अरावली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर रोक लगाई, सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
राजस्थान और उत्तर भारत में पर्यावरण के सबसे संवेदनशील मुद्दों में से एक अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय लिया है। अदालत ने 20 नवंबर 2025 को दिए अपने ही आदेश पर रोक लगा दी है और केंद्र तथा संबंधित राज्य सरकारों से स्पष्टीकरण मांगा है, ताकि मामले की पुन: समीक्षा हो सके।
यह फैसला उस विवाद के बीच आया है जिसमें कोर्ट ने पहले अरावली की परिभाषा को लेकर नई मानदंड तय किया था। उस आदेश में कहा गया था कि केवल जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा, जिससे छोटी ढालें और पहाड़ियों का संरक्षण दायरे से बाहर हो सकता था। इस नई परिभाषा को लेकर पर्यावरणविद, सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने तीखा विरोध जताया था कि इससे पारिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण भाग खनन और अन्य गतिविधियों के प्रति संवेदनहीन बन सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन‑जज बेंच ने 29 दिसंबर को इस विवाद पर सुनवाई करते हुए अपने 20 नवंबर के आदेश की प्रभावशीलता को रोक दिया है और सरकार से स्पष्ट रिपोर्ट और स्पष्टीकरण दाखिल करने को कहा है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 के लिए निर्धारित की है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि आलोचनाओं और विशेषज्ञों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए अब मामले में गहन पर्यावरणीय और वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करवाने की आवश्यकता है, ताकि अरावली के संवर्धन के मुद्दे को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जा सके। अदालत ने कहा है कि आदेशों को तब तक लागू नहीं किया जाना चाहिए जब तक स्पष्टता और विस्तृत सलाह नहीं मिल जाती।
इस फैसले के बाद अरावली संरक्षण को लेकर चल रहा विवाद फिर से अदालत की दहलीज पर आ गया है और पर्यावरण संरक्षण, खनन नियमन तथा स्थानीय पारिस्थितिकी को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
