धनखड़ ने आपातकाल के दौरान सुनाए फैसले को लेकर उच्चतम न्यायालय की आलोचना की
उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने पूरी मंत्रिपरिषद के नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति, प्रधानमंत्री की सलाह पर काम नहीं कर सकते। संविधान बहुत स्पष्ट है। राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद है। यह उल्लंघन था लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ? देश के 1,00,000 से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में सलाखों के पीछे डाल दिया गया। लोगों को उनके घरों से घसीटकर बाहर निकाला गया और पूरे देश में जेलों को भर दिया गया। हमारा संविधान खत्म हो गया। हमारे मीडिया को बंधक बना लिया गया।
'फैसले ने तानाशाही और निरंकुशता को वैधता प्रदान की'
आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की भूमिका का जिक्र करते हुए धनखड़ ने कहा कि वह ऐसा समय था जब संकट के समय लोकतंत्र का मूल तत्व ही ढह गया था। लोग न्यायपालिका की ओर उम्मीद से देखते हैं। देश के नौ हाईकोर्ट ने बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया कि आपातकाल हो या न हो, लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं और न्याय प्रणाली तक उनकी पहुंच है। दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट ने सभी नौ हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और ऐसा फैसला सुनाया जो कानून के शासन में विश्वास रखने वाली दुनिया की हर न्यायिक संस्था के इतिहास में सबसे काला अध्याय है। उन्होंने कहा कि फैसला यह था कि कार्यपालिका की इच्छा पर है कि वह जितना समय तक उचित समझे, आपातकाल लगा सकती है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला दिया था कि आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होते। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में तानाशाही, अधिनायकवाद और निरंकुशता को वैधता प्रदान की।
संविधान हत्या दिवस मनाना उचित फैसला- जगदीप धनखड़
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मौजूदा केंद्र सरकार ने हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का उचित फैसला किया है। आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा था।
'प्रलोभनों से किसी धर्म की ओर आकर्षित नहीं किया जाना चाहिए'
धनखड़ ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो सद्भाव में विश्वास करता है। इसका अर्थ है कि आप अपनी इच्छा, अपने विकल्प, अपनी पसंद के अनुसार धर्म का पालन करते हैं। आपको मीठे-मीठे वादों, प्रलोभनों से किसी धर्म की ओर आकर्षित नहीं किया जा सकता। यह भारतीय पहचान की भावना को नष्ट करने की दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि किसी को भी अपनी पसंद का धर्म चुनने का अधिकार है लेकिन अगर कोई प्रलोभन, कोई ऐसी चीज है जो किसी छिपे उद्देश्य के साथ आती है तो यह हमारी सभ्यतागत संपत्तियों के लिए एक चुनौती है। हमारी नींव हिल जाएगी और मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह बदलाव हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को इस पर ध्यान देने का अधिकार है और यह कर्तव्य भी है।
योग को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं- धनखड़
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस शनिवार को है। यह हमारे खजाने से निकला है। यह हमारे शास्त्रों में गहराई से समाया हुआ है। हमारा अथर्ववेद स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती और शरीर की देखभाल के बारे में ज्ञानकोष है। उन्होंने कहा कि योग केवल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह तक ही सीमित नहीं है। 21 जून हर किसी के लिए योग के बारे में जानने का केंद्र बिंदु भी है। इसे आपके दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए। इसका अभ्यास करना शुरू करें। आप इसे दिन के किसी भी समय में कर सकते हैं। यह आपको राहत देगा, आपको हर प्रकार से शुद्ध करेगा और कभी-कभी होने वाली निराशा को भी दूर करेगा।
