21 दिसंबर को राज्यपाल करेंगे उद्घाटन, संस्कृति मंत्री शेखावत और पंजाब के राज्यपाल भी रहेंगे मौजूद
उदयपुर। एक साल से प्रतीक्षित लोककलाओं के महासंगम शिल्पग्राम उत्सव की शुरुआत 21 दिसंबर को होगी। राज्यपाल राजस्थान और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अध्यक्ष हरिभाऊ किसनराव बागडे नगाड़ा बजाकर उत्सव के उद्घाटन की घोषणा करेंगे। समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत करेंगे। अतिविशिष्ट आमंत्रित अतिथि माननीय राज्यपाल पंजाब एवं प्रशासक चंडीगढ़ गुलाब चन्द कटारिया रहेंगे। इनके साथ ही उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत, चित्तौड़गढ़ सांसद सी. पी. जोशी, राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन तथा उदयपुर ग्रामीण विधायक फूल सिंह मीणा भी उद्घाटन समारोह की शोभा बढ़ाएंगे ।
मुख्यतया लोक कलाओं की प्रस्तुतियों के लिए जाने-माने इस उत्सव में देश भर की उत्कृष्ट लोक कलाओं का प्रदर्शन होगा। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि उदयपुर का शिल्पग्राम उत्सव संभवतः देश का अकेला ऐसा उत्सव है, जिसमें लोक कलाओं पर आधारित प्रस्तुतियों के संग दर्शक इतने उत्साह से जुड़ते हैं।
उन्होंने बताया कि प्रथम दिवस दोपहर 3.00 बजे से प्रवेश निःशुल्क होगा।
दो कलाकारों को डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार -
इस बार डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार राजकोट (गुजरात) के डॉ. निरंजन वल्लभभाई राज्यगुरु और जयपुर (राजस्थान) के रामनाथ चौधरी को प्रदान किया जाएगा। इस पुरस्कार में प्रत्येक को एक रजत पट्टिका के साथ ही 2.51 लाख रुपए की राशि दी जाती है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पहला ऐसा केंद्र है, जिसने लोक कला के क्षेत्र में ऐसा पुरस्कार देना आरम्भ किया। यह पुरस्कार राजस्थान के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ पद्मश्री डॉ. कोमल कोठारी जी की स्मृति में दिया जाता है।
22 राज्यों के लोक कलाकार होंगे शामिल -
इस उत्सव में करीब 22 राज्यों (राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, असम, मेघालय, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, मणिपुर, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, दादरा नगर हवेली) के करीब 900 लोक कलाकार भाग लेंगे। इस दस दिवसीय उत्सव में करीब 91 आर्टिस्ट ग्रुप्स द्वारा देश की विभिन्न हिस्सों की 82 लोक कला का प्रदर्शन किया जाएगा। शिल्पग्राम में बने थड़ों पर बहरूपिया, कच्ची घोड़ी, कच्छी लोक गायन, राठवा, सुंदरी वादन, अल्गोजा वादन, गवरी, मशक वादन, मांगणियार, चकरी, तेरह ताल, कालबेलिया आदि का प्रदर्शन रोजाना दिनभर किया जाएगा। प्रयास ये किया गया है कि प्रतिदिन कुछ नई प्रस्तुतियां हों ताकि दर्शकों को हर दिन कुछ नया देखने को मिले।
पत्थरों में तराशे स्कल्पचर -
साथ ही 12 पत्थरों में तराशे गए विशेष स्कल्पचर भी आकर्षण का केन्द्र रहेंगे, इनमें पुराना कैमरा, पुराना टेलीफोन, भाप का इंजन, लोमड़ी, बैग पाइप, रीढ़ की हड्डी, रेडियो, बल्ब, बूट, पर्दे से निहारते चेहरे, वायलिन और किताब शामिल है। इन स्कल्पचर को देश के युवा मूर्तिकारों द्वारा पत्थर में विशेष रूप से शिल्पग्राम उत्सव के लिए उकेरा गया है। वहीं, पूर्व में तराशे गए वाद्य यंत्र एवं 12 राशियों के प्रतीक चिह्न तो दर्शकों को लुभा ही रहे हैं।
घूमर नृत्य करती प्रतिमाऐं -
राजस्थानी वेशभूषा में घूमर नृत्य करते हुए विभिन्न मुद्राओं के 12 पुतले भी दर्शकों को लुभाएंगे। इनका निर्माण बंगाल से विशेष रूप से बुलाए गए कारीगरों द्वारा किया गया है।
फतेहसागर सहेलियों की बाड़ी के मिनिएचर मॉडल -
संगम हॉल में शिल्पग्राम एवं शिल्पग्राम उत्सव के विषय पर आयोजित फोटोग्राफी प्रतियोगिता में चयनित फोटोग्राफ्स, केन्द्र द्वारा वर्षभर में आयोजित कार्यशालाओं - शिविरों में बनी पेंटिंग्स एवं हाजी सरदार मोहम्मद द्वारा बनाए गए सहेलियों की बाड़ी, सज्जनगढ़, फतहसागर पाल, घंटाघर आदि के मॉडल के साथ प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके अलावा उत्सव में कई अन्य आकर्षण भी जोड़े जाएंगे। शिल्पग्राम के मुख्य द्वार को राजस्थान की सहरिया जनजाति की चित्रकारी से सजाया गया है। पूरे शिल्पग्राम को माण्डणे, शाही सवारी आदि से चित्रित किया गया है।
युवाओं को लुभाएगा हिवड़ा री हूक -
22 से 29 दिसंबर तक ‘हिवड़ा री हूक’ कार्यक्रम बंजारा मंच पर प्रतिदिन दोपहर 1 से 4 बजे तक आयोजित होगा, जिसमें दर्शकों द्वारा प्रस्तुतियां दी जाएंगी, इसके साथ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता भी चलती रहेगी। इस कार्यक्रम में मेले में आए दर्शक अपनी प्रस्तुति दे सकेंगे। सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी का सही उत्तर देने वाले व्यक्ति को शिल्पग्राम स्मृति चिह्न दिया जाएगा।
कार्यशालाएं -
शिल्पग्राम उत्सव के दौरान दस दिवसीय ट्राईबल मास्क, पेपरमैशी एवं कठपुतली कार्यशालाएं भी आयोजित की जाएंगी। इनमें प्रतिभागी भाग लेकर विषय विशेषज्ञों से कला की बारीकियां सीख सकेंगे।
नेशनल पेंटिंग शिविर -
पांच दिवसीय नेशनल पेंटिंग सिम्पोजियम शिविर 21 से 25 दिसंबर तक विजन भारत 2047 थीम पर आयोजित किया जाएगा, जिसमें देश के 15 नामचीन वरिष्ठ एवं पद्मश्री कलाकार भाग लेंगे।
प्रथम दिवस की प्रस्तुतियां -
उत्सव के पहले दिन राजस्थानी गीतों पर आधारित एक मेडले की प्रस्तुति डॉ. प्रेम भण्डारी के निर्देशन में उनके दल द्वारा दी जाएगी। ये प्रस्तुति लोक गायन की मूल शैली को बरकरार रखते हुए शास्त्रीय अंदाज़ में प्रस्तुत की जायेगी साथ ही, महाराष्ट्र की लावणी और कथक के विशेष रूप से तैयार किया गया फ्यूज़न मन मोहेगा। वहीं, 14 राज्यों के लगभग 200 कलाकारों द्वारा एक कोरियोग्राफ नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा जिसे प्रसिद्ध कोरियोग्राफर सुशील शर्मा तैयार करवा रहे हैं।
दिन भर लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां -
प्रतिदिन अलग-अलग मंचों पर दिनभर लोक नृत्यों की प्रस्तुति चलती रहेगी तथा शाम को 6 बजे से मुख्य मंच पर विशेष कार्यक्रम होंगे। इस बार मुख्य प्रस्तुतियों में भारत के कई राज्यों के लोक नृत्यों को आमंत्रित किया है। उत्सव के 10 दिवस में 91 लोक कला दलों के लगभग 900 कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगे।
हर दिन कुछ ना कुछ नया -
प्रयास किया जा रहा है कि दर्शकों को ना केवल मुख्य मंच पर, बल्कि अन्य छोटे मंचों पर भी प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया देखने को मिले। इसके लिहाज से पंडवानी गायन, बाउल प्रस्तुति के साथ ही नगाड़ा वादन की प्रस्तुतियों के साथ ही अंतिम दो दिनों में झंकार के नाम से जानी जाने वाली विशेष प्रस्तुति भी होगी।
मेले में 400 क्राफ्ट स्टाल्स -
शिल्पग्राम उत्सव में 400 के लगभग क्राफ्ट स्टाल्स लगेंगी। इनमें करीब दो दर्जन राज्यों के 800 शिल्पकार और कारीगर अपना उत्पाद विक्रय करेंगे। इस बार जोधपुर से ऊन बोर्ड, कोलकाता के जूट बोर्ड और ट्राइफेड की ओर से भी स्टाल्स लगाई जाएंगी। प्रयास किया गया है कि अधिक से अधिक राज्यों के कारीगरों के उत्पादों को शामिल किया जाए।
मेले में चार फूड ज़ोन होंगे -
दर्शकों को विभिन्न राज्यों के स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध करवाने के लिए चार फूड ज़ोन बनाए गए हैं, जहां लगभग 12 राज्यों के फूड का जायका लिया जा सकेगा।
कारीगरी का लाइव प्रदर्शन -
इस बार मेले में कारीगरी के प्रदर्शन के लिए ऐसे शिल्प कारीगरों को भी आमंत्रित किया जा रहा है, जो मौके पर ही अपनी कारीगरी का प्रदर्शन (डेमो) भी करेंगे। उत्सव में सालावास की दरियां, पट्टू शॉल, कोटा डोरिया, कश्मीरी बुनाई, मोलेला की मिट्टी शिल्प, लाख की चूड़ियां आदि बनाने की प्रक्रिया के मौके पर प्रदर्शन की व्यवस्था की जा रही है।
डॉक्यूमेंट्री का स्क्रीन पर प्रदर्शन -
इस बार मेले में कुछ स्थानों पर स्क्रीन लगाकर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा लोक कला और शिल्प पर बनवाई गई डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया जाएगा। इसका उद्देश्य हमारी समृद्ध विरासत के प्रति संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करना है।
मेले का परिवेश -
निदेशक खान ने बताया कि मेले के परिवेश (।उइपमदबम) को लोक और राजस्थान की हवेलीयों की थीम पर सजाया जा रहा है। बंगाल के कारीगर मुख्य मंच का बैकड्रॉप और मंच के गेट राजस्थान की हवेली थीम पर बना रहे हैं।
मेले में ये होंगी प्रस्तुतियां -
राजस्थान से चरी, भपंग, भवई, मांगणियार गायन, कालबेलिया, आदिवासी गेर, कच्ची घोड़ी, गवरी, तेरह ताली, मशक वादन, लाल व सफेद आंगी गेर, सहरिया स्वांग, देड़िया, मयूर नृत्य, जम्मू कश्मीर के रौफ, असम से बिहू, उत्तर प्रदेश से देढ़िया, नटुवा, मेघालय के थांगटा व चैरौल जागोई, महाराष्ट्र के लावणी, सौंगी मुखवटे, सुंदरी वादन, मल्ल खंभ, मणिपुर के लाई हारोबा, पश्चिमी बंगाल के रायबेंसे, कर्नाटक के पूजा कुनीता व ढोलु कुणिता, गुजरात के तलवार रास, राठवा, सिद्धि धमाल, गरबा रास, कच्छी लोक गायन, डांग, पश्चिमी बंगाल के पुरूलिया छाऊ, बाऊल संगीत, उत्तराखण्ड के छपेली, पंजाब के लुड्डी, भांगड़ा, हरियाणा के घूमर, गोवा के समई, देखणी, घोड़े मोढ़नी व घूमट, छत्तीसगढ के पण्डवाणी गायन, ओडिशा के गोटिपुआ, संभलपुरी, तमिलनाडु के कावड़ी कड़गम, मणिपुर के पुंग ढोल चोलम के अलावा विभिन्न राज्यों के लोकसंगीत ताल बंदी, नगाड़ा वादन आदि के कलादल भी शामिल हैं। वहीं, शास्त्रीय नृत्य कथक व लावणी सिम्फनी की भी मनमोहक प्रस्तुति दी जाएगी।
डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार पाने वाले कलाकार - परिचय
रामनाथ चौधरी (अलगोजा वादक)
रामनाथ चौधरी जयपुर के रहने वाले हैं, जिन्होंने 60 वर्षों से राजस्थानी लोककला एवं संगीत के क्षेत्र में कार्य किया है। अलगोजा (राजस्थान का वाद्य यंत्र) वादन में इनकी विशेषता है। राजस्थान के अंतरराष्ट्रीय अलगोजा वादक रामनाथ चौधरी का इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड (2022) में नाम दर्ज है। चौधरी ने नाक से 5 मिनट 5 सेकण्ड अलगोजा बजाने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। साथ ही, वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन (2025) में 20 मिनट 35 सेकण्ड का रिकॉर्ड दर्ज है। चौधरी नाक से अलगोजा बजाने वाले दुनिया के एकमात्र कलाकार है और 12 फीट लम्बी मूंछे रखने का भी रिकॉर्ड है। रामनाथ चौधरी राजस्थानी कला एवं संस्कृति का देश-विदेशों में प्रचार-प्रसार कर चुके हैं। साल 2000 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी रामनाथ चौधरी की मूंछें व नाक से अलगोजा बजाने की कला से प्रसन्न होकर अपने साथ अमेरिका ले गए थे। इसके बाद चौधरी कई देशों की यात्रा कर राजस्थान की कला व संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर चुके हैं। चौधरी अब तक अमेरिका, जर्मनी, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित एक दर्जन से अधिक देशों में अलगोजा के सुर के साथ-साथ अपनी मूंछों का प्रदर्शन कर चुके हैं। रामनाथ चौधरी का जन्म राजधानी जयपुर के बाड़ा पदमपुरा गांव में साल 1950 में जाट परिवार में हुआ। रामनाथ चौधरी ने आठ साल की उम्र में गांव में ही अलगोजा बजाना सीखा।
डॉ. निरंजन वल्लभभाई राज्यगुरु
गुजरात के डॉ. निरंजन वल्लभभाई राज्यगुरु जाने माने कवि, लेखक-साहित्यकार, विवेचक, लोकविद्याविद्, संशोधक, लोक गायक, प्रसार भारती -रेडियो-दूरदर्शन के लाइव प्रसारणों में कला प्रस्तुति देने वाले व लाइव कोमेंट्री देने वाले उच्च कोटि के कलाकार है। गुजरात के विश्व विद्यालयों में विजिटिंग प्रोफ़ेसर और पीएच.डी. के परीक्षक के तौर पर मान्यता प्राप्त डॉ. राज्यगुरु की मध्यकालीन गुजराती संतसाहित्य, भक्तिसहित्य, लोकसाहित्य के विषय में लगभग पचास किताबें प्रकाशित हुई हैं। डॉ. निरंजन राज्यगुरु को सर्व प्रथम सन 1992 में गुजराती भाषा में उनकी कृति पर राष्ट्रीय स्तर की डॉ. होमी भाभा फ़ेलोशिप मिली, जिसमें उन्होंने गुजरात के विभिन्न विभागों से ट्रेडिशनल लोकसंगीत व भक्ति संगीत का क्षेत्रकार्य (फिल्ड वर्क) करके 700 घन्टे का ध्वनि मुद्रांकन किया है। यह एक दस्तावेजी कार्य है, जो बिना मूल्य वेबसाइट रामसागर डॉट ओआरजी के ऊपर उपलब्ध है। इसके अलावा गुजरात साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप, गुजरात राज्य गौरव पुरस्कार, कवि काग अवार्ड, फूलछाब कला साहित्य अवार्ड, झवेरचंद मेघाणी अवार्ड, संस्कार विभूषण सन्मान, गुजरात लोक कला गौरव पुरस्कार (2019), सव्यसाची सारस्वत अवार्ड (2019), श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर (2020), दर्शक साहित्य अवार्ड 2023 जैसे कई बड़े सम्मान मिले हैं। सन् 2012 में गुजरात की संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत कर गौरव पुरस्कार प्रदान किया। गुजरात के लोकसंगीत क्षेत्र में उन्हें महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों संगीत नाटक अकादमी दिल्ली का राष्ट्रीय लोकसंगीत अवार्ड 2019 प्रदान किया जा चुका है। घोघावदर गांव से पहले स्थित आनंद आश्रम में इनके बीस हजार किताबों का संदर्भ ग्रंथालय और पैंसठ गीर गौवांकी गोशाला है।
