ज्ञानी व अज्ञानी व्यक्ति को समझाया जा सकता है लेकिन अहंकारी को नहीं"----- संत दिग्विजय राम

By :  vijay
Update: 2024-12-27 14:34 GMT

भीलवाड़ा/ गंगापुर ज्ञानी व अज्ञानी को समझाया जा सकता है लेकिन अहंकारी व्यक्ति को नहीं समझाया जा सकता, अहंकारी को केवल समय ही समझा सकता है l जीवन में वे नम्र बनकर रहना चाहिए l व्यक्ति भक्ति सरल चाहता है लेकिन स्वभाव कठोर रखता है संसार में अहंकार व अभिमान किसी का भी नहीं रहा यह जीव जब संसार से जाता है तब उसकी क्या दशा होती है कोई उसके साथ नहीं जाता सारा धन, दौलत, वैभव यही रह जाता है अतः जीवन में व्यक्ति को अहंकार कभी नहीं करना चाहिए l प्रभु के सामने समर्पण दासत्व भाव से रहना चाहिए तभी ही प्रभु का मिलन होता हैl व्यक्ति की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है यानी कि जब व्यक्ति 50 वर्ष का हो जाता है तो उसको इन पांच बातों का ध्यान रखना चाहिए यह है अधिकार, अहंकार, अंधकार, अंगीकार ,और अलंकार इन पांचो बातों को 50 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति को जीवन में स्वीकार करना चाहिए l यह बात गंगापुर में लक्ष्मी बाजार स्थित राधा कृष्ण वाटिका में प्रमुख जजमान नाथू लाल मुन्दडा द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में छठे दिन रामस्नेही संप्रदाय के परम श्रद्धये दिग्विजय राम महाराज ने कहीं, उन्होंने आज कथा में उद्धव चरित्र व रुक्मणी विवाह पर भक्तों को विस्तृत बताया, कथा के दौरान मुकेश डाड द्वारा भगवान शंकर का आकर्षक रूप धारण किया गया कथा में ब्रह्मा विष्णु महेश व राधा कृष्ण की विशेष झाकी सजाई गई,जिनकी भक्तों द्वारा आरती की गई

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मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने जानकारी देते हुए बताया कि छठे दिन कथा के दौरान महाराज जी ने प्रभु रस के बारे में विस्तृत बताते हुए कहा कि रस क्या है ? रस जीव व शिव को मिलाने का कार्य करता है ,"रस" परमात्मा है हर व्यक्ति चाहता है कि मैं रस प्राप्त करूं,हर व्यक्ति की अलग-अलग रस में रुचि होती है जब सभी रस एक जगह है एकत्रित हो जाते हैं तो पंचlरष्ट हो जाता हैl भगवान कृष्ण की बांसुरी से यह प्रेरणा प्राप्त करना चाहिए कि जीवन में अनुकूलता व प्रतिकूलता आती है लेकिन व्यक्ति को मन स्थिति को नहीं बदलना चाहिए भगवत चरणों में अपने आप को समर्पित करना चाहिएl प्रेम और पराक्रम में अंतर है भगवान एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाते हैं यह उनका पराक्रम है और दूसरा एक छोटी सी बांसुरी को भी दोनों हाथ से उठाते हैं, यह प्रेम हैl जीवन में दो ही व्यक्ति प्रसन्न रहते हैं बावरा या बालक, व्यक्ति को उद्देश्य प्राप्त करने हेतु बावरा बनना पड़ता है वह आनंद प्राप्त करने के लिए बालक l अहंकार जीव को शिव से दूर कर देता है ,भगवत कृपा ही व्यक्ति को भक्ति मार्ग पर अग्रसर करती है l इस संसार में अकड़ना तो मुर्दों की पहचान है झुकता वही है जो जीवित होता है , जीव जब जन्म लेता है तो सभी कार्य दूसरे ही करते हैं और जब मरता है तब भी सभी कार्य दूसरे ही करते हैं तो अहंकार किस बात का, समय चक्र के साथ सब बदल जाता है व्यक्ति को जीवन में अहंकार नहीं करना चाहिए यह संसार एक रंग मंच है हर व्यक्ति अपना रोल अदा करके चला जाता है व्यक्ति धन, शरीर ,वैभव व सुंदरता का अहंकार करके जीता है परंतु सत्य यह है कि क्या है आदमी की औकात? जीवन के अंत में बस एक मुट्ठी राख,व्यक्ति की मृत्यु बताती है कि उसे जाने वाले व्यक्ति का जीवन कैसा था मनुष्य जिंदगी भर मेरा- तेरा करता है अपने लिए कम और अपनों के लिए ज्यादा जीता है व्यक्ति को काया का अहंकार और माया का अभिमान नहीं करना चाहिए ,यह जीवन एक ओस की बूंद की तरह है जो क्षण में समाप्त हो जाती हैं इस तरह यह जीवन क्षण भंगुर है जीव के साथ कुछ नहीं जाता केवल उसके द्वारा किए गए कर्म ही उसके साथ जाते हैl इस संसार में हर प्राणी जीवन में आनंद चाहता है उसी की प्राप्ति में वह दिन-रात दौड़ता है व्यक्ति जब अपने आपको छोटा मानता है तब उसमें दासत्व भाव जागृत होता है हमारी कोशिश य़ह होनी चाहिए कि हम अपना कर्म करते रहें जीवन में जो कार्य करें वह पूर्ण समर्पण के साथ करे l भजन करने के लिए आसन सख्त होना चाहिए साधना के लिए मन को साधना पड़ता है अभ्यास करने से ही मन भक्ति में लगता है I आज कथा प्रसंग में भगवान का गोपिकाओं के साथ रासलीला व कंस वध एवं रुक्मणी विवाह का प्रसंग विशेष श्रवण कराया गया

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