विदाई के क्षणों में उमड़ा भावनाओं का सागर, गीतों व विचारों के माध्यम से जताए मन के जज्बात

Update: 2024-11-15 09:02 GMT

उदयपुर। चार माह के सफलतम चातुर्मास में विदाई की बेला की नजदीक आने पर श्रावक-श्राविकाओं के मन के जज्बात गीतों व विचारों के माध्यम से सामने आए। आचार्य संघ से चातुर्मास समाप्ति के बाद भी आशीर्वाद बनाए रखने और जल्द फिर उदयपुर की धरा को पावन करने की विनती की गई। चातुर्मास में आचार्य संघ से जिनशासन की आराधना व ज्ञान की जो बाते सीखने को मिली उसके प्रति भी काव्य रचनाओं व विचारों के माध्यम से आभार जताते हुए संकल्प दर्शाया गया कि उन सीखी हुई बातों को जीवन में उतारने का पूरा प्रयास करेंगे। पूरा माहौल श्रद्धा व भावनाओं से ओतप्रोत था।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया शुक्रवार को सुबह 7 बजे शोभागपुरा 100 फीट रोड स्थित आदेश्वर मंदिर से आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा का चातुर्मास परिवर्तन कराया गया जो आर्ची अपार्टमेन्ट स्थित मुनि सुव्रतनाथ स्वामी मंदिर न्यू भूपाल पुरा में राजेश्वरी देवी- श्यामलाल हरकावत के निवास पर गाजे-बाजे की मधूर स्वर लहरियों के साथ हुआ। जगह-जगह श्रावक-श्राविकाओं ने गऊली बनाकर आचार्य संघ का स्वागत किया गया। जहां पर व्याख्यान एवं शत्रुंजय भावयात्रा का आयोजन हुआ। उसके बाद सभी श्रावक-श्राविकाओं की नवकारसती का आयोजन हुआ।

श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में रामचन्द्र सुरिश्वर महाराज के समुदाय के पट्टधर, गीतार्थ प्रवर, प्रवचनप्रभावक आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा द्वारा चल रहे चातुर्मास का परिवर्तन व निष्ठापन शुक्रवार को आचार्य संघ की पावन निश्रा में शाश्वत गिरीराज श्री शत्रुजय तीर्थ की भाव यात्रा की गई। शत्रुजय तीर्थ के पट्ट समझ पांच चैत्यवंदन जिसमें जय तलेरी के सन्मुख, श्री की शांति नाथ भगवान का, तीसरा रामण पगले का, चोथा पुंडरिकस्वामी का एवं पांचवां की भादि नापजी भगनान का इस प्रकार किये। सिद्धाचल जी के इक्कीस खमासमण देकर भाव यात्रा की गई। संघ के प्रत्येक सदस्यों ने बहुत ही भावोल्लास पूर्वक आराधना की।

आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर ने बताया कि जगत में तीर्थ अनेक है। परन्तु शास्वत गिरिराज श्री शत्रुजय महातीर्थ की तुलना कर सके ऐसा कोई तीर्थ तीन लोक में नहीं है। महाविदेह क्षेत्र में विचरते नर्तमान तीर्थकर प्रभु श्री सीमंधर स्वामी परमात्मा ने जिस महातीर्च की महानता 1 और प्रभावकता की प्रशंसा की है। जिसके एक-एक पत्थर पे भी अनंत- अनंत आत्मा ने मोक्षपद पाया है और पायेंगे। जहाँ - आदिनाथ प्रभु पूर्व नव्वाणु बार पधारे है। जिसकी महिमा अपरंपार है । ऐसे महान तीर्थ की भाव यात्रा करके हम भी परमात्म भक्ति में तल्लीत बने हैं।

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