आरोप तय करने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, देशभर के लिए दिशानिर्देश तय करने के संकेत
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने देश में मुकदमों की धीमी रफ्तार और आरोप तय करने में हो रही देरी पर गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को कहा कि आरोपपत्र दाखिल होने के बाद आरोप तय करने में वर्षों लग जाना न्याय व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि इस संबंध में पूरे देश के लिए **एकसमान दिशानिर्देश (Uniform Guidelines)** तय किए जा सकते हैं।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह टिप्पणी बिहार के एक मामले की सुनवाई के दौरान की। अदालत ने कहा कि कई मामलों में तीन-चार साल तक केवल आरोप तय करने में लग जाते हैं, जबकि **भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS)** के अनुसार, पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय कर दिए जाने चाहिए।
19 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई **19 नवंबर** को तय की है। पीठ ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल होने के बाद न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आनी चाहिए। अगर कोई आरोपी आरोपों को चुनौती देकर आरोपमुक्त होता है, तो वह अलग विषय है, परंतु सामान्य परिस्थितियों में यह देरी अस्वीकार्य है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
पीठ ने स्पष्ट कहा, *“जब एक बार आरोपपत्र दाखिल हो गया है, तो आरोप जल्द तय होने चाहिए। ऐसी स्थिति जारी नहीं रह सकती, जहां वर्षों तक केवल आरोप तय करने की प्रक्रिया लंबित रहे।”*
अदालत ने कहा कि यह देरी न केवल आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि न्याय प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठाती है।
कोर्ट ने नियुक्त किए न्यायमित्र और मांगी मदद
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता **सिद्धार्थ लूथरा** और **नागामुत्थू** को न्यायमित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किया है। साथ ही **अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी** और **सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता** से भी सुनवाई में सहायता मांगी है।
सुनवाई के दौरान जब न्यायालय ने तुषार मेहता से सुझाव मांगे, तो उन्होंने कहा कि **नए कानून में आरोप तय करने के लिए स्पष्ट टाइमलाइन** निर्धारित की गई है। इस पर कोर्ट ने कहा कि वे आगामी सुनवाई में इस पर विस्तृत जानकारी दें।
बिहार का मामला बना आधार
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने **बिहार के डकैती और हत्या के प्रयास से जुड़े एक मामले** की सुनवाई के दौरान की।
इस मामले में आरोपी **अमन कुमार** ने जमानत याचिका दाखिल की थी। पुलिस ने 30 सितंबर 2024 को आरोपपत्र दाखिल कर दिया था, लेकिन अभी तक आरोप तय नहीं हुए थे।
अमन कुमार की जमानत याचिका निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों से खारिज हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह दलील दी गई है कि आरोपी को विचाराधीन कैदी के रूप में **अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता**।
न्याय में देरी = न्याय से इनकार
सुप्रीम कोर्ट की यह पहल उस लंबे समय से चल रही समस्या की ओर इशारा करती है, जो भारतीय न्याय प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौती मानी जाती है — *“न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है।”*
यदि शीर्ष अदालत इस पर दिशा-निर्देश जारी करती है, तो यह देशभर में लंबित मामलों की सुनवाई में गति लाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
