सुप्रीम कोर्ट का वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर बड़ा फैसला: कुछ प्रावधानों पर रोक, पूरे कानून पर नहीं

Update: 2025-09-15 06:48 GMT

नई दिल्ली, 15 सितंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सोमवार को महत्वपूर्ण अंतरिम फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूरे कानून पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया, लेकिन कुछ प्रावधानों पर आंशिक रोक लगाई। कोर्ट ने कहा कि कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है और केवल "दुर्लभतम मामलों" में ही पूर्ण रोक लगाई जा सकती है।

मुख्य बिंदु



 



गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित: कोर्ट ने वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या को तीन से अधिक नहीं करने का आदेश दिया। यह प्रावधान धार्मिक स्वायत्तता को संतुलित करने के लिए

वक्फ संपत्तियों का डिनोटिफिकेशन: यदि कोई संपत्ति पहले अदालत द्वारा वक्फ घोषित की गई है, तो सरकार उसे बिना वक्फ अधिनियम की प्रक्रिया (वक्फ ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के माध्यम से) के डिनोटिफाई नहीं कर सकती। कलेक्टर को विवाद लंबित रहने पर रिकॉर्ड में बदलाव करने से रोका गया।वक्फ बाय यूजर और वक्फ बाय डीड: संपत्ति को उपयोग (वक्फ बाय यूजर) या दस्तावेज (वक्फ बाय डीड) के आधार पर वक्फ घोषित किया जा सकता है, लेकिन पंजीकरण अनिवार्य है। कोर्ट ने पंजीकरण की समय सीमा बढ़ाई, लेकिन प्रावधान पर रोक नहीं लगाई।गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: वक्फ बोर्ड और परिषद में गैर-मुस्लिमों की संख्या को तीन तक सीमित किया गया, ताकि धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप न हो।

क्या बोले वकील?

अधिवक्ता एमआर शमशाद: "यह एक उचित आदेश है। पांच साल की शर्त और कलेक्टर की शक्ति पर रोक लगाई गई। गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित करना संतुलित कदम है।"अधिवक्ता वरुण सिन्हा: "केंद्र के संशोधनों पर कोई पूर्ण रोक नहीं। याचिकाकर्ताओं को यह राहत है कि बिना प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति नहीं छीनी जाएगी। गैर-पंजीकृत वक्फ अमान्य होंगे।"

अधिवक्ता अनस तनवीर: "कुछ प्रावधानों पर प्रथम दृष्टया रोक का आधार बना। पांच साल की शर्त अव्यवहारिक थी, इसलिए रद्द की गई।"

सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलें

केंद्र सरकार: वक्फ को "धर्मनिरपेक्ष" बताते हुए सरकार ने कहा कि यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। 25 अप्रैल को दाखिल 1,332 पेज के हलफनामे में सरकार ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला कानून बताया।याचिकाकर्ता: वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों पर गैर-कानूनी नियंत्रण का प्रयास है, जो संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

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