श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के वेदाध्यापकों के आचार्यत्व में हो रहा महाकुंभ प्रयागराज में शतचंडी महायज्ञ

Update: 2025-02-02 14:42 GMT

भीलवाड़ा। श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ प्रबंध एवं विकास संस्थान द्वारा संचालित श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के अथर्ववेदाध्यापक पंडित परमेश्वर शर्मा के आचार्यत्व में तथा प्रधानाध्यापक नारायण लाल शर्मा के ब्रह्मत्व में सेक्टर नंबर 21 में अक्षयवट मार्ग , गंगा यमुना सरस्वती तीनों नदियां के संगम तट पर शतचंडी महायज्ञ का आयोजन गुप्त नवरात्रि में चल रहा है। जो कि माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलेगा। श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ के अध्यक्ष सत्यनारायण जोशी ने बताया कि  संत श्री श्री 1008 श्री अवधेश दास जी महाराज (जयपुर) एवं श्री श्री 1008 श्री रघुवीर दास जी महाराज (गोवर्धन) के नेतृत्व में यह महा आयोजन चल रहा है। जोशी   श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के वेदाध्यापकों के आचार्यत्व में हो रहा महाकुंभ प्रयागराज में शतचंडी महायज्ञश्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के वेदाध्यापकों के आचार्यत्व में हो रहा महाकुंभ प्रयागराज में शतचंडी महायज्ञश्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के वेदाध्यापकों के आचार्यत्व में हो रहा महाकुंभ प्रयागराज में शतचंडी महायज्ञश्री जोगणियां माता शक्तिपीठ वेद विद्यालय के वेदाध्यापकों के आचार्यत्व में हो रहा महाकुंभ प्रयागराज में शतचंडी महायज्ञने बताया कि इस सृष्टि का प्रथम यज्ञ भगवान ब्रह्मदेव द्वारा सर्वप्रथम प्रयागराज में ही किया गया था। और उसी यज्ञ को पूर्ण करने हेतु गंगा, यमुना, सरस्वती तीनों नदियां का संग इस स्थल पर हुआ था। और समुद्र मंथन के उपरांत नागों के राजा वासुकी ने भी विश्राम इसी स्थल पर किया था। और राम लक्ष्मण जी को जब अहिरावण पाताल लोक ले जाता है। तब प्रभु को बचाने के लिए हनुमान जी ने भी विश्राम इसी स्थान पर किया था। जो लेटे हुए हनुमान जी नाम से प्रसिद्ध है। तथा यहीं श्रृंगवेरपुर में निषादराज ने रामजी की नावं को पार लगाया था। और प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, मातासीता जी ने भारद्वाज ऋषि के आश्रम में विश्राम किया था। जिस प्रयाग में चार युगों से अक्षयवट को कभी ना नष्ट होने का वरदान मिला। और इसी स्थल पर अलोपी देवी शक्तिपीठ है। जहां देवी सती का दाहिना पंजा गिरा था। समुद्र मंथन के समय जहां अमृत की बूंद गिरी वही स्थान मनकामेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुई। हर 12 साल में महाकुंभ का महाआयोजन दुनियां का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव बन गया है।

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