विश्वविख्यात शिल्पग्राम उत्सव 21 दिसंबर से, लोककला संस्कृति का भव्य संगम, राज्यपाल बागड़े करेंगे उद्घाटन

Update: 2025-12-19 15:20 GMT

 

उदयपुर, । लेकसिटी में आयोजित होने वाले और दुनिया भर में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके लोककलाओं के महासंगम शिल्पग्राम उत्सव की शुरुआत रविवार 21 दिसंबर को होगी। राजस्थान के राज्यपाल एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अध्यक्ष  हरिभाऊ किसनराव बागड़े नगाड़ा बजाकर उत्सव के उद्घाटन की घोषणा करेंगे। शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री   गजेंद्र सिंह शेखावत करेंगे। अतिविशिष्ट आमंत्रित अतिथि के रूप में पंजाब के माननीय राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक  गुलाब चंद कटारिया भी समारोह में शिरकत करेंगे।

साथ ही उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत, चित्तौड़गढ़ सांसद   सी. पी. जोशी, राज्यसभा सांसद  चुन्नीलाल गरासिया, उदयपुर शहर विधायक   ताराचंद जैन तथा उदयपुर ग्रामीण विधायक   फूलचंद मीणा भी उद्घाटन समारोह की शोभा बढ़ाएंगे। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि मूल रूप से लोक कलाओं की प्रस्तुतियों के लिए जाने-माने इस उत्सव में देश भर की उत्कृष्ट लोक कलाओं का प्रदर्शन होगा। उदयपुर का शिल्पग्राम उत्सव संभवतः देश का अकेला ऐसा उत्सव है, जिसमें लोक कलाओं पर आधारित प्रस्तुतियों के संग दर्शक इतने उत्साह से जुड़ते हैं। उन्होंने बताया कि उत्सव के प्रथम दिवस रविवार को दोपहर 3 बजे से प्रवेश निःशुल्क रहेगा।

दो कलाकारों को डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार

निदेशक खान ने बताया कि इस वर्ष डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार राजकोट (गुजरात) के डॉ. निरंजन वल्लभभाई राज्यगुरु और जयपुर (राजस्थान) के  रामनाथ चौधरी को प्रदान किया जाएगा। इस पुरस्कार में प्रत्येक को एक रजत पट्टिका के साथ ही 2.51 लाख रुपए की राशि दी जाती है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पहला ऐसा केंद्र है, जिसने लोक कला के क्षेत्र में ऐसा पुरस्कार देना आरंभ किया। यह पुरस्कार राजस्थान के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ पद्म  डॉ. कोमल कोठारी की स्मृति में दिया जाता है।

22 राज्यों के लोक कलाकार होंगे शामिल

उत्सव में करीब 22 राज्यों (राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, असम, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मणिपुर, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, दादरा नगर हवेली) के करीब 900 लोक कलाकार भाग लेंगे। इस दस दिवसीय उत्सव में करीब 91 आर्टिस्ट ग्रुप्स द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों की 82 लोक कलाओं का प्रदर्शन किया जाएगा। शिल्पग्राम में बने थड़ों पर बहरूपिया, कच्ची घोड़ी, कच्छी लोक गायन, राठवा, सुंदरी वादन, अल्गोजा वादन, गवरी, मशक वादन, मांगणियार, चकरी, तेरह ताल, कालबेलिया आदि का प्रदर्शन रोजाना दिनभर किया जाएगा। प्रयास यह किया गया है कि प्रतिदिन कुछ नई प्रस्तुतियां हों, ताकि दर्शकों को हर दिन कुछ नया देखने को मिले।

पत्थरों में तराशे स्कल्पचर रहेंगे आकर्षक का केंद्र

साथ ही 12 पत्थरों में तराशे गए विशेष स्कल्पचर भी आकर्षण का केंद्र रहेंगे। इनमें पुराना कैमरा, पुराना टेलीफोन, भाप का इंजन, लोमड़ी, बैगपाइप, रीढ़ की हड्डी, रेडियो, बल्ब, बूट, पर्दे से निहारते चेहरे, वायलिन और किताब शामिल हैं। इन स्कल्पचर्स को देश के युवा मूर्तिकारों द्वारा पत्थर में विशेष रूप से शिल्पग्राम उत्सव के लिए उकेरा गया है। वहीं, पूर्व में तराशे गए वाद्य यंत्र एवं 12 राशियों के प्रतीक चिह्न तो दर्शकों को लुभा ही रहे हैं। राजस्थानी वेशभूषा में घूमर नृत्य करते हुए विभिन्न मुद्राओं के 12 पुतले भी दर्शकों को आकर्षित करेंगे। इनका निर्माण बंगाल से विशेष रूप से बुलाए गए कारीगरों द्वारा किया गया है।

फतेहसागर-सहेलियों की बाड़ी के मिनिएचर मॉडल भी खीचेंगे ध्यान

संगम हॉल में शिल्पग्राम एवं शिल्पग्राम उत्सव के विषय पर आयोजित फोटोग्राफी प्रतियोगिता में चयनित फोटोग्राफ्स, केंद्र द्वारा वर्षभर में आयोजित कार्यशालाओं व शिविरों में बनी पेंटिंग्स एवं हाजी सरदार मोहम्मद द्वारा बनाए गए सहेलियों की बाड़ी, सज्जनगढ़, फतेहसागर पाल, घंटाघर आदि के मॉडल प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके अलावा उत्सव में कई अन्य आकर्षण भी जोड़े गए हैं। शिल्पग्राम के मुख्य द्वार को राजस्थान की सहरिया जनजाति की चित्रकारी से सजाया गया है। पूरे शिल्पग्राम को मांडणे, शाही सवारी आदि से चित्रित किया गया है।

युवाओं को लुभाएगा ‘हिवड़ा री हुक’

22 से 29 दिसंबर तक ‘हिवड़ा री हुक’ कार्यक्रम बंजारा मंच पर प्रतिदिन दोपहर 1 से 4 बजे तक आयोजित होगा, जिसमें दर्शकों द्वारा प्रस्तुतियां दी जाएंगी। इसके साथ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता भी चलती रहेगी। इस कार्यक्रम में मेले में आए दर्शक अपनी प्रस्तुति दे सकेंगे। सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी का सही उत्तर देने वाले व्यक्ति को शिल्पग्राम स्मृति-चिह्न दिया जाएगा। शिल्पग्राम उत्सव के दौरान दस दिवसीय ट्राइबल मास्क, पेपरमैशी एवं कठपुतली कार्यशालाएं भी आयोजित की जाएंगी। इनमें प्रतिभागी भाग लेकर विषय विशेषज्ञों से कला की बारीकियां सीख सकेंगे। इसके अलावा पांच दिवसीय नेशनल पेंटिंग सिम्पोजियम शिविर 21 से 25 दिसंबर तक ‘विजन भारत 2047’ थीम पर आयोजित किया जाएगा, जिसमें देश के 15 नामचीन वरिष्ठ एवं पद्मश्री कलाकार भाग लेंगे।

प्रथम दिवस की प्रस्तुतियां

उत्सव के पहले दिन राजस्थानी गीतों पर आधारित एक मेडले की प्रस्तुति डॉ. प्रेम भंडारी के निर्देशन में उनके दल द्वारा दी जाएगी। यह प्रस्तुति लोक गायन की मूल शैली को बरकरार रखते हुए शास्त्रीय अंदाज़ में प्रस्तुत की जाएगी। साथ ही महाराष्ट्र की लावणी और कथक के विशेष रूप से तैयार किए गए संयोजन मन मोहेगा। वहीं, 14 राज्यों के लगभग 200 कलाकारों द्वारा एक कोरियोग्राफ नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा, जिसे प्रसिद्ध कोरियोग्राफर सुशील शर्मा तैयार करवा रहे हैं। प्रतिदिन अलग-अलग मंचों पर दिनभर लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां चलती रहेंगी तथा शाम को 6 बजे से मुख्य मंच पर विशेष कार्यक्रम होंगे। उत्सव के 10 दिवस में 91 लोक कला दलों के लगभग 900 कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगे।

हर दिन कुछ न कुछ नया

निदेशक खान ने बताया कि प्रयास किया जा रहा है कि दर्शकों को न केवल मुख्य मंच पर, बल्कि अन्य छोटे मंचों पर भी प्रतिदिन कुछ न कुछ नया देखने को मिले। इसके तहत पंडवानी गायन, बाउल प्रस्तुति, नगाड़ा वादन के साथ-साथ अंतिम दो दिनों में ‘झंकार’ नामक विशेष प्रस्तुति भी होगी। शिल्पग्राम उत्सव में लगभग 400 क्राफ्ट स्टॉल्स लगेंगी, जिनमें करीब दो दर्जन राज्यों के 800 शिल्पकार और कारीगर अपने उत्पादों का विक्रय करेंगे। इस बार जोधपुर से ऊन बोर्ड, कोलकाता के जूट बोर्ड और ट्राइफेड की ओर से भी स्टॉल्स लगाई जाएंगी।

मेले में होंगे चार फूड जोन

दर्शकों को विभिन्न राज्यों के स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध कराने के लिए चार फूड जोन बनाए गए हैं, जहां लगभग 12 राज्यों के लजीज व्यंजनों का स्वाद लिया जा सकेगा। इस बार मेले में कारीगरी के प्रदर्शन के लिए एयरो शिल्प कारीगरों को भी आमंत्रित किया गया है, जो मौके पर ही अपनी कारीगरी का प्रदर्शन (डेमो) करेंगे। उत्सव में सालावास की दरियां, पहू शॉल, कोटा डोरिया, कश्मीरी बुनाई, मोलेला की मिट्टी शिल्प, लाख की चूड़ियां आदि बनाने की प्रक्रिया का भी मौके पर प्रदर्शन किया जाएगा।

डॉक्यूमेंट्री का भी होगा प्रदर्शन

इस बार मेले में कुछ स्थानों पर स्क्रीन लगाकर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा लोक कला और शिल्प पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया जाएगा। इसका उद्देश्य हमारी समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करना है। निदेशक खान ने बताया कि मेले के परिवेश (एंबिएंस) को लोक और राजस्थान की हवेलियों की थीम पर सजाया जा रहा है। बंगाल के कारीगर मुख्य मंच का बैकड्रॉप और मंच के गेट राजस्थान की हवेली थीम पर तैयार कर रहे हैं।

मेले में ये होंगी प्रस्तुतियां

राजस्थान से चरी, भपंग, भवई, मांगणियार गायन, कालबेलिया, आदिवासी गेर, कच्ची घोड़ी, गवरी, तेरह ताली, मशक वादन, लाल व सफेद आंगी गेर, सहरिया स्वांग, देड़िया, मयूर नृत्य; जम्मू-कश्मीर से रौफ; असम से बिहू; उत्तर प्रदेश से देढ़िया, नटुवा; मेघालय से थांगटा व चेरौल जागोई; महाराष्ट्र से लावणी, सौंगी मुखवटे, सुंदरी वादन, मल्लखंब; मणिपुर से लाई हारोबा; पश्चिम बंगाल से रायबेंसे, पुरुलिया छाऊ, बाउल संगीत; कर्नाटक से पूजा कुनीता व ढोलु कुणिता; गुजरात से तलवार रास, राठवा, सिद्धि धमाल, गरबा रास, कच्छी लोक गायन, डांग; उत्तराखंड से छपेली; पंजाब से लुड्डी, भांगड़ा; हरियाणा से घूमर; गोवा से समई, देखणी, घोड़े मोढ़नी व घूमट; छत्तीसगढ़ से पंडवानी गायन; ओडिशा से गोटिपुआ, संभलपुरी; तमिलनाडु से कावड़ी कड़गम; मणिपुर से पुंग ढोल चोलम सहित विभिन्न राज्यों के लोकसंगीत, तालबंदी, नगाड़ा वादन के कलादल भी शामिल होंगे। साथ ही शास्त्रीय नृत्य कथक और लावणी सिम्फनी की मनमोहक प्रस्तुतियां भी दी जाएंगी।

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