आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा

उदयपुर, 14 जुलाई। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कच्छवागड़ देशोद्धारक अध्यात्मयोगी आचार्य श्रीमद विजय कला पूर्ण सूरीश्वर महाराज के शिष्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय कल्पतरु सुरीश्वर महाराज के आज्ञावर्तिनी वात्सलयवारिधि जीतप्रज्ञा महाराज की शिष्या गुरुअंतेवासिनी, कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा , जिनदर्शिता जिनमुद्रा महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि सोमवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की।
इस दौरान आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता ने प्रवचन में बताया कि प्रभु का नाम हृदय को पवित्र बनाता है, शीतलता और शान्ति प्रदान करता है। तीव्र ज्वर में कोई सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रख दे तो कितनी शान्ति मिलती है, इसी प्रकार संसार की दावाग्नि से संतप्त प्राणी के लिए भगवान का नाम ही सहारा है। तीर्थकरों के नाम सुमिरण के साथ जीवन-दर्शन से हमारे जीवन की दिशा और दशा परिवर्तित हो जाती है। दर्पण चेहरे के दाग दिखाता है, और तीर्थकरों का जीवन दर्पण हमारे अन्तर के दोषों को दिखाते हैं। तीर्थकरों की स्तुति जीवन को सरस, सुंदर, समृद्ध और पूर्ण बनाने का अद्वितीय साधन है। तीर्थकरों की स्तुति से, स्मरण से, कीर्तन से भी हम जो चाहे वह पा सकते हैं।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।