संतों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

By :  vijay
Update: 2025-04-09 13:45 GMT
संतों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
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उदयपुर  । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में बुधवार को तपस्वीरत्न आचार्य भगवंत पद्म भूषण रत्न सुरिश्वर महाराज, साध्वी भगवंत कीर्तिरेखा महाराज आदि ठाणा की निश्रा में नो दिवसीय नवपद आयंबिल ओली की शाश्वती आराधना के पांचवें दिन विविध आयोजन हुए।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे संतों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। वहीं नो दिवसीय नवपद की आयंबिल ओली में 125 तपस्वी नवपद की आयंबिल ओली का सामूहिक तप कर रहे है। नाहर ने बताया कि आगामी 12 से 14 अप्रैल को 12 से 20 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए संस्कार शिविर का आयोजन होगा।

नाहर ने बताया कि सोमवार को आयोजित धर्मसभा में आचार्य भगवंत पद्म भूषण रत्न सुरिश्वर महाराज ने श्री नवपद की आराधना के छठे दिन नवपद की आराधना के विषय में बताया कि जैन शासन ने श्रद्धा गुण की व्याख्या ऐसी कि है कि सच क्या है और मिथ्या क्या है उसका विवेक करो और बाद में सच को ही सच मानो तथा मिथ्या को मिथ्या ही मानो यह है श्रद्धा। श्रद्धा को ही सम्यग्दर्शन कहते है। सम्यग दर्शन के अभाव में कितने भी उपवास करें, डाइटिंग है तप नहीं, सम्यक दर्शन के अभाव में कितना भी दान करों खर्च ही है दान नहीं। सम्यक दर्शन के अभाव में दीक्षा भी ले लो व्यायाम ही है चारित्र नहीं। सम्यक दर्शन का महत्व स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि मानो कि सम्यकदर्शन मोक्ष का रिजर्वरेशन है और सम्यक दर्शन रहित धर्म क्रिया बिना लाइसेंस की ड्राइविंग है। नवपद की आराधना करने पर श्रीपाल राजा का कुष्ट नाश हो गया ऐसे नवपद की आराधना का आज छठा दिन है और सम्यग्दर्शन की आराधना करती है। सम्चार दर्शन की आराधना से अशुद्ध भाव दूर हो जायेंगे, निर्मल भाव उदित होंगे और भावों की निर्मलता से भक्ति का निर्झर बहता है। सम्यग्दर्शन की आराधना ही मोक्ष मार्ग का सोपान है। दर्शन यानी जुद्धा, आस्था, विश्वास। जिस तरह से सुलसा जानिका को परमात्मा महावीर पर अटूट श्रद्धा थी। हमारी कोई भी क्रिया श्रद्धापूर्वक, विश्वासपूर्वक, आस्था पूर्वक होनी चाहिए। हम क्रिया तो करते हैं मगर द्रव्य क्रिया करते है। हमने कितनी बार मनुष्य भव प्राप्त किया, कितनी ही बार आराधना की, कितनी ही बार चरित्र ग्रहण किया, मेरु पर्वत जितने सोधे प्राप्त किये लेकिन अभी तक आत्मा का कल्याण नहीं हुआ।

सूरत से आए मोन्टू भाई ने जिनशासन के गुरु तत्व के बारे में अद्भुत विवेचना की। मुंबई के स्टार कलाकार मोहित भाई ने देवों से बड़ा जैन मुनि का मान है की संगीतमय प्रस्तुति दी।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, सतीश कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चतर पामेचा, राजेश जावरिया, चन्द्र सिंह बोल्या, दिनेश भण्डारी, अशोक जैन, दिनेश बापना, कुलदीप मेहता, नरेन्द्र शाह, चिमनलाल गांधी, गोवर्धन सिंह बोल्या आदि मौजूद रहे।

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