भीलों के पुरखे बलराम भील की मूर्ति इस महीने लगेगी, नगर निगम में होगा भव्य कार्यक्रम
भीलवाड़ा (राजकुमार माली)। भीलवाड़ा नगर निगम इस महीने के अंतिम सप्ताह में भीलों के पुरखे माने जाने वाले बलराम भील की मूर्ति अपने परिसर में स्थापित करने जा रहा है। महापौर राकेश पाठक ने बताया कि मूर्ति का निर्माण पूरा हो चुका है और अब इसके लोकार्पण की तैयारियां अंतिम चरण में हैं।
महापौर पाठक ने बताया कि जिलेभर के 10 से 15 हजार लोग इस भव्य कार्यक्रम में शामिल होंगे। भीलवाड़ा की चारों दिशाओं से समाज के लोग रैली के रूप में एकत्रित होकर कलेक्ट्रेट होते हुए नगर निगम पहुंचेंगे, जहां सभा आयोजित की जाएगी और फिर मूर्ति का लोकार्पण किया जाएगा। कार्यक्रम को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
भीलवाड़ा और भील समाज का इतिहास
भीलवाड़ा का इतिहास : भीलवाड़ा का नाम ‘भीलों के बड़े → भीलवाड़ा’ से उत्पन्न माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र भील जनजाति का मूल निवास रहा है। मध्यकाल में भील समुदाय ने यहाँ बसावट की और धीरे-धीरे यह स्थान व्यापारिक, सांस्कृतिक और औद्योगिक रूप से विकसित होकर आज के भीलवाड़ा शहर में बदल गया।
कुछ मुख्य ऐतिहासिक बिंदु—
• भीलवाड़ा में सर्वप्रथम बसने वाले समुदायों में भील प्रमुख थे।
• क्षेत्र में कई जगह आज भी भील संस्कृति के प्रमाण, परंपराएं और त्यौहार मिलते हैं।
• समय के साथ यह इलाका वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध हुआ और आज इसे “टेक्सटाइल सिटी” के नाम से जाना जाता है।
भील समाज का इतिहास : भील भारत की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक है। ऐतिहासिक ग्रंथों और लोककथाओं में भील समाज की बहादुरी, प्रकृति-आधारित जीवनशैली और लोकनायक परंपराओं का उल्लेख मिलता है।
• भील समाज की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती हैं।
• राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इनकी बड़ी बसावट है।
• समाज प्रकृति, जंगल और जल स्रोतों से गहरे जुड़ा रहा है।
• इतिहास में भील योद्धाओं ने मेवाड़ राज्य और कई राजपूत वंशों के संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• महाराणा प्रताप की सेना में भी बड़ी संख्या में भील योद्धा शामिल थे।
