भीलवाड़ा (हलचल)।
कल्पना कीजिए—आपके शहर की सड़कें धुली-चमकी दिखाई दें, नालियां साफ हों, कचरा सड़क किनारे ढेर बनने के बजाय सीधा निस्तारण केंद्र तक पहुँचे और लोग खुलेआम गंदगी फैलाने से डरें। सुनने में यह सपना जैसा लगता है। लेकिन केरल ने इसे हकीकत बना दिखाया है। सवाल है—क्या भीलवाड़ा भी केरल की राह पकड़ सकता है? जवाब है—हाँ, बशर्ते राजनीतिक इच्छा शक्ति वोट बैंक की राजनीति पर भारी पड़े।
केरल का मॉडल: डर और सहयोग का संतुलन
केरल ने स्वच्छता को आंदोलन का रूप दिया। वहां सिर्फ अपीलें नहीं हुईं, बल्कि गंदगी फैलाने वालों पर करोड़ों रुपये का जुर्माना ठोका गया। इतना ही नहीं, स्थानीय स्वशासन विभाग (एलएसजीडी) ने जनता को निगरानी का जिम्मा भी सौंपा। लोगों से कहा गया—जहां गंदगी दिखे, उसकी तस्वीर खींचो और वाट्सएप पर भेजो। शिकायत दर्ज होते ही कार्रवाई हुई और दोषियों पर दंड लगा।
परिणाम? लोग गंदगी फैलाने से कतराने लगे। सड़कों पर प्लास्टिक की थैलियों के ढेर गायब होने लगे। बाजार, गलियां और मोहल्ले साफ-सुथरे नज़र आने लगे। और तो और, शिकायत करने वालों को सम्मानित किया गया। यानी डर और सहयोग का ऐसा संगम बना, जिसने शहरों की तस्वीर ही बदल दी।
इंदौर और केरल से सबक
देश में अगर सफाई की चर्चा होती है, तो इंदौर का नाम सबसे पहले आता है। लगातार कई वर्षों से यह देश का सबसे स्वच्छ शहर बना हुआ है। दूसरी ओर, केरल ने भी अपनी कड़ी नीतियों से गंदगी को चुनौती दी। लेकिन अफसोस, उत्तर भारत के कई शहर अब भी धूल, कचरे और अव्यवस्था में डूबे पड़े हैं।
भीलवाड़ा की हालत भी कुछ ऐसी ही है। वस्त्र नगरी के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर यह शहर जब कोई बाहरी व्यक्ति देखता है, तो उसके सामने टूटी-फूटी सड़कें, उफनती नालियां, जगह-जगह कचरे के ढेर और बेतरतीब पार्किंग का मंजर सामने आता है। नतीजा यह होता है कि भीलवाड़ा की पहचान कपड़े से जुड़ी चमक-दमक से ज्यादा अव्यवस्था से जुड़ी बदनामी तक सिमट जाती है।
भीलवाड़ा की सच्चाई: दिखावा और ढर्रा
भीलवाड़ा की नगर व्यवस्था आज सवालों के घेरे में है।
सड़कें: जगह-जगह गड्ढे, पैबंद और धूल।
नालियां: साल भर जाम, बरसात में तो मानो नालियों से झरना फूट पड़ता है।
यातायात: कलेक्ट्री जैसी मुख्य सड़क पर नो-पार्किंग जोन सिर्फ नाम के लिए। लोग आराम से वाहन खड़े कर देते हैं और ट्रैफिक जाम आम बात हो जाती है।
कचरा प्रबंधन: वार्डों में सफाई कर्मियों की उपस्थिति का दावा तो होता है, लेकिन सच्चाई यह है कि कई जगह हफ्तों तक कचरा उठता ही नहीं।
नगर निगम और नगर विकास न्यास के पास योजनाएं तो हैं, बजट भी है, लेकिन जमीन पर तस्वीर वही है। कारण साफ है—राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी। वोट बैंक के दबाव में नेता न तो सख्त कानून लागू कर पाते हैं और न ही गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना लगाने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
राजनीतिक इच्छा शक्ति बनाम वोट बैंक
भीलवाड़ा में स्वच्छता की सबसे बड़ी बाधा राजनीति ही है। जब भी किसी वार्ड में कचरे का ढेर उठाने की कोशिश होती है या अवैध पार्किंग पर कार्रवाई की जाती है, तब वोट बैंक का तर्क सामने आ जाता है। “लोग नाराज हो जाएंगे”, “चुनाव नजदीक हैं”, “यह हमारा समर्थक वर्ग है”—ऐसी दलीलों में शहर की साफ-सफाई दम तोड़ देती है।
केरल ने यह सोचकर सफाई अभियान नहीं चलाया कि इससे वोट मिलेंगे। उसने सोचा—लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा, पर्यटन बढ़ेगा और जीवन स्तर बेहतर होगा। यही सोच भीलवाड़ा के नेताओं को भी अपनानी होगी।
जनता की भूमिका: सिर्फ शिकायत नहीं, जिम्मेदारी भी
यह भी सच है कि सिर्फ सरकार पर उंगली उठाकर बात खत्म नहीं होती। भीलवाड़ा के नागरिकों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी। अगर गंदगी देखकर लोग चुपचाप आगे बढ़ जाते हैं, तो व्यवस्था कभी नहीं सुधरेगी।
मोहल्ले में कचरा दिखे तो उसकी सूचना दें।
नालियों में प्लास्टिक डालने से बचें।
अवैध पार्किंग को बढ़ावा न दें।
नगर निगम की बैठकों और योजनाओं में भागीदारी बढ़ाएं।
इंदौर और केरल की सफलता की कुंजी यही थी कि जनता ने सफाई को अपनी जिम्मेदारी समझा।
स्वच्छता से जुड़ा आर्थिक पहलू
कई बार यह तर्क दिया जाता है कि सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि गंदगी कहीं ज्यादा महंगी पड़ती है। बीमारियों का इलाज, पर्यटकों की कमी, व्यापार पर असर—ये सब गंदगी की ही देन हैं।
भीलवाड़ा जैसे व्यापारिक शहर के लिए साफ-सफाई केवल स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं, बल्कि आर्थिक भविष्य का सवाल भी है। अगर शहर साफ-सुथरा होगा, तो बाहर से आने वाला निवेश और पर्यटन भी बढ़ेगा।
भीलवाड़ा का भविष्य: सपना या हकीकत?
अब सवाल यह है कि क्या भीलवाड़ा कभी केरल जैसा साफ-सुथरा बन पाएगा? जवाब—संभव है।
अगर नगर निगम, नगर विकास न्यास और प्रशासन मिलकर ठोस रोडमैप बनाए।
अगर गंदगी फैलाने वालों पर कठोर दंड तय हो।
अगर जनता निगरानी और जिम्मेदारी दोनों निभाए।
और सबसे बढ़कर, अगर नेता वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर शहर के भविष्य की सोचें।
निष्कर्ष: बदल सकती है तस्वीर
भीलवाड़ा के पास वह सब कुछ है जो इसे आदर्श शहर बना सकता है—विश्व प्रसिद्ध वस्त्र उद्योग, मेहनती लोग और विकास की अपार संभावनाएं। बस जरूरत है साफ-सफाई को लेकर वही दृढ़ निश्चय दिखाने की, जो केरल ने दिखाया।
आज भीलवाड़ा का मंजर गंदगी और अव्यवस्था से भरा है, लेकिन कल यह शहर चमक सकता है। शर्त यह है कि राजनीतिक नेतृत्व जनता को सिर्फ वादों से न बहलाए, बल्कि ठोस कदम उठाए। वरना भीलवाड़ा सिर्फ कपड़े का हब बनकर रह जाएगा और स्वच्छता की दौड़ में पीछे छूट जाएगा।
