर्सेज कौशल’ ऊपरी तौर पर या कहें कि सरसरी तौर पर देखेंगे तो ओटीटी पर सीधे रिलीज होने वाली एक औसत फिल्म सी ही लगेगी, लेकिन फिल्म की अंतर्धारा इसे दूसरी फिल्मों से अलग करती है। इस फिल्म का अंडर करंट ऋषिकेश मुखर्जी जैसी फिल्मों का है। सीमा का अनुभव अभी उतना मजबूत नहीं है कि वह अपने विचार को परदे पर बिना प्रवचन की शक्ल दिए साधारण तरीके से सिनेमा में बुन सकें लेकिन उनकी नीयत और उनकी कोशिश, दोनों काबिले तारीफ हैं। ऐतिहासिक तथ्यों को सिनमाई मनोरंजन के लिए अपने हिसाब से पेश करने के इस दौर में कन्नौज (या कनौज) के एक प्रौढ दंपती की कहानी पर फिल्म बनाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
'कौशलजी वर्सेज कौशल' मूवी रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
फिल्म ‘कौशलजी वर्सेज कौशल’ में आशुतोष राणा और शीबा चड्ढा लीड रोल में हैं। जी हां, इस कहानी के असल पात्र यही हैं। हालांकि, यहां तक रोशनी इंटरवल के बाद ही पहुंचती है। इंटरवल के पहले ये फिल्म पवैल गुलाटी और ईशा तलवार के किरदारों की प्रेम कहानी सी पनपती दिखाई देती है। एक विज्ञापन एजेंसी का कॉपी राइटर ओपन माइक की एक शाम में न्यूयॉर्क से आई सुंदरी को दिल दे बैठता है। सुंदरी को एक ऐसे घर की तलाश है जहां सूरज बड़जात्या की फिल्मों सा पारिवारिक प्रेम हो, मिलता है उसे संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म जैसा परिवार जहां पिता इतना चीखता चिल्लाता रहता है कि बेटे की आवाज ही गुम सी हो गई लगती है। मां के सपने थे इत्र का कारोबार करने के। पिता भी अपनी आवाज ऊंची करने के लिए कव्वाली के ऊंचे सुर लगाने चाहता था। लेकिन, लोन, तेल, लकडी के चक्कर में अपने अपने सपने दोनों भूल गए।
फिल्म ‘छावा’ में जूनियर आर्टिस्ट की तरह निपटा दिए गए आशुतोष राणा ये फिल्म देखकर खुद पर नाज जरूर करेंगे। उनका इत्रशाला में बाबूगिरी करना और मौका मिलने पर कव्वाल होने के सपने को सबके सामने उजागर करते रहना, बहुत संवेदनशील कलाकारी है। उनका रुआब भी इस फिल्म में अच्छे से खिला है। फिल्म ‘कौशलजी वर्सेज कौशल’ हालांकि तीन साल पहले ही सेंसर हो चुकी फिल्म है लेकिन चूंकि इसकी कहानी कालजयी है लिहाजा इसके आगे-पीछे रिलीज होने से इसके कलेवर पर खास फर्क पड़ता नहीं है। सीमा देसाई की असल जीत इसी में हैं। अपनी पहली ही फीचर फिल्म में वह हिंदी सिनेमा की वह लीक पकड़ने में सफल रही है, जिस पर चलकर हिंदी सिनेमा यहां तक आ पाया है। और, ये लीक है अपने आसपास के समाज की ग्रंथियों को कैमरे के जरिये धीरे धीरे खोलना और फिर उनकी सुलझन को करीने से दर्शकों के सामने यूं परोसना कि कहीं न कहीं, कुछ न कुछ उसे घर तक पहुंचते तक कुरेदता रह जाए। इस मायने में फिल्म की हीरोइन शीबा चड्ढा ने भी कमाल का काम फिल्म मे किया है। खासतौर से अदालत वाले दृश्यों में वह खूब जमी हैं।
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फिल्म में एक और कलाकार की सुंदरता अपने पूरे शबाब पर है और वह हैं ईशा तलवार। ईशा तलवार में भारतीय सौंदर्य के वे सारे प्रतिमान हैं जिनकी तरफ हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों का ध्यान जाना चाहिए था, लेकिन वह शायद पैपराजी को पैसे देकर रोज एक रील सोशल मीडिया पर शेयर करा पाने की सूरत में नहीं हैं, नहीं तो चर्चे उनके भी खूब होते। ईशा का काम लाजवाब है। अगर ये फिल्म कुछ गुणी निर्देशकों ने देखी तो उनके लिए ये एक बेहद कामयाब शो रील बन सकती है। पवैल गुलाटी, ब्रजेंद्र काला, ग्रुशा कपूर, दीक्षा जोशी और आशीष चौधरी आदि ने फिल्म में सहायक कलाकारों के रूप में अच्छा काम किया है और अपनी अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया है। फिल्म का गीत-संगीत और संपादन इसकी कमजोर कड़ी है। फिल्म चूंकि ओटीटी पर है लिहाजा 90 मिनट की अवधि इसके लिए बिल्कुल फिट होती। फिर भी पारिवारिक मनोरंजन की तलाश में रहने वालों के लिए ये एक बेहतर विकल्प हो सकती है।