निर्दोष आचरण में निहित है उत्साह आनन्द और सफलता-जिनेन्द्रमुनि मसा*

By :  vijay
Update: 2024-10-23 09:08 GMT

गोगुन्दा श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने अपनी प्रवचन माला में कहा कि जीवन मे उत्साह बना रहे आनन्द का अनुभव होता रहे और सफलताएं मिलती रहे सभी यह चाहते है।सच भी है उत्साह आनन्द न हो तो मानव जीवन का लाभ ही क्या?उत्साह आनन्द और सफलता की चाह गलत नही है किन्तु ये सब जीवन को कैसे प्राप्त हो यह रहष्य समझने वाले कम है।किसी पीड़ा को मिटाने के लिए कोई पीड़ा नामक गोली या इंजेक्शन ले लेना पीड़ा का सच्चा समाधान नही है।गोली का प्रभाव हटने पर पीड़ा तो तैयार है।पीड़ा का सही समाधान व्यवस्थित उपचार में है।ऐसे ही छल कपट जुठ हिंसादि से भौतिक सुख सुविधा के साथ जुटा लेना आनंद का आधार नही।एक चिंता को मिटाने का जो अधर्म किया वह और अधिक चिंता लेकर आएगा।उसका समाधान कैसे होगा।मुनि ने कहा आज जो जन जीवन मे तनाव व्याप्त है उसका मुख्य कारण ही यही है।व्यक्ति अपने एक पाप से छुटकारा पाने नया पाप पैदा करता है।इस तरह चिंता संक्लेशो कि बेल बढ़ती रहती है।जीवन को निर्दोष रूप से जीने का प्रयत्न करना चाहिए।अपराध करके व्यक्ति निश्चित नही रह सकता।निर्दोष जीवन की रचना करने में कुछ कठिनाई अवश्य आ सकती है किन्तु अपराध कर के जो चिंताएं और आशंकाए पैदा होती है उस के द्वारा होने वाले कष्ट से यह कष्ट निश्चित ही कम होता है और यह कष्ट अस्थायी होता है।संत ने कहा सच्चे और अच्छे व्यक्ति के लिए प्रगति के द्वार स्वतः खुलते चले जाते है।अनेक व्यक्तियों की गलत धारणाएं रहती है कि आज व्यक्ति जुठ बेईमानी से ही सफलता पा सकता है यह गलत है।जुठ बेईमानिया और कोई अपराध तत्कालीन रुप से लाभदायक हो भी जाये फिर भी उसके द्वारा जो आत्म पतन होता है व्यक्तित्व की क्षति होती है आशंका और चिंताओं से जो उद विघ्नता आती है ये हानिया ऐसी होती है कि वह तत्कालीन लाभ उसकी पूर्ति नही कर सकता।मुनि ने कहा निर्दोष एवं सच्चा व्यक्ति अभावो केबीच भी जो निश्चिन्तता और आनन्द पाता है पापपूर्ण सारे विश्व का वैभव भी उसकी तुलना में नही ठहरता है।प्रवीण मुनि ने कहा कि यह सत्य है कि आज व्यक्ति अनेक समस्याओं से निरन्तर घिरा रहता है।अहर्निश व्यक्ति कही न कही संलगन है अनेक अभाव उसे कचोटते है।अधिकतर उसका समय तनावों में ही गुजरता है।रितेश मुनि ने कहा कि विश्व मे जितने भी महापुरुष हुए है ।उनका निर्माण क्रमशः ही हुआ है।थोड़ा थोड़ा करके ही वे बने है।प्रभातमुनि ने कहा कि मानव के अस्तित्व के साथ समस्याओ का अस्तित्व ही जुड़ा है।जहाँ समस्या है वहा समाधान भी है।किंतु उसे पाने के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए।

Similar News