दूरदर्शी नेतृत्व का गांवों को जल आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम
उदयपुर। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने प्रदेश की बागडोर सम्भालते ही राज्यहित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जिनमें मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान 2.0 प्रारम्भ करना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। गांवों को जल आत्मनिर्भर बनाते हुए राजस्थान प्रदेश को जल स्थाई राज्य बनाना इस अभियान का मूल उद्देश्य है जिसे विभिन्न विभागों के समन्वय से हासिल के जाने का लक्ष्य है। इस अभियान के क्रियान्वयन से ग्रामीण इलाकों में न केवल पेयजल बल्कि सिंचाई एवं अन्य कार्यों के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सकेगा। इससे ग्रामीण जनता स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव होने से सशक्त व आत्मनिर्भर बनेगी जिससे उसके जीवन स्तर में सुधार आएगा। अभियान के प्रथम चरण के तहत ग्रामीण इलाकों में विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से प्रभावी जल संरक्षण के कार्य किए जा रहे हैं। वहीं दूरदर्शी सोच के साथ द्वितीय चरण में गांवों के चयन के लिए अभी से तैयारी प्रारम्भ कर दी गई है। प्रदेश के जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के निदेशालय के निर्देश पर इस दिशा में कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है। जिला कलक्टर अरविंद पोसवाल ने संबंधित विभागों, विकास अधिकारियों व तहसीलदारों को पत्र लिखकर ब्लॉकवार एवं गांव वार सूचना मांगी है।
इन गांवों को दी जाएगी प्राथमिकता
जलग्रहण विभाग के अधीक्षण अभियंता अतुल जैन ने बताया कि ऐसे गांव जहां पहले से कोई वॉटर शेड परियोजना स्वीकृत हो, वह गांव जहां पीने का योग्य पानी उपलब्ध नहीं है या फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, जिन गांवों में गत 5 वर्षों के दौरान टैंकरों से पेयजल आपूर्ति की गई है, वह गांव जिनमें पिछले 5 वर्षों के दौरान अकाल घोषित किया गया हो, वह गांव जहां 70 प्रतिशथ कृषि भूमि वर्षा पर निर्भर करती है, जनप्रतिनिधियों व अन्य योजनाओं के तहत चयनित आदर्श गांव, वे गांव जो वन विभाग के क्लस्टर के अंतर्गत आते हैं अथवा अभियान के तहत योगदान देने के इच्छुक गांवों का दूसरे चरण के लिए प्राथमिकता के साथ चयन किया जाएगा।
जल संरक्षण के निम्न कार्यों पर रहता है फोकस
अभियान के दौरान इस प्रकार के कार्य किए जाते हैं जिससे भूमिगत जल स्तर में सुधार हो, सतह पर पानी की उपलब्धता बढ़े एवं कृषि संबंधी कार्यों में सुधार के साथ-साथ उत्पादन बढ़े। विशेषकर जल संरक्षण, चारागाह विकास, वृक्षारोपण, फसल व उद्यानिकी की उन्नत विधि जैसे ड्रीप, सोलर पंप आदि को बढ़ावा देकर व्यावसायिक व आधुनिक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है। जलग्रहण क्षेत्र उपचार के कार्यों जैसे डीप कन्टीन्यूअस कन्टूर ट्रेन्चेज (सीसीटी), स्ट्रेगर्ड ट्रेन्चेज, फार्म फोण्ड्स, मिनी परलोकेशन टेंक (एमपीटी), संकन गली पिट (एसजीपीटी), खड़ीन, जोहड़, टांका निर्माण, गैबियन, कम्पार्टमेन्ट, कन्टूर, फील्ड बंड, छोटे एनिकट, मिट्टी के चैक डेम, जलग्रहण ढांचा, नाला स्थिरीकरण, पैरीफेरल बंड कार्य किए जाते हैं। लघु सिंचाई योजना के कार्य जैसे माईनर ईरीगेशन टेंक की मरम्मत, नवीनीकरण , सुदृढ़ीकरण कार्य एवं जल स्त्रोतों व संरचनाओं को नालों से जोड़ना आदि कार्यों के साथ ही जल संग्रहण ढांचों की क्षमता बढ़ाने के लिए मरम्मत एवं पुनरोद्धार करना, नालों से मिट्टी निकाल कर गहरा व चौड़ा करना, पेयजल स्त्रोतों का सुदृढ़ीकरण, कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण संरचनाओं का पुनर्जलभरण कार्य भी इनमें शामिल हैं।
उदयपुर के लिए प्रथम चरण में 295 करोड़ के 15232 कार्यों की डीपीआर
जिला कलक्टर अरविंद पोसवाल के अनुसार उदयपुर जिले में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान 2.0 के प्रथम चरण के तहत 151 ग्राम पंचायतों के 350 गांवों में 295.36 करोड़ के 15232 कार्यों की डीपीआर तैयार की गई। इनमें से स्वीकृत 2996 कार्यों में से 1654 पूर्ण कर लिए गए हैं और 1342 प्रगतिरत हैं। प्रथम चरण की डीपीआर के कार्य 30 जून 2025 तक पूर्ण करने का लक्ष्य है। अभियान में कृषि, उद्यानिकी, वन, भू-जल, पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास, जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी, जल संसाधन तथा जल ग्रहण विभाग के माध्यम से कार्य किए जा रहे हैं। यह कार्य विभागीय मद, नरेगा मद एवं राज्य मद से प्राप्त राशि से करवाए जा रहे हैं।