बाड़िया माता का चमत्कारिक मंदिर : परिक्रमा से मिलता है लकवे जैसे रोगों से छुटकारा

Update: 2025-10-01 06:43 GMT

गुरलां (सत्यनारायण सेन) । राजसमंद और भीलवाड़ा जिले की सरहद पर, भीलवाड़ा जिले के रायपुर उपखंड क्षेत्र के बाड़िया गांव में स्थित है बाड़िया माता का चमत्कारिक मंदिर। इस मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था है। मान्यता है कि यहां लकवे समेत कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि यहां दूर-दूर से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। वे नियमित सेवा पूजा और आरती में भाग लेते हैं तथा परिक्रमा कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मंदिर तक पहुंचना आसान, ठहरने की पूरी व्यवस्था

पालरा गांव के ओमप्रकाश सेन के अनुसार, यह मंदिर रायपुर से 10 किमी, कोशिथल से 7 किमी और नान्दसा जागीर से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। कोशिथल, रायपुर और बागोर से यहां आने के लिए साधनों की सुविधा उपलब्ध है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए विभिन्न समाजों द्वारा सराय बनवाई गई हैं। यहां भोजन बनाने की सुविधा भी है, जिससे बीमार व्यक्ति के साथ आए परिजन खुद खाना बना सकते हैं। सभी सुविधाएं नि:शुल्क हैं।

शनिवार और रविवार को तथा नवरात्रों में मंदिर में विशेष भीड़ रहती है। कई श्रद्धालु नवरात्र में पैदल यात्रा कर मंदिर पहुंचते हैं। कहा जाता है कि पहले इस गांव का नाम “कुम्हारों का वाडिया” था, परंतु देवी के चमत्कारों के कारण अब यह स्थान “बाड़िया माता” के नाम से जाना जाता है। मंदिर के सामने ही सगस बावजी का स्थान है, जहां अलग मंदिर बना हुआ है।

चमत्कारी परिक्रमा : लकवा जैसी बीमारियों से मिलती है राहत

ओमप्रकाश सेन के अनुसार, यदि किसी को लकवा या गंभीर बीमारी हो जाती है, तो ऐसे पीड़ित व्यक्ति यहां आकर मंदिर की परिक्रमा करते हैं। लोग 10 से 30 दिन तक मंदिर में रहकर नियमित सेवा पूजा करते हैं और दावा है कि कई बीमार व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं।

जोधा भोपाजी की मूर्ति भी स्थापित

मंदिर परिसर में जोधा भोपाजी की मूर्ति भी स्थापित की गई है। मान्यता है कि माता ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए थे। मंदिर से एक किलोमीटर दूर बाड़िया श्याम का मंदिर भी स्थित है, जहां दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ रहती है।

मंदिर का इतिहास : विक्रम सम्वत 1985 से जुड़ा है चमत्कार

मंदिर के इतिहास के अनुसार, विक्रम सम्वत 1985 में श्रावण-भाद्रपद महीने की संध्या के समय देवी का प्रिय अस्त्र ‘सुदर्शन चक्र’ प्रकट हुआ और सगसजी महाराज ने देवी को वचन दिलवाया कि वे मांस, मदिरा व बलि का भोग नहीं लेंगी। इसके बाद देवी ने अपने परम भक्त किशना जी गुर्जर की पुत्री जम्मू देवी को लकवा ठीक करने का चमत्कार दिखाया।

इसके बाद गाँव वालों की उपस्थिति में विक्रम सम्वत 1985 सुदी 13 को मंदिर में माता की स्थापना हुई। 15 वर्षों तक किशना जी ने सेवा पूजा की। फिर विक्रम सम्वत 2001 में उनके स्वर्ग सिधारने के बाद उनके पुत्र जोधराज गुर्जर को माता के दर्शन हुए और उन्होंने 1969 से 1971 के बीच मंदिर और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। वर्तमान में उनके वंशज भेरूलाल, मांगीलाल, दीपक, पारस और सुरेश सेवा पूजा कर रहे हैं। मंदिर के भोपाजी भेरूलाल गुर्जर हैं।

श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना बाड़िया माता मंदिर

बाड़िया माता मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के लिए आस्था और चमत्कार का प्रतीक बन गया है। यहां आने वाले लोग न केवल मानसिक शांति पाते हैं, बल्कि कई लोग स्वास्थ्य लाभ का भी अनुभव करते हैं। मंदिर का इतिहास, व्यवस्थाएं और मान्यताएं इसे विशेष और अद्भुत बनाते हैं।

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