"झूठ रो गुलाब, सच रो अजवाइन"

Update: 2025-08-21 01:29 GMT

 



समाज रो हाल ऐसो हो गयो है—

झूठ नै गुलाब समझ कै सूंघ लो,

अर सच नै अजवाइन समझ कै नाक चढ़ा दो।

अब जमाना ऐसो है कि—

झूठ बोलण वालो सयाणो कहावै,

अर सच बोलण वालो “गाँव रो गामठ”।

मतलब झूठ तो "सिर पे ताज" है,

अर सच "गर्दन पे बोझ"।

कहावत भी कहै—

"सच तो दूध जैको है, पर झूठ में शक्कर गाळी होवै तो चाय बन जावै।"

बस समाज नै अब चाय ही पसंद है,

दूध तो सब्जी में डाल देतां है।

सोचो ज़रा—

अगर झूठ बोलतां मुँह पै फोड़ा-फुंसी फुट जावै,

तो आधा बाजार में कटहल रो मेला लाग जावै।

नेताजी रो हाल तो और निरालो—

झूठ बोलण उनकै खातर रोटी कमाण रो धंधो है।

अब कोई मंच पै बोल दै—

"भाइयो-बहिणो, पाणी, बिजली, सड़को हम नै मत पूछो, अपने ही जुगाड़ कर लो।"

तो लोग तालियां बजाय नै,

नेताजी नै सीधा ठेला पै लिटा कै अस्पताल भेज दै।

घर का हाल भी देख लो—

जब घरवाली पूछे—"कैंसी लाग रह्यां हूँ?"

तो पती रो हाल ऐसो हो जावै जैसे—

"ऊँट नै नन्हारी पै चढ़ाओ तो उतरे के हिम्मत न करै।"

मतलब झूठ बोलै तो संकट, सच बोलै तो अग्निपरीक्षा।

अब समाज दू टुकड़ा में बंट गयो है—

एक वो जे सच जाणै है, पर जीभ दबा कै बैठै।

अर दूजो वो जे झूठ जाणै है, पर दिन-रात मुँह में माइक बांधै घूमै।

सच बोलण वालां को हाल देख कै लागै है—

जैसे कोई बारूद रो घर में लालटेन लै घूमै।

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नत्थू रो किस्सा

एक बार नत्थू नै पेड़ तै आम तोड़ लियो।

सुरजा माली देख लियो, अर डपटतां बोल्यो—

"यो तेरे हाथ में आम कित तै आयो?"

नत्थू मुस्करातां बोल्यो—

"मन्नै तो जमीन पै पड्यो मिल्यो… अर सोच रह्यो थ्यो इसतै फेर तै पेड़ पै टांग द्यूं, ताकि आने वालां को पुण्य मिलै।"


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